________________
णमोकार मंत्र और टॉफी
मुनि श्री क्षमासागर जी : संस्मरण प्रसंग
• सरोजकुमार
यह बात तब की है, जब मुनि श्री क्षमासागर जी इंदौर में अपना चातुर्मास कर रहे थे, याने 1996की। कंचनबाग के समवशरण परिसर में श्राविकाओं के लिए बने भवन की पहली मंजिल पर उनका अस्थायी पड़ाव था। वहीं एक बड़े कक्ष में दोपहर बाद उनसे मिलने और बात करने काफी लोग प्रायः पहुँचते थे। ऐसी ही एक शाम, कक्ष लगभग भरा हुआ था। विभिन्न चर्चाएँ हो रही थीं, कि एक तेरह - चौदह वर्ष का किशोर कक्ष में प्रविष्ट हुआ। उसे इतने शिष्टाचार के लिए भी अवकाश नहीं था, कि वह दीवार के पास से जगह बनाते हुए मुनिश्री के निकट पहुँचे । वह सबके बीच से ही लोगों को ठेलता, धकियाता आगे बढ़ता हुआ मुनिश्री के सामने हाथ जोड़, नमोऽस्तु कहते हुए रुका। उसकी यह अभद्रता लोगों को समझ में नहीं आई, क्योंकि वह दिखने में सुंदर, स्वस्थ और अपने परिधान में किसी अच्छे घर का लग रहा था। मुनिश्री ने उसे आशीर्वाद दिया और वह किशोर एकदम बोला, "मेरी एक जिज्ञासा है।" मुनिश्री ने उससे जिज्ञासा प्रकट करने के लिए कहा। उसने कहा, "मैं यह जानना चाहता हूँ कि अगर मुँह में टॉफी हो, और मैं उसे खा रहा हूँ, ऐसे समय यदि णमोकारमंत्र पढ़ने की भावना हो जाए, तो मुझे क्या करना चाहिए? क्या मुझे तत्काल टॉफी थूक देना चाहिए? यदि थूकने का स्थल न हो, तो क्या मुझे ऐसे स्थान पर जाना चाहिए, जहाँ मैं उसे मुँह से निकाल कर फेंक सकूँ? क्या मुझे उसे खाते रहना चाहिए, कि जब वह समाप्त हो जाए तब मैं कुल्ला करने के बाद णमोकार मंत्र पढूँ?"
किशोर का यह प्रश्न सुनकर सभी उपस्थित लोग अवाक् रह गए। सभी को लगा कि यह तो इस किशोर ने ऐसा प्रश्न उपस्थित कर दिया है, जिसका उत्तर सभी को चाहिए। किसी ने फुसफुसाया, 'टॉफी मुँह में रखे णमोकार मंत्र पढ़ना तो पाप होगा।' किसी ने कहा, 'बिना कुल्ला किए कैसे णमोकार मंत्र कोई पढ़ सकता है?' किसी ने कहा, 'टॉफी-प्रेमी को णमोकारमंत्र की याद ही कैसे आएगी?' पर सब मुनिश्री की ओर देख रहे थे और सभी को उत्सुकता थी, यह जानने की, कि मुनिश्री क्या समाधान व्यक्त करते हैं ?
मुनिश्री ने उस किशोर से कहा, कि देखो णमोकार मंत्र पढ़ने में कभी कोई रुकावट नहीं है। अगर टॉफी मुँह में है, और णमोकारमंत्र पढ़ने का मन हो रहा है, और अगर उस समय तुमने नहीं पढ़ा, और टॉफी खत्म करने की प्रतीक्षा की, और फिर कुल्ला करने के लिए पानी खोजने निकले, तब तक हो सकता है, कि णमोकार पढ़ने का जो मन हो रहा है, वह बदल जाए। जो भावना णमोकारमंत्र पढ़ने की पैदा हुई है, वह इतने समय में समाप्त ही हो जाए।
इसलिए उचित यही होगा, कि टॉफी खाते हुए भी यदि णमोकार मंत्र पढ़ने का मन हो आए, तो जरूर पढ़ लेना चाहिए। पर एक बात जरूर ध्यान रखना, कि कहीं ऐसा न हो, कि तुम कभी णमोकारमंत्र पढ़ रहे हो, उस समय तुम्हारा मन टॉफी खाने का हो जाए। जीवन की किसी भी गतिविधि के बीच णमोकारमंत्र का स्वागत है, लेकिन णमोकार मंत्र से भरे हुए क्षणों में जीवन की ऐसी-वैसी गतिविधि के लिए अवसर नहीं होना चाहिए। ऐसा समाधान सुनकर सभी उपस्थितों को लगा, कि इस समाधान ने उनकी भी अनेक जिज्ञासाओं का शमन कर दिया है। यह भी लगा, कि चाहे उन्हें इस किशोर के आने और मुनिश्री तक जाने की शैली आपत्तिजनक लगी हो, पर उसका प्रश्न सटीक था, और अपने प्रश्न को पूछने का साहस प्रशंसनीय।
मनोरम, 37 पत्रकार कॉलोनी, इन्दौर, म.प्र.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
उत्पा
www.jainelibrary.org