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अर्थात् ये देह, राग, द्वेष, मोह आदि समस्त | रागद्वेषमोहेभ्यो जीवस्य परमार्थतो भेददर्शनेन मोक्षोपायअध्यवसानभाव जीव हैं, यह उपदेश जिनेन्द्रदेव ने | परिग्रहणाभा-वाद् भवत्येव मोक्षस्याभावः।" आ. ख्या./ व्यवहारनय से दिया है।
समयसार/गा.४६। इस असद्भूत-व्यवहारनयात्मक उपदेश को आचार्य | क्या जिनेन्द्रदेव के इस उपदेश के विषय में कहा अमृतचन्द्र एवं आचार्य जयसेन ने उचित बतलाया है, | जा सकता है कि यह उनका अज्ञानमय अनादिरूढ़ क्योंकि इसके अभाव में मात्र निश्चयनय के उपदेश से | व्यवहार है? स्वप्न में भी ऐसा संभव नहीं है। अत: जीव आत्मा को शरीर से सर्वथा पृथक् समझ लेगा और |
| सिद्ध है कि असद्भूतव्यवहारनय ज्ञानमय व्यवहार है। प्राणियों के शरीर को निःशंक होकर भस्म के समान
जाणादि पस्सदि सव्वं ववहारणएण केवली भगवं। कुचलने में हिंसा नहीं मानेगा, हिंसा न मानने से बन्ध
केवलणाणी जाणदि पस्सदि णियमेण अप्पाणं॥ भी नहीं मानेगा। तथा मात्र निश्चयनय के कथन को
___ नियमसार की इस १५९वीं गाथा में कुन्दकुन्ददेव ग्रहण कर स्वयं को रागद्वेष मोह से भी सर्वथा पृथक्
ने केवली भगवान् को सर्वज्ञ कहा है, जो असद्भूतसमझ लेगा और अपने को सर्वथा शुद्ध मानते हुए मुक्ति
व्यवहारनयात्मक कथन है। क्या उन्होंने यह अपनी मिथ्या का प्रयत्न ही न करेगा
धारणा व्यक्त की है? क्या यह उनका अज्ञानमय अनादि"सर्वे एवैतेऽध्यवसानादयो भावा जीवा इति यद भगवद्भिः सकलज्ञैः प्रज्ञप्तं तदभूतार्थस्यापि व्यवहार
रूढ़ व्यवहार है? स्यापि दर्शनम्। व्यवहारो हि व्यवहारिणां म्लेच्छभाषेव
कदापि नहीं। तो आचार्य कुन्दकुन्द के इन म्लेच्छानां परमार्थप्रतिपादकत्वादपरमार्थोऽपि तीर्थप्रवृत्ति
निरूपणों से सिद्ध है कि उनकी दृष्टि में असद्भूतनिमित्तं दर्शयितुं न्याय्य एव। तमन्तरेण तु शरीराज्जीवस्य
व्यवहारनय अज्ञानियों का अनादिरूढ़ व्यवहार नहीं, अपितु परमार्थतो भेददर्शनात् त्रसस्थावराणां भस्मन इव
ज्ञानमय व्यवहार है। वह श्रृतज्ञानरूप प्रमाण का अवयव निःशङ्कमुपमर्दनेन हिंसाऽभावाद् भवत्येव बन्धस्याभावः। तथा रक्तो द्विष्टो विभूढो जीवो बध्यमानो मोचनीय इति
ए-2, शाहपुरा, भोपाल (म.प्र.)
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भगवान् श्री आदिनाथ विद्यानिकेतन में । आचार्यश्री का 36वाँ आचार्य-पदारोहणप्रवेश पाएँ जीवन को उज्ज्वल बनाएँ
दिवस सम्पन्न तीर्थधाम मङ्गलायतन में विगत पाँच वर्षों से भगवान् परम पमरपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज श्री आदिनाथ विद्यानिकेतन अपने अभूतपूर्व सफलता के | के परम शिष्य मुनि श्री 108 अजितसागर जी महाराज साथ दिनों-दिन प्रगति कर रहा है।
एवं एलक श्री विवेकानंद सागर जी महाराज के सान्निध्य इस वर्ष विद्यानिकेतन में कक्षा 8 और 9 में प्रवेश | में श्री चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर नरवाँ (सागर) में दिया जाएगा। विद्यानिकेतन में धार्मिक शिक्षा और संस्कार | 14 नवम्बर 2008 को आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के साथ-साथ उच्चकोटि की लौकिक शिक्षा भी प्रदान | का 36वाँ आचार्य पदारोहण दिवस एवं श्री बड़े बाबा की जाती है। अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थी डी.पी.एस., कुण्डलपुर महामण्डल विधान का आयोजन हर्षोल्लास अलीगढ़ में और हिन्दी माध्यम के विद्यार्थी के.एल. जैन | पूर्वक सम्पन्न हुआ। विधिविधान श्री पं० विनोद सेठ इण्टर कॉलेज, सासनी में पढ़ने भेजे जाते हैं। यदि आप | शाहगढ़ एवं श्री सुनील जैन ‘संचय' शास्त्री ने सम्पन्न अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहते हैं, तो कराया। शीघ्र ही फार्म मँगाकर तथा भरकर. 15 फरवरी 2009 पूज्य मुनि श्री अजित सागर जी महाराज एवं एलक तक तीर्थधाम मङ्गलायतन में भेजें।
श्री विवेकानन्दसागर जी महाराज ने अपनी अमृतमयी अलीगढ़-आगरा मार्ग, निकट हनुमान चौकी, | वाणी में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के महान
सासनी-204216 (अलीगढ़)| व्यक्तित्त्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। रात्रि में आरती मोबाइल- 098970-69969, 099270-13722 | व प्रवचन हआ।
कमलेश शाह नरवाँ 18 दिसम्बर 2008 जिनभाषित
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