Book Title: Jinabhashita 2008 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 16
________________ सम्बन्धी बात करने लगे। बाईजी ने तपक कर कहा- | 'संसार में जहाँ संयोग है, वहाँ वियोग है। हमने तुम्हें 'भैया! यहाँ अदालत नहीं अथवा वकील का घर नहीं | चालीस वर्ष पुत्रवत् पाला है, यह तुम अ जो आप मुकदमा की बात कर रहे हो, कृपया बाहर हो। इतने दीर्घकाल में हमसे यदि किसी जाइये और मुझसे भी कहा कि बाहर जाकर बात कर हुआ हो, तो उसे क्षमा करना और बेटा! मैं क्षमा करती लो. यहाँ फालत बात मत करो।' ... इस तरह बाईजी हैं. अथवा क्या क्षमा करूँ. मैंने हृदय से कभी भी कष्ट की दिनचर्या व्यतीत होने लगी। नहीं पहँचाया। अब मेरी अन्तिम यात्रा है, कोई शल्य बाईजी को निद्रा नहीं आती थी। केवल रात्रि के न रहे, इससे आज तुम्हें कष्ट दिया। यद्यपि मैं जानती दो बजे बाद कुछ आलस्य आता था। हम लोग रात- | हूँ कि तेरा हृदय इतना बलिष्ट नहीं कि इसका उत्तर दिन उनकी वैय्यावृत्य में लगे रहते थे। जब बाईजी की | कुछ देगा।' आयु का, एक मास शेष रहा, तब एक दिन श्री लम्पूलाल मैं सचमुच ही कुछ उत्तर न दे सका, रुदन करने जी घी वालों ने पूछा कि 'बाईजी! आपको कोई शल्य | लगा, हिलहिली आने लगी, बाईजीने कहा-'बेटा जाओ तो नहीं है।' बाईजी ने कहा- 'अब कोई शल्य नहीं। बाजार से फल लाओ' और ललिता से कहा कि 'भैया पर कुछ पहले एक शल्य अवश्य थी। वह यह कि | को पाँच रुपया दे दे, फल लावे। मुझे वहाँ से कहा बालक गणेशप्रसाद जिसे कि मैंने पुत्रवत् पाला है, यदि | कि 'जाओ', मैं ऊपर गया। मुलाबाई ने मुझे देखा मेरा अपने पास कुछ द्रव्य रख लेता तो, इसे कष्ट न उठाना | रुदन अवस्था देख नीचे गई। बाईजी ने कहा- 'मूला पड़ता। मैंने इसे समझाया भी बहुत, परन्तु इसे द्रव्यरक्षा | नाटकसमयसार सुनाओं।' वह सुनाने लगी। तीन या चार करने की बुद्धि नहीं। मैंने जब-जब इसे दिया, इसने छन्द सुनाने के बाद वह भी रुदन करने लगी। बाईजी पाँच या सात दिन में साफ कर दिया। मैंने आजन्म | ने कहा 'मुला'! ऊपर जाओं।' वह ऊपर चली गई। इसका निर्वाह किया। अब मेरा अन्त हो रहा है, इसकी | जब शान्तिबाई ने उसे रोते देखा तब वह भी बाईजी यह जाने, मुझे शल्य नहीं। मेरे पास जो कुछ था इसे | के पास गई बाईजी ने कहा 'शान्ति समाधिमरण सुनाओ।' दे दिया। एक पैसा भी मैंने परिग्रह नहीं रक्खा। मैं आपको | वह भी एक दो मिनट बाद पाठ करती करती रोने लगी। ___ विश्वास दिलाती हूँ कि मेरे मरने के बाद यह एक | मैं जब बाजार गया तब श्री सिंघई जी मिले। उन्होंने दिन भी मेरी द्रव्य नहीं रख सकेगा, परन्तु अच्छे कार्य मेरा वदन मलीन देखा और पूछा कि 'बाईजी की तबियत में लगावेगा, असत् कार्य में नहीं।' श्री लम्पूलालजी ने | कैसी है? मैंने कहा- 'अच्छी है।' वे बाईजी के पास कहा कि 'फिर इनका निर्वाह कैसे होगा?' बाईजी ने | गये। बाईजी ने कहा- 'सिंघई भैया! अनुप्रेक्षा सुनाओ।' कहा कि 'अच्छी तरह होगा। जैसे मेरा इनके साथ कोई | वे अनुप्रेक्षा सुनाने लगे। परन्तु थोड़ी देर में सुनाना भूलकर जाति सम्बन्ध नहीं था, फिर भी मैंने इसे आजन्म पुत्रवत् रुदन करने लगे। इस प्रकार जो जो जावे वही रोने लगे। पाला, वैसे इसके निमित्त से अन्य कोई मिल जावेगा। तब बाईजी ने कहा- आप लोगों का साहस इतना दुर्बल इसकी पर्यायगत योग्यता बड़ी बलवती है।' बाईजी की है कि आप किसी की समाधि कराने के पात्र नहीं।' बात सनकर लम्प भैया हँस कर चले गये और उनके | दम पकार बार्टली का माटय ॥ इस प्रकार बाईजी का साहस प्रतिदिन बढ़ता गया। बाद सिंघई जी भी आये। वे भी हँसकर चले गये। इसके बाद बाईजी ने केवल आधी छटाक दलिया का एक दिन मैंने बाईजी से कहा-'बाईजी! यह आहार रक्खा और जो दूसरी बार पानी पीती थीं वह शांतिबाई प्राणपनसे आपकी वैय्यावृत्त्य करती है, इसे भी छोड़ दिया। सब ग्रन्थों का श्रवण छोड़कर केवल कुछ देना चाहिये।' बाईजी ने कहा- 'तुम्हारी जो इच्छा रत्नकरण्डश्रावकाचार में से सोलहकारण भावना, दशधा हो सो दे दो। मैं तो द्रव्य का त्याग कर चुकी हूँ।' | धर्म, द्वादशानुप्रेक्षा और समाधिमरण का पाठ सुनने लगीं। जब आयु में दस दिन रह गये तब बाईजी ने | जब आयु के दो दिन गये तब दलिया भी छोड़ दिया, मुझसे कहा- 'बेटा। एकान्त में कुछ कहना है।' मैं दो | केवल पानी रक्खा और जिस दिन आयु का अवसान बजे दिन को उनके पास जाकर बैठ गया और बोला- | होनेवाला था उस दिन जल भी छोड़ दिया। उस दिन बाईजी! मैं आ गया, क्या आज्ञा है?' बाईजी बोलीं- | उनका बोलना बन्द हो गया। मैं बाईजी की स्मृति देखने 14 मई 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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