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मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ
अनहोनी - 1
तुम
कभी किसी वृक्ष ने
अपनी शाखाओं पर बने
पक्षी के घोंसले
अपने ही हाथों तोड़कर नीचे फेंक दिये हों?
तुमने नहीं सुना, मैंने भी नहीं सुना
ऐसा तो
किसी ने
कभी नहीं सुना ।
खिड़की
सम्बन्धों के बीच
पहले
एक दीवार
हम खुद
खड़ी करते हैं
फिर उसमें
एक खिड़की
लगाते हैं
पर जिन्दगी-भर करीब रहकर भी
हम खुलकर कहाँ मिल पाते हैं?
'अपना घर' से साभार
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अनहोनी-2
तुमने देखा
कभी आँधी-पानी तूफान
वृक्ष से
पक्षी को घोंसला
टूटकर गिरते वक्त
वृक्ष का पत्ता- पत्ता न काँपा हो?
कि आँसुओं की तरह
फूल और फल
न गिरे हों ?
तुमने नहीं देखा
मैंने भी नहीं देखा,
ऐसा होते
किसी ने
कभी नहीं देखा।
सावधान
दर्पण
तोड़ने से पहले
इतना जरूर देख लेना,
कहीं
दर्पण में बना
तुम्हारा प्रतिबिम्ब
टूट न जाए !
में
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