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और देवकुरु के मनुष्य तीन पल्य की स्थितिवाले ही होते हैं, अतः यह विशेषण सफल है । अथवा एक समय अधिक दो पल्य से लेकर एक समय कम तीन पल्य तक के स्थिति - विकल्पों का निषेध करने के लिये सूत्र में तीन पल्य की स्थितिवाले पद का ग्रहण किया है। सर्वार्थसिद्धि के देवों की आयु जिस प्रकार निर्विकल्प होती है, उस प्रकार वहाँ की आयु निर्विकल्प नहीं होती, क्योंकि इस प्रकार की आयु की प्ररूपणा करनेवाला, सूत्र और व्याख्यान उपलब्ध नहीं होता। भावार्थ- देवकुरुउत्तरकुरु में आयु तीन पल्य की ही होती है। दूसरे मत के अनुसार समयाधिक २ पल्य प्रमाण जघन्य आयु से लेकर ३ पल्य तक सभी आयु-विकल्प वहाँ होते है । ऐसी ही अन्य शाश्वत जघन्य एवं मध्यम भोगभूमि के संबंध में भी समझ लेना चाहिये ।
२. श्री आचारसार अधिकार - ११ में कहा हैजघन्य - मध्यमोत्कृष्ट - भोगभूमिष्ववस्थितम् । स्यादेकद्वित्रिपल्यायुर्नित्यास्वन्यासु तद्वरम् ॥ ५६ ॥
पूर्वकोट्येकपल्यं च पल्यद्वयमिति त्रयम् । समयेनाधिकं तासु नृतिर्यक्ष्ववरं क्रमात् ॥ ५७॥
अर्थ- नित्य रहनेवाली देवकुरु- उत्तरकुरु आदि तथा प्रथम द्वितीय कालादि जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भोगभूमि में अवस्थित उन जीवों की उत्कृष्ट आयु एक, दो, तीन पल्य है । (५६)
उन्हीं भोगभूमियों में मनुष्य और तिर्यंचों में जघन्य आयु क्रम से १ समय अधिक पूर्व कोटि, एक समय अधिक एकपल्य और एक समय अधिक दो पल्य है, इस प्रकार तीनों जघन्य आयु हैं । (५७)
३. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष भाग २ पृष्ठ २६४ पर उपर्युक्त प्रकार ही शाश्वत भोगभूमियों में उत्कृष्ट एवं जघन्य आयु कही गई है।
विदेश में मची धर्म की धूम
बैंकांक, थायलेंड में महावीर जयंती एवं वेदी प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 18 से 20 अप्रैल 2008 तीन दिन अभूतपूर्व धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ । इस पूरे कार्यक्रम में विदेशों से (भारत से ) 25-30 सधर्मी बन्धु भी सम्मलित हुये ।
1 / 205, प्रोफेसर्स कॉलोनी आगरा - 282002 ( उ.प्र. )
वर्तमान श्रेष्ठ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य ब्र. संजीव भैया कंटगी के कुशल निर्देशन में कार्यक्रम संपन्न हुआ । ब्र. भैया की कुशल आध्यात्मिक तत्त्वपरक शैली से संपूर्ण जैन समाज ने मिलकर कार्यक्रम को अभूतपूर्व बना दिया।
ज्ञातव्य हो विगत तीन वर्ष पूर्व दिगम्बर जैन मंदिर की स्थापना की गई थी। प्रारम्भ में एक भगवान् महावीर स्वामी की मूर्ति विराजमान थी, इस अवसर पर एक 7 फीट उत्तुंग सर्वतोभद्र स्तंभ में चार चतुर्मुखी भगवान् विराजमान किये गये ।
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ज्ञातव्य हो कि मंदिर जी में मूर्तियों को प्रतिष्ठित कराने व मारबल का परिकर व स्तंभ बनाने में वास्तुकार श्री राजकुमार जी कोठारी का बड़ा योगदान रहा।
बैंकांक में लगभग 100 दिगम्बर जैन समाज के परिवार निवास रत है। संपूर्ण समाज के श्रावक श्राविकाओं ने ब्र. संजीव भैया की ओजस्वी भाषाशैली से प्रभावित होकर सप्ताह में एक दिन अभिषेकपूजन का नियम लेकर एक श्रेष्ठ कीर्तिमान स्थापित किया । ब्र. भैया ने कहा कि कार्यक्रम की सफलता का श्रेय उनके गुरुवर आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज को है। समाज ने निवेदन किया कि ऐसे भैया जी का पुनः बैंकाक में आगमन हो ।
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दिगम्बर जैन फाउंडेशन बैकांक, थायलेंड
मई 2008 जिनभाषित 31
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