Book Title: Jinabhashita 2008 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 31
________________ जिज्ञासा-समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा जिज्ञासा- ६३ शलाका पुरुषों के शरीर का वर्ण | आगे पीछे नहीं आता। सभी दसों धर्म आत्मा के स्वभाव बतायें? | हैं। आचार्यों एवं मुनियों के द्वारा सदैव पालने योग्य हैं, समाधान- २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, तथा श्रावकों के द्वारा भी यथायोग्य नित्य पालन-योग्य ९ प्रतिनारायण, ९ बलदेव, ये सब मिलाकर ६३ शलाका | हैं। परन्तु दशलक्षणपर्व में जब इनका प्रवचन होता है, पुरुष अर्थात् प्रसिद्ध पुरुष कहलाते हैं। इस अवसर्पिणी | तब चौथे दिन किस धर्म का प्रवचन होना चाहिये, इस काल में भरत क्षेत्र में जो ६३ शलाकापुरुष हुये हैं, उनके पर कहीं-कहीं विवाद देखा जाता है। यह विवाद उचित शरीर का वर्ण इस प्रकार का आगम में पाया जाता है- | नहीं है, फिर भी आचार्यों ने इनका क्रम किस प्रकार २४ तीर्थंकर- सामान्य से भगवान् चन्द्रप्रभ एवं | कहा है, उसे देखते हैंभगवान् पुष्पदंत का श्वेत, भ. पार्श्वनाथ एवं सुपार्श्वनाथ | १. तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता आ. उमास्वामी तथा का हरा, भ. नेमिनाथ एवं भ. मुनिसुव्रतनाथ का नीला, | उनके सभी टीकाकारों ने उत्तम शौच के बाद उत्तम भ. पद्मप्रभ एवं भ. वासुपूज्य का लाल वर्ण था। शेष | सत्य कहा है। इसी प्रकार स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, तत्त्वार्थ१६ तीर्थंकरों का शरीर तपाये हुए स्वर्णवत् था। इन वर्गों | सार तथा चामुंडरायरचित चारित्रसार में भी इसी प्रकार में सफेद एवं लाल वर्णवाले तीर्थंकरों के संबंध में सभी का वर्णन है। आचार्य एकमत हैं। परन्तु भ. सुपार्श्वनाथ एवं भ. पार्श्वनाथ २. आ. कुंदकुंद ने वारसाणुवेक्खा में, भ. सकलका वर्ण हरिवंशपुराण एवं कल्याणमंदिर-स्तोत्र में कृष्ण | कीर्ति ने मूलाचारप्रदीप में, ब्रह्मदेवसूरि ने बृहदद्रव्यसंग्रह तथा त्रिलोकसार एवं पार्श्वपुराण में नीलवर्ण कहा है। | में, आ. पद्मनंदि ने पद्मनंदि-पंचविंशातिका में, आ. भ. नेमिनाथ एवं भ. मुनिसुव्रत का वर्ण, वरांगचरित्र, | जिनसेन ने आदिपुराण में तथा अमितगति-श्रावकाचार आदि निजमलकल्प, अनगार-धर्मामृत, गौतमचरित्र, चर्चाशतक, | में उत्तम सत्य के बाद उत्तम शौचधर्म कहा है। त्रिलोकसार पार्श्वपुराण में काला कहा गया है। तपे हुये ३.आ. वट्टकेर ने मूलाचार में तथा वसुनंदिश्रावकाचार स्वर्ण वर्णवाले तीर्थंकरों के संबंध में सभी आचार्य एकमत | में धर्म का क्रम इस प्रकार कहा है- क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, तप, संयम, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य, सत्य तथा त्याग। १२ चक्रवर्ती- सभी चक्रवर्तियों का वर्ण स्वर्णवत् | उपर्युक्त प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि आचार्यों ने कहा गया है। इसका वर्णन कई प्रकार से किया है। अतः इस संबंध ९ बलदेव- बलदेवों के शरीर का वर्ण जंबूदीप | में विवाद उचित नहीं है। पण्णत्ति, हरिवंशपुराण एंव उत्तरपुराण में श्वेत कहा है,। प्रश्नकर्ता- डॉ० अभयदगडे कोपरगाँव । जब कि तिलोयपण्णत्ति में स्वर्णवत् कहा गया है। । जिज्ञासा- असंक्षेपाद्धाकाल का अर्थ, आवली का ९ नारायण- इनके शरीर का वर्ण जंबूदीप-पण्णत्ति | संख्यातवाँ भाग माना जाय या असंख्यातावाँ भाग माना में नीला, हरिवंशपुराण में काला, उत्तरपुराण में नीला | जाय? जैनेन्द्रसिद्धान्तकोष में तो आवली का असंख्यातवाँ और काला तथा तिलोयपण्णत्ति में स्वर्णवत् कहा है। भाग कहा है ? इसमें कई मत हैं। समाधान- जैनेन्द्रसिद्धांतकोष के अनसार आपने जो ९ प्रतिनारायण- इनके शरीर का वर्ण जंबूदीप | लिखा है वह ठीक है। परन्तु वह वर्णन ठीक नहीं है। पण्णत्ति के अनुसार नीला, तथा तिलोयपण्णत्ति के अनुसार | कर्मकाण्ड गाथा १५८ की टीका करते हुये विशेषार्थ में स्वर्णवत् कहा गया है। इस प्रकार कहा है- 'आयुकर्म की जघन्य आबांधा' जिज्ञासा- दशधर्म के वर्णन में पहले उत्तम शौच | असंक्षेपाद्धा प्रमाण है। यह काल भी आवली के संख्यातवें आता है या उत्तम सत्य? | भाग प्रमाण है। क्योंकि श्री धवल पु. ११ पृष्ठ २६९, समाधान- वास्तविकता तो यह है कि कोई धर्म | तथा २७३ के अनुसार आयुकर्म की जघन्य आबाधा से हैं। -मई 2008 जिनभाषित 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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