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अनुसार दक्षिण महाराष्ट्र एवं कर्नाटक प्रांत की चार जैन। निष्कर्ष- विद्यमान संदर्भ में जबकि अति खुली जातियों यथा-पंचम, चतुर्थ, कासार-बोगार एवं शेतवालों | समाजव्यवस्था स्वतः प्रगट हो रही है, नेतृत्व और विद्वान्में परस्पर रोटी-व्यवहार होता है। इन सभी जातियों में | समाजसधारकों को विवाह व्यवस्था के संबंध में उपर्यक्त विधवा-पुनर्विवाह जायज है। (जैन सा. और इति./प्र. शास्त्रोक्त व्यवस्थानुसार उदारतापूर्वक विचार करना चाहिए, 504-506)। विधवाविवाह की इस प्रथा को ध्यान में जिससे कि विजातीय-विधर्मी विवाह-सम्बन्धों पर नियंत्रण रखकर ही आचार्य श्री शांतिसागर जी (चतुर्थजाति) ने किया जा सके। ऐसे नियमों की स्थापना एवं उद्घोषणाओं अपनी दीक्षा शास्त्रसम्मत बताते हुए यह स्पष्ट किया | से समाज की विकृतियाँ नहीं रुकेंगी, जिनका पालन है कि उनके मात या पित पक्ष में कभी पुनर्विवाह नहीं | उद्घोषक अपने परिवार में ही नहीं कर सकते और हुआ। इस प्रकरण से समाजव्यवस्था और धर्मव्यवस्था | न ही आगमसम्मत हैं। अंतर्जातीय विवाहों के विरोध की भिन्नता प्रकट होती है।
की अपेक्षा विजातीय-विधर्मी शादी-सम्बन्धों को हतोत्साहित आचार्य शान्तिसागर जी का अभिमत
किया जाना चाहिए, अन्यथा आनेवाली पीढ़ियाँ धर्मपं. श्री सुमेरचंद दिवाकर ने आचार्यश्री से प्रश्न | विहीन, संस्कार-विहीन हो जावेंगी। विधर्मी-विजातीय किया- 'क्या यह सच है कि आप आहार-पूर्व गृहस्थ | कन्या के साथ सम्बन्ध होने की स्थिति में उसके जैनधर्म से प्रतिज्ञा कराते हैं कि विजातीय विवाह आगमविरुद्ध | में दीक्षित किये जाने की परम्परा स्थापित की जानी चाहिए है। जो ऐसी प्रतिज्ञा नहीं लेते वहाँ आप आहार नहीं | और जैनकन्या विधर्मी वर के साथ विवाह न करे, इसके लेते?' इसके उत्तर में महाराजश्री ने कहा कि 'आहार | लिए समाज को जागरूक होना चाहिए, अपरिहार्यता की दाता के यहाँ उपर्युक्त प्रतिबंध की बात मिथ्या है।' ] स्थिति में वर को जिनमत में दीक्षित करने का भी प्रयास
(संदर्भ-जैनमित्र, दि. 6.1.1938, अङ्क 9वाँ, पौष | किया जा सकता है। व्यावहारिक जागरूकता से लाभ सुदी 5, वीर संवत् 2464)।
| होता है। सुधीजन मार्गदर्शन करें।
बी-269, ओ.पी.एम., अमलाई, शहडोल
सभी मंदिरों एवं तीर्थक्षेत्रों के ट्रस्टियों से विनम्र निवेदन दिगम्बर जैन समाज के तीर्थक्षेत्रों की स्थितियाँ दिन- | कोई अन्य प्रकार से पूजा-अभिषेक करना चाहे तो उस ब दिन बिगड़ती जा रही हैं। बड़वानी-क्षेत्र को बीस | पर उचित कार्यवाही की जायेगी। इस प्रकार के नियम पंथी करार देने का अट्टहास चल रहा है। हर क्षेत्र के | अगर ट्रस्ट के आरंभिक संविधान (डीड) में नहीं हैं, फोटो उतारकर रखे जा रहे हैं। बडवानी तीर्थक्षेत्र को तेरापंथी | तो नये सिरे से ट्रस्ट के सदस्यों को दो तिहाई बहुमत सिद्ध करने वाले के लिए ५१ हजार के पुरस्कार की | से प्रस्ताव पारित कर उसका संविधान में (नये संशोधित घोषणा करते हुए पोस्टर का विमोचन प० श्री बाबूलालजी प्रस्ताव का) निवेदन चरेटी कमिशन की ओर दर्ज करा पाटोदी के करकमलों द्वारा बडनगर में किये जाने का समाचार | दिया जाये, तो इसे भंग कोई नहीं कर सकेगा। इस तरीके मिला है। यही रवैया हर क्षेत्र में अपनाया जायेगा और | से कम से कम मूल में जो जिस परिपाटी के तीर्थ । विवाद बढ़ाया जायेगा। शुद्ध आम्नाय । तेरापंथ के विरोध | मंदिर हैं, वे अपनी परिपाटी (तेरा या बीस पंथी की) में कार्य योजनाबद्ध तरीके से फैलाया जा रहा है। आपसे | या क्षेत्र की पवित्रता कायम रख पायेंगे। अत: पुनश्य विनम्र निवेदन है कि इन आक्रमक प्रवृत्तियों को रोकने ! आपसे विनम्र निवेदन है कि कम से कम श्रवणबेलगोला के लिए कुछ कदम उठाना जरूरी है।
| में पारित प्रस्ताव के अनुसार जहाँ जो पूजा-अभिषेक पद्धति आप से हमारा विशेष निवेदन है कि बडवानी | चल रही है, उसका स्पष्ट निर्देश करते हुए अपने क्षेत्र या इस प्रकार के सभी तीर्थक्षेत्रों की नियमावली (संविधान- / मंदिर के संविधान में नियम बनाकर बोर्ड लगा दिये डीड) में यह क्लॉज (नियम) होना चाहिए कि इस | जायें। इस प्रकार कुटिलता से क्षेत्रों पर विवाद मचाने क्षेत्र में शुद्धाम्नाय / तेरापंथ या बीस पंथ के नीति-नियमों | के प्रसंगों से बचा जा सकेगा। के अनुसार पूजा-अर्चा होगी। इसके विरोध में जाकर अगर ।
विनीता प्रा. सौ. लीलावती जैन संपादिका धर्ममंगल, औंध पुणे-411007
24 मई 2008 जिनभाषित
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