Book Title: Jinabhashita 2008 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 18
________________ शिल्पी चागद वम्भदेव पं० कुन्दनलाल जैन - भगवान् बाहुबलि तीर्थंकर नहीं थे, वे तो चौबीस | उसकी यशोगाथा गाते हुए उसकी कला की सराहना करते कामदेवों में से प्रथम कामदेव थे अतः सर्व सुन्दर थे | रहेंगे। इसीलिए कन्नड़ भाषा में इनको गोम्मटस्वामी कहा है | भगवान् बाहुबलि की मूर्ति का निर्माण करानेवाले क्योंकि कन्नड़ में गोम्मट का अर्थ सर्वाधिक सुन्दर होता | चामुण्डराय राज-पुरुष, विख्यात विद्वान् और प्राकृत कवि है, अस्तु। परन्तु श्रद्धालु भक्तजनों ने उनके त्याग, तपस्या | थे। उन्हें तो सभी लोग जानते हैं, आज इतिहास में वे एवं साधना को देखकर उन्हें भगवान्-सदृश ही मान | पूर्णतया विख्यात हैं। पर उस तपस्वी साधक, श्रेष्ठ शिल्पी, लिया और वे भगवान् बाहुबलि नाम से विख्यात हो | उच्च कलाकार चागद को बहुत कम लोग जानते हैं गए। जिसकी अमर साधना और मूक तपस्या ने विराट-स्वरूप भगवान् बाहुबलि का अपौरुषेय एवं महामानवीय | को उत्कीर्णकर इतिहास और पुरातत्व को एक अनूठी, बलिष्ठ व्यक्तित्व विभिन्न कवियों, कलाकारों एवं सरस्वती- | अमर पुण्य विभूति प्रदान की। इससे चामुण्डराय का पुत्रों को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए बरबस प्रेरित करता | यश भी चिरस्थायी हो गया है। रहा। तीर्थंकर भगवान् आदिनाथ के समय से ही वे चर्चा | | शिल्पी चागद कोई पढ़ा-लिखा प्रसिद्ध पुरुष नहीं और विवेचना के केन्द्र बने रहे। संस्कृत के आचार्य था। उसके हाथ में कला थी, उसके छैनी-हथोड़े को जिनसेन, अपभ्रंश के श्रेष्ठ कवि पुष्पदन्त प्रभृति, उत्तर | आशीष और वरदान प्राप्त था। उसके हृदय में उसकी भारत तथा दक्षिण भारत के विभिन्न भाषाओं के श्रेष्ठ | माँ ने भगवद्भक्ति उत्पन्न की थी और दिया था त्याग कवियों ने अपनी-अपनी कृतियों में उनका चरित्र-चित्रण | एवं तपस्या का उपदेश जिसके बल पर वह अक्षुण्ण बड़े ही कलापूर्ण एवं अनूठे ढंग से किया है। अनुपम स्वरूप उत्कीर्ण कर सका और इतिहास-पुरुष भगवान् बाहुबलि का चरित्र श्रद्धालुओं को युगों- | बन गया। युगों से आकर्षित करता आ रहा है। सभी लोग पठन-| भगवान् बाहुबलि की मूर्ति के निर्माण के बाद पाठन, अर्चा, स्तुति, पूजा, ग्रन्थ-रचना मूर्ति-निर्माण आदि | चागद को जो यश और सम्मान मिला उसकी गौरवके रूप में उनके प्रति श्रद्धा-सुमन समर्पित करते आ | गाथा दक्षिण के जैन मंदिर आज तक गाते हैं। उसके रहे हैं. जो आज तक अमर और विख्यात हैं पर | उत्तराधिकारी शिल्पियों ने उसे सम्मान देने के लिए श्रवणबेलगोल में स्थित भगवान बाहबलि की प्रतिमा जो| जिनालयों का निर्माण करते समय अने १३ मार्च, ९८१ में तत्कालीन गंगनरेश राचमल्ल के | घोड़े पर बैठे हुए चागद शिल्पी की मूर्ति भी उत्कीर्ण महामात्य एवं प्रधान सेनापति श्री चामण्डराय ने निर्मित | की। उनके बाएँ हाथ में चाबक है जो इस बात का कराई थी वह आज भारतीय इतिहास और पुरातत्व की प्रतीक है कि धर्म-विरोधियों को उचित दण्ड-विधान ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की विख्यात श्रेष्ठतम कलाकृति | किया जावे तथा दाएँ हाथ में श्रीफल जो इस बात का प्रतीक है कि प्रभु-कृपा सदा बनी रहे एवं पावों में खड़ाऊ भगवान् बाहुबलि की इस श्रेष्ठतम कलाकृति के | उत्कीर्ण है जो जिनालय की पवित्रता की प्रतीक है। प्रमुख शिल्पी (तक्षक) त्यागद बह्मदेव थे, जिन्हें कन्नड़ बाहुबलि की श्रवणबेलगोल-स्थित इस विराट में चागद शब्द से संबोधित किया जाता है। उन्होंने बाहुबलि | कलाकृति के निर्माण के लिए इसी चागद शिल्पी को को साक्षात् भगवान् का रूप प्रदान कर भारतीय पुरातत्व | चामुण्डराय ने आमंत्रित किया और अपनी माता की इच्छा को ही नहीं अपितु संसार के समस्त पुरातत्ववेत्ताओं को | उसके समक्ष प्रकट की। चागद उस विशालकाय विंध्यगिरि ऐसा सर्व सुन्दर कला-वैभव प्रदान किया है। जब तक के प्रस्तरखण्ड को देखकर विस्मय विमुग्ध हो गया जिस यह मूर्ति विद्यमान रहेगी तब तक उस श्रेष्ठ कलासाधक | पर उसे अपनी छैनी-हथोड़े की कला प्रदर्शित करनी महान् शिल्पी चागद को कोई भी नहीं भूल सकेगा और | थी। उसे अपनी शिल्पकला पर अभिमान था, पर इतने मार्च 2008 जिनभाषित 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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