Book Title: Jinabhashita 2008 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ आखिर क्या हैं निमित्तशास्त्रों की सीमाएँ ? वास्तुशास्त्र पर जिनभाषित के अक्टूबर, 05 अंक में बहुत संक्षिप्त व वैज्ञानिक आलेख पढ़ने को मिला । विचारक धन्नालाल जी को में साधुवाद देना चाहता हूँ । इस प्रकार के विमर्श होने चाहिए। मुझे इसी प्रसंग में स्मरण है जब महामहिम राष्ट्रपति डॉ० कलाम के शपथ ग्रहण की तैयारी हो रही थी। एन० डी० ए० सरकार के कुछ कैबिनेट स्तर के मंत्रियों ने उन्हें सलाह दी कि वे पंचांग देखकर शपथ का शुभमुहूत तय करवा लें। तब डॉ० कलाम ने कहा था कि जब तक पृथ्वी अपनी धुरी पर धूम रही है तब तक मेरे लिए सारे ही समय शुभ हैं। डॉ० कलाम का उत्तर एक जिम्मेदार भारत के प्रथम नागरिक तथा एक वैज्ञानिक होने के नाते भारतवर्ष के उस युग पर एक गहरी चोट था जिस युग में पढ़े लिखे अन्धविश्वासियों की एक पूरी जमात खड़ी हो गयी है। मैं कभी-कभी विचार करता हूँ कि अध्यात्मरस में निमग्न जैनाचार्यों के पास में तमाम ऋद्धियाँ - सिद्धियाँ होते हुये भी, अपने भीतर निमित्त शास्त्रों का ज्ञान, वास्तुशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र तथा ज्योतिषशास्त्र का प्रकाण्ड पाण्डित्य होते हुये भी आखिर उन्होंने इन विषयों को ज्यादा महत्त्व क्यों नहीं दिया? वो शायद इसलिए कि इसमें से एक भी 'सम्यग्ज्ञानं प्रमाणम्' की कोटि में नहीं आते । यद्यपि तंत्र-मंत्र, वास्तु, ज्योतिष आदि विषय एक गम्भीर व उपयोगी विषय हैं किन्तु इनकी भी सीमाएँ हैं । और इन विषयों का प्रयोग करनेवाले क्षेत्रों की भी अपनी मर्यादायें हैं। कुछ निश्चित लोग, कुछ बड़े - बड़े धार्मिक कार्यों के सम्पादन के लिए द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की शुद्धि का विचार कर लेते हैं उसका अपना अलग महत्त्व है। किन्तु ज्ञान विज्ञान के इस सुलझे आधुनिक शिक्षित युग में पुरानी परम्पराओं को सार्थक सिद्ध करने की कोशिश में वास्तु, ज्योतिष, तन्त्रमन्त्र के नाम पर तमाम गृहीत मिथ्यात्व की दकियानूसी मान्यताओं को नयी पीढ़ी को सौंपना कोई अच्छा कार्य नहीं है । और न ही शुभ संकेत । मुझे आश्चर्य तब होता है जब लाखों की नयी Jain Education International डॉ० अनेकान्त जैन कार खरीदकर भारतवर्ष का 'ए' क्लास ऑफीसर उस कार के पीछे टूटी चप्पल टाँग लेता है। एक इन्जीनियरिंग या मेडिकल का विद्यार्थी परीक्षा में सम्मिलित होने से पूर्व अपने गले में पड़ा ताबीज चूमता है तथा जेब में 'श्री यन्त्र' रखकर लाता है। पिछले दिनों अपने विश्वविद्यालय में वार्षिक परीक्षाओं के दौरान जब मैंने नकल के शक में एक विद्यार्थी की तालाशी ली तो उसकी जेब से एक चौकोर आकार का ताँबे का टुकड़ा मिला उस पर खण्ड बने थे तथा कुछ नम्बर खुदे थे और ऊपर लिखा था 'परीक्षोत्तीर्णयन्त्रम्' । सभी अध्यापक इस विमर्श में पड़ गये कि इसे अवैध सामग्री माना जाये अथवा नहीं। बहुत पूछताछ करने पर उसने बताया कि उसने यह यन्त्र एक पण्डित से दो सौ रुपये में खरीदा है। एक स्नातकोत्तर स्तर का विद्यार्थी जो भारतवर्ष की दिल्ली जैसी राजधानी में रहता है और पढ़ता है और मानता है कि मेरा भाग्य मुट्ठी में नहीं है बल्कि इस यन्त्र में है । मुझे यहाँ तक तो यह बात अच्छी लगती है कि मंदिर में प्रतिष्ठा आदि कार्यों के लिए पंचांग से शुभ तिथि व मुहूर्त का चयन किया जाता है, किन्तु यह बात अखरती है कि इस देश का नवयुवक रोज घर से निकलकर स्कूटर या बाइक स्टार्ट करने से पहले मुहूर्त देखे । ग्रहों, सितारों, राशियों का फल अखबारों में सुबह पढ़कर ही अपना टाइम टेबल बनाये । वास्तुशास्त्र जैसा गम्भीर व जटिल विषय भी आज तमाम रूढ़ियों और अंधविश्वासों से घिर कर दूषित हो रहा है। लोगों के इस अंधविश्वास का फायदा उठाकर कुछ पल्लवग्राही वास्तुशास्त्री मोटी रकम भी कमाते हैं। आज वास्तुशास्त्र का आसरा लेकर नव धनाढ्य वर्ग अपने भवनों, दूकानों आदि में परिवर्तन कर रहे हैं। करोड़ों की चीजें मिटाकर अरबों खर्च किये जा रहे हैं। कहीं यदि अर्थाभाव में या परिस्थिति वश परिवर्तन संभव नहीं है तो वास्तु पूजन और विधानों द्वारा उसकी शान्ति होती है। एक वास्तु पुरुष की कल्पना होती है, उसकी पूजन होती है। ये शौक आधुनिक भारत में उभरते उस नवधनाढ्य वर्ग के हैं जो अपने इन अनैतिक कमाई For Private & Personal Use Only मार्च 2008 जिनभाषित 20 www.jainelibrary.org

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