Book Title: Jinabhashita 2008 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 21
________________ कम्पनियाँ भी नये-नये रोगों की दवा बनाकर मुनाफा | कृत्रिम वातावरण में रखना, उनकी जैविक छेड़छाड़, ही मुनाफा कमा रही हैं। एक तथ्य यह है कि आज | बूचड़खानों की गंदगी, अव्यवस्था उन्हें रोगों से ग्रसित विभिन्न रोगों के वायरस जो आक्रमण कर रहे हैं ये | कर रही है। जब संक्रमण फैलता है तो उसे दबाया कोई स्वाभाविक नहीं है वरन् प्रयोगशाला में तैयार हो | जाता है और जब वश में नहीं रहता तब लाखों निरीह रहे हैं। एक देश दूसरे देश को कब वायरस का शिकार | जीवों को मार दिया जाता है। भारत में लगभग पैतींस बना दे, पता ही नहीं। विकसित देश जैविक हथियार | करोड़ रुपये वार्षिक का मुर्गीपालन कारोबार है। देश के रूप में इस तरह के वायरसों को खूब प्रयोग कर | के पोल्ट्रीफार्मो में करीबन पचास करोड़ मुर्गे-मुर्गियाँ पलते रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बर्डफ्लू वायरस भी | हैं, घरों एवं अन्य जगहों की तो कोई गिनती ही नहीं प्रयोगशाला के जैव विज्ञानियों की देन है। इस बीमारी | है। लगभग तीस लाख लोग इस धंधे में लगे हैं, लगभग को लेकर अनेक दवाईयाँ, टीका आदि बनाने का प्रयास | दो सौ करोड़ रुपये की आय तो उन ट्रक वालों को जारी है। पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है | ही होती है जो मुर्गे एवं अंडों को इधर से उधर ले क्योंकि बर्डफ्लू का विषाणु लगातार बदल रहा है और | जाते हैं। इतने बड़े व्यवसाय में संक्रमण होने पर न वैज्ञानिकों को डर है कि कहीं यह एक मनुष्य से दूसरे | केवल अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है बल्कि लोग आर्थिक मनुष्य में संक्रमण की विनाशकारी क्षमता न विकसित | संकट से भी घिर जाते हैं साथ ही मूक जीवों का कितना कर ले। घात होता है यदि कल्पना भी करो तो रोंगटे खड़े हो विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों | जायें। में बर्डफ्लू का खतरा सबसे अधिक मान रहा है। इसकी विज्ञान की तमाम प्रगति के चलते विश्व के अनेक जड़ में एच 5 ए 1 नामक विषाणु का संक्रमण है।। | देशों में विशेषकर दक्षिणी पूर्वी एशिया में बर्डफ्लू की जिससे यह बीमारी फैलती है। पोल्ट्रीफार्म के संक्रमित | विभीषिका हम सब देख ही चुके हैं। इंसान यदि अपनी मर्गे-मर्गियों में फैली इस बीमारी से लाखों जीवों को स्वार्थपरता छोड. प्रकति के नियमों का पालन करें और है और न जाने कहाँ इसका | अपने शाकाहारी भोजन पर आ जाये तो इन जीव जन्तुओं अन्त होगा। मुनाफा कमाने की होड़ में मनुष्य ने प्रकृति को जीवन मिल सकता है और मुर्गे की बाँग मात्र पुस्तकों संबंधी नियमों का सदैव उल्लंघन किया है पानी के | में ही नहीं पढ़ेंगे बल्कि वह सुनाई भी देगी। बढ़ते प्रदूषण से मानव क्या पशु-पक्षी भी संक्रमित हो शिक्षक आवास - 6 रहे हैं। जहरीले रसायनों, कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग श्री कुन्दकुन्द जैन महाविद्यालय परिसर, इन जीवजन्तु का विनाश कर रहे हैं। मुर्गे-मुर्गियों को | खतौली (उ.प्र.) वीतरागता धर्मसभा का आयोजन था। आचार्य महाराज का प्रवचन होने वाला था। सहसा भीड़ में हलचल हुई और एक वृद्धा मंच पर पहुंच गई। स्वयंसेवक दौड़े, उसे रोकना चाहा, पर इस बीच उसने प्रणाम निवेदित करके अपने कुछ स्वर्ण आभूषण उतारकर महाराज के चरणों में अर्पित कर दिए। सभी अवाक् देखते रह गए। मालूम पड़ा कि वह वृद्धा माँ, जन्मना जैन नहीं है, पर कर्मणा जैन अवश्य है। उसने आज पहली बार आचार्य महाराज के दर्शन किए हैं और उनकी वीतरागता और त्याग तपस्या से अभिभूत होकर अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया है। उस क्षण उसका भक्ति-भाव देखकर लगा कि धर्म सभी का है। उसे हर कोई धारण कर सकता है। जो सच्ची दृष्टि से, सच्चा ज्ञान दे और सच्चा रास्ता बताए, वही सच्चा धर्म और वही सच्चा गुरु है। मुक्ततागिरि (1990) मुनि श्री क्षमासागरकृत 'आत्मान्वेषी' से साभार मार्च 2008 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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