Book Title: Jinabhashita 2008 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 20
________________ जागरण-संदेशक की मूक चीखें डॉ० ज्योति जैन जी हाँ! मुर्गे की बाँग से ही पौ फटने अर्थात् । ये मात्र कुछ ही उदाहरण हैं बेजुबानों पर जिस तरह सुबह होने का संदेश आता था। मुर्गे की बाँग हमारी | मानव अत्याचार कर रहा है उसकी सभी सीमायें पार संस्कृति का एक हिस्सा है। बाल-कथाओं के पात्र के | हो रही हैं। मनुष्य प्रकृति के साथ महज उपभोग का रूप में हो या बच्चों के अक्षरज्ञान की किताबों के रूप | संबंध ही बना पा रहा है। जरा सी आशंका हुई नहीं में, हमारे जीवन में मुर्गा-मुर्गी के साथ पशु-पक्षियों की | कि उसे नष्ट करने पर तुल जाता है। एक-एक करके उपस्थिति सदैव रही है। पशु-पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियाँ समाप्त हो गयी हैं और व्यक्ति के जीवन का आधार घर, परिवार समाज | अनेक विनाश की कगार पर हैं। इसी तरह क्रम चलता या देश के साथ ही प्रकृति की हर वह चीज है जिससे | रहा तो मनुष्य जाति को भी अपना अस्तित्व बनाये रखना संबंध है। लेकिन क्या हम प्रकृति के साथ संबंधों | कितना मुश्किल हो जायेगा इस पर चिंतन करना आज का संतुलन कायम रख पाये हैं? नहीं आज मनुष्य के | के दौर में सबसे अधिक आवश्यक है। बढ़ते कदम, विकास के नये मापदण्ड, भौतिक सुख जंगली जीवों की अपनी भोजन श्रृंखला है एक सुविधाओं की लासला, चटोरापन और शून्य होती संवेदनाओं | जीव दूसरे जीव को आहार बनाता है। जीव जन्तु खाने से नैतिकता तो समाप्त हो ही रही है दया एवं करूणा | वाले यही तर्क देते हैं कि इन्हें मरना ही था, हमने जैसे गुणों का अभाव भी होता जा रहा है। अपनी लोभी- | मार दिया तो क्या? पर मनुष्यों की खाद्य श्रृंखला अलग वृत्ति से स्वार्थ से वशीभूत मनुष्य प्रकृति से छेड़-छाड़ है जैसे बड़ी मछली छोटी को खा जाती है पर एक कर उसे विनाश के मार्ग पर ला रहा है। आज अनेक | मनुष्य दूसरे मनुष्य को नहीं खा सकता। मनुष्यों का जीवों का अस्तित्व खतरे में है। ध्यान रहे यदि वह | भोजन तो शाकाहार ही है। आज की बदलती खानप्रकृति से छेड़छाड़ करेगा तो प्रकृति उसे भी नहीं छोड़ेगी। पान शैली में जिस तरह से मांसाहार को शामिल कर प्रकृति, मनुष्य, जीव-जन्तु सभी का आपस में संबंध | लिया गया है उसी तरह से पशु-पक्षियों की बीमारियों है, एक के संकट से दूसरे भी संकटग्रस्त हो जायेंगे। का खतरा भी तेजी से मंडराने लगा है। मेडकाऊ, बर्डफ्लू, हाल ही के समाचारों के अनुसार बंगाल के | सॉस, एड्स आदि रोगों के उदाहरण सामने हैं। इस समय. मुर्शिदाबाद जिले में 6 लाख मुर्गियों को बर्डफ्लू के कारण | बर्डफ्लू का खतरा पूरे विश्व में मंडरा रहा है। इतना मौत के घाट उतार दिया गया है तथा लाखों मुर्गे-मुर्गियों | सब होते हुए भी बटर चिकन, चिकन सूप, तंदूरी चिकन, को मौत देने की तैयारी चल रही है। इससे पहले भी | लाजबाव चिकन, कडाही चिकन, तवा चिकन, और न 2003 में सूरत में बर्डफ्लू की आशंका से एक लाख | जाने कौन-कौन से चिकन खाने वालों के ऊपर असर मुर्गे-मुर्गियों को मारा गया था। महाराष्ट्र के नंदुरवार जिले | दिखाई नहीं पड़ रहा है। असर तो पड़ रहा है उन के नवापुर तालुका में जब चालीस हजार मुर्गियाँ मरी | बेजुबान पशु-पक्षियों पर, जिनको संक्रमण का खतरा होते पायी गयी तब बर्डफ्लू के कारण तीन लाख मुर्गियाँ ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। इन बेजुबान पशु और छः लाख अंडे नष्ट किये गये। अन्य देशों में भी | पक्षी के लिये कौन-सी अदालत है जहाँ इन्हें न्याय मिल इसी तरह मुर्गे मुर्गियों को मारा जाता रहा है। इतना ही | सके? नहीं नवम्बर 1999 में श्रीलंका में 6 लाख मुर्गों को गैस | . मानव सभ्यता के विकास क्रम में जैसे-जैसे हम | प्रगति-पथ पर बढ़ रहे हैं, अपने विकसित किये संसार गिरावट। 1987 में लगभग दो करोड मेढकों को चीरफाड | के विनाश का मार्ग भी बनाते जा रहे हैं। दुनियाँ में में इस्तेमाल किया गया। बड़े पैमाने पर मछलियों के | जैसे मुक्त व्यापार तेजी से फैल रहा है उसी तरह महामारियाँ शिकार से मछलियों की चौतीस प्रतिशत प्रजातियाँ नष्ट | भी विभिन्न रूपों में फैल रही हैं। बीमारि हो गयी हैं और अनेक नष्ट होने के कगार पर हैं।। ने अन्तर्राष्ट्रीय खौफ पैदा कर दिया है। बहुराष्ट्रीय मार्च 2008 जिनभाषित 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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