Book Title: Jinabhashita 2008 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ अब भी देर नहीं हुयी है, सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाय तो उसे भूला नहीं कहते। हमें सिख समाज ने जो सबक दिया है, उस पर गौर से चिंतन करें और जैनियों को एक मंच से राष्ट्रीय स्तर पर रात्रि शादी निषेध का ऐलान करने में देरी नहीं करना चाहिए । अमीर एवं समाज के प्रतिष्ठित श्रावकों को रात्रि शादियों का न केवल बहिष्कार करना है बल्कि रात में होने वाली शादियों को खुद भी रोकने हेतु कमर कसनी होगी। अगर कोई जैन बंधु मना करने के बाद भी रात्रि में शादी करे तो जबरदस्ती ऐसी शादी रोकी जाना चाहिए। वर्तमान समय में रात्रि भोजन गरीब में अमीर की बारात में, ग्राम से शहर की बाराती में आम बात हो गयी है। इससे अन्य धर्मावलम्बी जैनों पर व्यंग, छींटाकशी तो करते ही हैं, हमारी जैनत्व की मूलभूत संस्कृति भी नष्ट हो रही है। हम हास्य के पात्र और पाप के भागीदार तो बन ही रहे हैं। अतः जरूरत अब दिन में विवाह करने की है, जिससे धर्म और संस्कृति की सुरक्षा हो सके । दिन में शादी करने के अनेक फायदे होते हुये भी हम रात्रि शादी की ओर क्यों बढ़ रहे हैं? हमारी संस्कृति भी रात्रि शादी की पक्षधर नहीं रही है। रात्रि शादियों में भौड़े नृत्य, फिल्मी गीत-संगीत, युवा वर्ग का शराब पीकर नाचना, घोर हिंसक आतिशबाजी, बिजली की अंधाधुध सजावट आदि क्या जैनियों को शोभा देता है । जरा चिंतन करें, कहीं हम अपनी आदर्श संस्कृति को कंलकित नहीं कर रहे हैं? सुखद है कि देश की राजधानी दिल्ली से जो फरमान सिख समाज ने दिया था, उससे सबक लेते हुए देश की राजधानी के जैन समुदाय ने एकजुटता का परिचय देते हुये दिन में शादियों का बिगुल फूंक दिया है, जिसमें हमारे पूज्य संतों की प्रमुख भूमिका है। 1 जनवरी, 2008 से दिल्ली जैन समाज ने एक आचार संहिता भी लागू कर दी है। जिसमें कहा गया है किविवाह समारोह दिन में आयोजित हों। अनावश्यक धन प्रदर्शन और तड़क-भड़क न हो। विवाह समारोह में सड़क पर नाच न हो । आतिशबाजी एवं शराब का प्रयोग नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति उल्लघंन करेगा, उसे समाज में बहुमान नहीं दिया जायेगा तथा जैन संस्था में पदाधिकारी नहीं बनाया जायेगा । निश्चित ही यह कदम बहुत ही प्रशंसनीय है। देश की राजधानी से यह कदम जैन समाज द्वारा उठाया गया है, तो निश्चित ही दूर तलक यह संदेश जायेगा। जब देश की राजधानी का जैन समुदाय ऐसा साहस भरा कदम उठा सकती है, तो प्रांतों की जैन समाज क्या प्रांतीय स्तर पर यह कदम नहीं उठा सकती? आशा है शीघ्र ही इस प्रेरणादायी निर्णय से प्रेरित होकर प्रत्येक प्रांत की जैन समाज रात्रि शादी निषेध की आचार संहिता लागू करेगी और एक दिन ऐसा होगा जब पूरे देश की जैन समाज दिन में शादी करने का आदर्श स्थापित कर एक नूतन इतिहास की रचना करेगा। अब देखने वाली बात यह होगी कि हमारे संत, नेता व संस्थायें इस अभियान में कहाँ तक अपना योगदान देते हैं। नरवां जिला सागर (म. प्र. ) आत्म-सूर्य रात बहुत बीत गई। सभी लोगों के साथ इंतजार कर रहा हूँ कि वे सामायिक से बाहर आएँ और हमें उनकी सेवा का अवसर मिले। सोच रहा हूँ कितना अद्भुत है जैन मुनि का जीवन कि यदि वे आत्मस्थ हो जाते हैं तो स्वयं को पा लेते हैं और आत्म- ध्यान से बाहर आते हैं तो हम उन्हें पाकर अपने आत्मस्वरूप में लीन होने का मार्ग जान लेते हैं । दीपक के धीमे-धीमे प्रकाश में उनके श्रीचरणों में बैठकर बहुत अपनापन महसूस कर रहा हूँ। मानो अपने को अपने अत्यन्त निकट पा गया हूँ। उनके श्रीचरणों की मृदुता मन को भिगो रही है। हम भले ही उनकी सेवा में तत्पर हैं, पर वे इस सब से बेभान अपने में खोये हैं। अद्भुत लग रहा है, इस तरह किसी को शरीर में रहकर भी शरीर के पार होते देखना । वह रात देखते-देखते बीत गई। दूसरे दिन सूरज बहुत सौम्य और उजला लगा। आज मुझे लौट जाना है। लौटने से पहले जैसे ही उनके श्रीचरणों को छुआ और उनके चेहरे पर आयी मुस्कान को देखा, तो लगा मानो उन्होंने पूछा हो कि क्या सचमुच पाओगे? क्या कहता? कुछ कहे बिना ही चुपचाप लौट आया और अनकहे ही मानो कह आया कि अब कभी, कहीं और, जा नहीं पाऊँगा। उनकी आत्मीयता ने मन को छू लिया है कि जैसे सुबह उगते सूरज ने द्वार खोलते ही अपनी प्रकाश रश्मियों से बाहर भीतर सब तरफ से हमें भिगो दिया हो। अपने इस आत्म-सूर्य को मेरा प्रणाम। (कुण्डलपुर 1976 ) मुनि श्री क्षमासागरकृत 'आत्मान्वेषी' से साभार मार्च 2008 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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