Book Title: Jinabhashita 2007 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 14
________________ ब्रह्ममुहूर्त में जागरण मुनि श्री सुधासागर जी जैन परम्परा में ब्रह्ममुहूर्त को जागरण, अध्ययन एवं | हैं, यह अंगूठे के पहले पोर और अखरी पोरे के बीच का चिन्तन के लिए सबसे अच्छा समय माना गया है। यदि इस | स्थान है। यह दोनों पोरों के बाद आना चाहिए। यह श्रीफल समय का सही सदुपयोग हो तो बल, वीर्य, विद्या और क्रांति | कहलाता है। श्रीफल को प्रशस्त इसलिए माना जाता है कि बढ़ती है। ब्रह्ममुहूर्त में जागकर देवार्चन करना, अपने माता- हर व्यक्ति के पास एक श्रीफल है। दोनों हाथ जोड़कर पिता को प्रणाम करना और गुरु की सन्निधि प्राप्त कर उनके | श्रीफल का आकार धारण कर नमस्कार करना चाहिए। कई उपदेश को ग्रहण करना श्रेष्ठ माना गया है। ब्रह्ममुहूर्त में | लोग मुट्ठी बांधकर के नमस्कार करते हैं, यह सब अशुभ श्रावक को जागृत होना चाहिए। चार बजे के बाद जो सोकर | नमस्कार कहलाते हैं। कई लोग पीछे हाथ करके नमस्कार उठता है वह जैन और ब्राह्मण नहीं। पहले ऐसी मान्यता थी करते हैं, यह सब विनाशक नमस्कार कहलाते हैं। सही कि ब्रह्ममुहूर्त में जैन, ब्राह्मण, क्षत्रिय को सूर्य कभी सोते हुए | नमस्कार यह है कि अञ्जुलि को बंद करके अंगूठे को नहीं देख पाता। चक्रवर्ती को सूर्य यह देखने के लिए तरस | मिलायें और इसे दोनों भौंहों के बीच में रखना चाहिए, यह गया कि यह कब सोता है? सारी जिन्दगी सूर्य नारायण, | केन्द्र बिन्दु कहलाता है- 'कंसेन्ट्रेशन ऑफ माइण्ड' (Conचक्रवर्ती को सोया हुआ नहीं देख पाया। प्रातः चार बजे | centration of Mind) यानि आपको 'कंसेन्ट्रेशन' करना है, उठता था और रात्रि में दस बजे सोता था तो सूर्य देखेगा | मन को एकाग्र करना है तो भौंहों के मध्य स्थान को यदि कैसे? सारी जिन्दगी यही क्रम चला। करोड़ों वर्षों की जिन्दगी आप थोडा सा दबायेंगे तो सारे, दुनिया भर के विकल्प ट थी; लेकिन दिन में कभी नहीं सोया। ब्रह्ममुहूर्त में जाग | जाते हैं । ज्ञानार्णव में आचार्य शुभचन्द्र महाराज ने कहा कि उठता था। सुप्रभात स्तोत्र में कामना की गई है कि- सबसे पहले यदि व्यक्ति को ध्यान में बैठना है तो भौंहों के यत्स्वर्गा-वत-रोत्सवे यदभवजन्माभिषे-कोत्सवे, मध्य को दबा देता है और दबाते ही वह अपने आप चारों यद्दीक्षा-ग्रहणोत्सवे यदखिल ज्ञान-प्रकाशोत्सवे। तरफ से चला जायेगा। आप यदि जोर से इसे पकड़ें, कितने यन्निर्वाणगमोत्सवे जिनपतेः पूजाद्भुतं तद्भवैः, भी चिन्तित हों, कितने भी विपरीत भाव आ रहे हों, तो मन संगीत-स्तुति-मङ्गलैः प्रसरतां मे सुप्रभातोत्सवः॥ प्रशस्त हो जायेगा, मन ठीक हो जायेगा। यह नमस्कार करने अर्थात् श्रीजिनेश के स्वर्ग से माता के गर्भ में आने के का परिणाम कहलाता है। तो सबसे पहले बिस्तर से उठकर, समय किये गये उत्सव में, जन्माभिषेक के समय किये गये बिस्तर पर ही यह अञ्जुलि जोड़िये और नमस्कार करिये, उत्सव में, दीक्षा ग्रहण करने के समय किये गये उत्सव में, | नमस्कार में यह प्रणाम कहलाता है। और फिर झुककर के केवलज्ञान के समय किये गये उत्सव में एवं मोक्षप्राप्ति के कमर को झुकाकर के आठों अङ्ग जिसमें झुक जायें, गवासन समय किये गये उत्सव के प्रसंग पर श्रीजिनेन्द्र भगवान् की से नमस्कार करें। जो आप घुटने टेककर नमस्कार करते हों; जो आश्चर्यकारी पूजा हुई; उसी प्रकार के मंगल रूप गायन यह नमस्कार प्रशस्त नहीं है, इस नमस्कार के संबंध में और स्तुति से मेरा नव-प्रभात महोत्सव भी सदा सम्पन्न हो। शास्त्रों में कोई चर्चा नहीं है। ऐसा आप इसलिए करते हैं कि ब्रह्ममुहूर्त में प्रत्येक श्रावक को उठकर के ध्यान पैण्ट न फट जाये या क्रीज न बिगड़ जाये; लेकिन सही करना चाहिए कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, कहाँ जाना है नमस्कार गवासन से करने का विधान है। फिर आप ? सबसे पहले उठकर के आपको हाथ जोड़ना चाहिए। हाथ | पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हुए नमस्कार करिये। उसके जोड़ने का तरीका यह है कि दोनों हाथ जोड़िये। कई लोग बाद आप फिर अञ्जुलि को सामने लाइये और अञ्जुलि को अशुभ नमस्कार करते हैं। जब शत्रुओं के विनाश, उच्चाटन, सामने लाकर अञ्जुलि को खोलिये, दोनों मिली रहें तो मारण आदि बुरे कार्य किये जाते हैं तब यह अशुभ नमस्कार सामने आपको सबसे पहले चार अंगलियाँ दिखेंगी। ये चार होता है, यह शुभ नहीं माना जाता । नमस्कार यों होना चाहिए अंगुलियाँ दिखते ही इनके बीच में आपको एक-एक पोरा कि जो अंगठे के बीच का स्थान है, यह नमस्कार करते दिखेगा। तो दोनों हाथ की चार-चार: यह कल आठ. आठ समय अपनी भौंहों के बीच में आना चाहिए। जो दोनों भौहें | के तीन गणा २४ यानी एक-एक पोरे पर एक-एक तीर्थकर 12 मार्च 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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