Book Title: Jinabhashita 2007 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 29
________________ में पाये जाते हैं। यथा हये है। यः सदा विदधात्येनां सः स्यान्मुक्तिश्रियः पतिः।। "ज्ञानतोऽज्ञानतो वापि शास्त्रोक्तं न कृतं मया।" इतीन्द्रनंदियोगीन्द्रैः प्रणीतं देवपूजनम्॥ विसर्जन का यह पहला पद्य आशाधर प्रतिष्ठापाठ से लिया एकसन्धि का पंचोपचारी पूजा के लिये इन्द्रनंदि का है जो उसके पत्र १२३ पर पाया जाता है। प्रमाण पेश करना साफ बतलाता है कि उनके समय में इस 'आह्वानं नैव जानामि' और 'मन्त्रहीनं क्रियाहीनं' आदि विधि का प्रतिपादक सिवाय इन्द्रनन्दि के और कोई पूजा- | विसर्जन के दो पद्य सूरत से प्रकाशित भैरवपद्मावतीकल्प के ग्रन्थ मौजूद नहीं था। यहाँ तक कि इन्द्रनन्दि के साथ उन्होंने | साथ मुद्रित हुये पद्मावती स्तोत्र में कुछ पाठभेद के साथ पाये आदि शब्द भी नहीं लगाया है यह खास तौर से ध्यान देने | जाते हैं वहीं से इसमें लिये गये हैं। वे पद्य इस प्रकार हैंयोग्य है। आह्वाननं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। यशोनंदिकृत संस्कृत पंचपरमेष्ठी पूजा में भी आशाधर पूजामों न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥ की तरह चार ही उपचार मिलते हैं विसर्जन उसमें नहीं है। आज्ञाहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यत्कृतम्। किन्तु यशोनंदि का समय अज्ञात है कि वे आशाधर के तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि। पूर्ववर्ती हैं या उत्तरवर्ती? अलावा इसके पंचोपचार में प्रयुक्त हुये 'संवौषट्' नित्यनियम पूजा में पाँचों ही उपचार पाये जाते हैं | 'वषट्' आदि शब्दों पर जब हम विचार करते हैं, तो स्पष्टतया किन्तु नित्यनियम पूजा किसी एक की कृति नहीं है। वह | यह प्रकरण मंत्रविषयक धोतित होता है। वीतराग भगवान संग्रहग्रन्थ है और उसमें कितने ही पाठ अर्वाचीन हैं। उदाहरण | की पूजा जिस ध्येय को लेकर की जाती है, उसमें इनका के तौर पर "जयरिसह रिसीसर णमियपाय" यह देव की | क्या काम? जयमाला का पाठ कवि पुष्पदन्त कृत अपभ्रंश यशोधरचरित्र वर्तमान में पूजाविधि का जो रूप प्रचलित है वह का है। उसमें शुरू में ही यह मंगलाचरण के तौर पर लिखा | कितना प्राचीन है? आशा है खोजी विद्वान् इसका अन्वेषण हुआ है- "वृषभोऽजितनामा च संभवाश्चाभिनन्दनः" पाठ | करेंगे। इसी अभिप्राय से यह लेख लिखा गया है। अय्यपार्य कृत अभिषेकपाठ का है जो अभिषेक पाठसंग्रह जैन निबन्ध रत्नावली (प्रथम भाग) से साभार के पृष्ठ ३१६ पर छपा है। ये अय्यपार्य विक्रम सं०१३७६ में 'जिनभाषित' के सम्बन्ध में तथ्यविषयक घोषणा प्रकाशन स्थान :1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा - 282002 (उ.प्र.) प्रकाशन अवधि :मासिक मुद्रक-प्रकाशक : रतनलाल बैनाड़ा राष्ट्रीयता :भारतीय पता :1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा - 282 002 (उ.प्र.) सम्पादक :प्रो. रतनचन्द्र जैन पता : ए/2, मानसरोवर, शाहपुरा, भोपाल - 462 039 (म.प्र.) स्वामित्व : सर्वोदय जैन विद्यापीठ, 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा - 282002 (उ.प्र.) मैं, रतनलाल बैनाड़ा एतद् द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है। रतनलाल बैनाड़ा, प्रकाशक -मार्च 2007 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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