Book Title: Jinabhashita 2007 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 15
________________ साधार है कुण्डलपुर डॉ.राजेन्द्र कुमार बंसल श्री अजीत टोंग्या का आलेख 'अधर में कुण्डलपुर'। पत्र पृष्ठ 'आ' में प्रकाशित हैं। यह स्थिति सहज संदेह को जैन गजट दि. १२/१०/२००६, १९/१०/२००६ एवं उत्पन्न करती है। २/११/२००६ में प्रकाशित हुआ है जो आगे भी प्रकाशित अंतरिम आदेश को श्री टोंग्याजी ने कण्डलपर को होता रहेगा। इस आलेख में टोंग्याजी ने श्री मूलचन्द जी | अधर, में निरूपित किया। इसकी सच्चाई जानने हेतु माननीय लहाडिया के आलेख 'सत्यमेव जयते'(जैन गजट ५/१०/ उच्च न्यायालय के आदेश दि.२०/०५/२००६ का अध्ययन २००६)की गहन तार्किक समीक्षा कर उसे सफेद झूठ सिद्ध किया। उससे जैनदर्शन का आधार 'सत् द्रव्य लक्षणम्' किया है। इसके साथ ही आपने उच्चतम न्यायालय के | सहज सिद्ध हुआ और इसकी प्रतीति हुई कि कोई भी वस्तु अंतरिम आदेश दि. २०/०५/२००६ की समीक्षा / पुनरीक्षा | आधारहीन नहीं है साधार है। निर्णय के निम्न कार्यभूत सार कर उसके कुछ बिन्दुओं को अनपेक्षितरूप से उभारा है, | से आपको भी ऐसी ही प्रतीति होगी। जिनका समाधान अपेक्षित है। जैन गजट दि. २८/०९/२००६ न्यायालय के आदेश की संक्षिप्त विवेचना एवं स्थगन में भी आपने 'कुण्डलपुर कोहराम----(बहस जारी है)' आदेशमें प्राचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जी के आलेख 'हमारे कुछ | माननीय न्यायालय जबलपुर के समक्ष याचिकाकर्ता विनम्र सुझाव' (जैन गजट दि.२४/०८/२००६)में कुछ छूटे | भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल ने याचिका प्रस्तुतकर बिन्दु जैसे - असली अपराधी कौन, मार्गदर्शन एवं सूत्रधार | कुण्डलपुर के बड़े बाबा के मंदिर और मूर्ति को 'प्राचीन था विष वृक्ष संवैधानिक संदिग्धता आदि के बिन्दुओं | स्मारक और संरक्षित' (एनशियेन्ट मोनुमेन्ट एण्ड आर्किको उभारकर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी को प्रकरण में | ओलाजीकल साईट्स एण्ड रिमेन्स एक्ट १९५८) मान कर संलिप्त करने का प्रयास किया है। इसी बीच श्री टोंग्याजी | उसके निकट नवीन मंदिर निर्माण को निषिद्ध करने एवं का 'कुण्डलपुर कोहराम भाग- २' दि. २०/११/२००६ को | यथास्थिति बनाए रखने हेतु निवेदन किया। न्यायालय ने प्राप्त हो गया है। इसमें सर्वाधिक चिंतनीय बिन्दु पृष्ठ - | दोनों पक्षों की दलीलों को सुनकर दि. १७/०१/२००६ को 'आ' में प्रकाशित लेखक के छद्म स्वरूप को सही सिद्ध | यथास्थिति बनाए रखने हेतु आदेश दिया। प्रतिपक्ष कुण्डलपुर करते हुए यह तर्क दिया गया है कि हमारे यहाँ तो बड़े-बड़े ट्रस्ट का कथन है कि बड़े बाबा का मंदिर उक्त कानून के आचार्यों ने आपातकाल में छद्म नाम व भेष का आश्रय लिया अंतर्गत प्राचीन स्मारक एवं संरक्षित नहीं है। बड़े बाबा की है, अत: लेखक का अपने नाम को गुप्त रख अपने विचारों | प्राचीन मूर्ति जीवन्त और पूज्य है। मंदिर की मरम्मत आदि को संप्रेषित करना कोई आपराधिक कृत्य नहीं है-----' ट्रस्ट द्वारा होती है। मंदिर जीर्ण हो गया है। भूकम्परोधी स्थान अपने प्रमाण में किसी आचार्य का नामोल्लेख नहीं किया, | पर मूर्ति प्रस्थावित की जा रही है । दि. १७/०१/२००६ को ही जिन्होंने लेखक जैसा भय में कपटाचार किया हो। स्पष्ट है | बड़े बाबा की मूर्ति नवनिर्मित मंदिर की वेदी पर विराजमान समूची आचार्य परम्परा को अपने जैसा सिद्ध करने में कोई | हुई। याचिकाकर्ता का कथन है कि स्थगन आदेश का उल्लंघन परहेज नहीं किया। यह उल्लेखनीय है कि कुण्डलपुर | हुआ और मूर्ति स्थगन आदेश के बाद हस्तांतरित हुई है। कोहराम-प्रथम की प्राप्ति पर मैंने दो पत्र लेखक को लिखकर | स्थगन आदेश की अवहेलना का प्रकरण माननीय न्यायालय अनुरोध किया था कि वे अपने उद्देश्य की पूर्ति में चा.च. | के समक्ष विचाराधीन है। (अन्य अनेक प्रकरण कानून आचार्य श्री शांतिसागर जी की गरिमा को प्रश्न-चिह्नित न उल्लंखन के स्थानीय पुलिस स्टेशन में दर्ज हए जिनकी करें। दि. २४/०९/२००६ को लेखक के भाई श्री रमेश जी ने | विधि अनुसार कार्यवाही विचाराधीन है)बाईस पदीय आदेश मुझसे फोन पर लम्बी चर्चा की और अपने पक्ष को रखते | दि. २०/०५/२००६ के पद एक से छह में इसका विस्तृत हुए बताया कि श्री अजीत टोंग्या कृषक हैं और वे मेरे पत्रों विवरण है। का उत्तर देंगे। उनका पत्रोत्तर अभी तक नहीं आया और न अंतरिम प्रार्थना पत्र ही उन्होंने कुण्डलपुर कोहराम भाग-२ में मेरे पत्रों को प्रकाशित प्रति प्रार्थी ट्रस्ट में दि. ७/०१/२००६ (१८ एवं ही किया, जबकि अन्य महानुभावों के समर्थन करनेवाले | २३/०१/२००६)के स्थगन आदेश में संशोधन हेतु प्रार्थना -फरवरी 2007 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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