Book Title: Jinabhashita 2007 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 30
________________ पर भी उपलब्ध नहीं है। यदि आपकी जानकारी में हो, तो इस अंक का सम्पादकीय लेख एवं बेरिस्टर चम्पतराय अवश्य ही सूचित करें, जिससे उसके प्रकाशन की व्यवस्था | एवं गाँधीजी के पारस्परिक पत्रों का विशेषरूप से अध्ययन बाबत निर्णय लिया जा सके. या कोई जिनवाणी भक्त उसे | करना चाहता हूँ, जो कि अद्वितीय हैं। धन्यकुमार दिवाकर स्वयं अपनी ओर से प्रकाशित कर दे। शेष क्षेम, द्वारा-दिवाकर कटपीस भण्डार हेमचन्द्र जैन 'हेम' अमर टाकीज के सामने, सिवनी (म.प्र.) कानजीस्वामी स्मारक ट्रस्ट, कहान नगर, 'जिनभाषित' वर्ष ६ अंक १ जनवरी २००७ का लामरोड, देवलाली (नासिक) सम्पादकीय 'समता-नि:कांक्षिता में अनुत्तीर्ण गृहस्थ मुनिजिनभाषित का दिसम्बर २००६ का अंक सामने है। | डिग्री का पात्र नहीं।' अच्छा लगा। शिथिलाचारी मनियों को जब भी अंक सौभाग्य से पढ़ने मिल जाता है, पूरा अंक | अपनी चर्या सुधारना चाहिए, ताकि दिगम्बरमनिधर्म पूरी पढ़कर ही पढ़ने का लोभसंवरण कर पाता हूँ। तरह से सुरक्षित रह सके। आज जो भी विद्वान् शिथिलाचार नूतन वर्ष २००७ की बेला पर 'दिगम्बर जैन परम्परा | के सम्बन्ध में लिखता है, उसे समाज के कछ लोग (जिन्हें को मिटाने की सलाह' सम्पादकीय ने निश्चित ही अनेक आगम का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है) अच्छा नहीं कहते, लोगों की तन्द्रा को भंग किया होगा तथा अनेक लोगों की | जबकि वे स्वयं जानते हैं कि उन शिथिलाचारी मनियों की शंकायें भी समाप्त हुई होंगी। निश्चित ही दिगम्बर मुनि | चर्या मुनिधर्म के अनुकूल नहीं है। कुछ मुनि आत्म प्रचार में हमारे आराध्य हैं और उनके नग्नत्व पर जैन समाज द्वारा ही लिप्त दिखाई दे रहे हैं। कुछ व्यक्ति बिना बजह पंथवाद से सवाल उठाना हास्यास्पद है। आपने प्रामाणिक तथ्यों के | ग्रसित होकर पज्य मनि श्री सधासागर जी जैसे महान मनियों साथ सम्पादकीय लिखकर नये वर्ष पर एक अच्छी पहल की भी आचोलना करने से बाज नहीं आ रहे हैं जो चिंता का की है। निश्चित ही यह सम्पादकीय जैन समाज में नया | विषय है। डॉ. सुरेन्द्र जैन, मंत्री अ.भा. दि. जैन विद्वत् परिषद चिंतन लायेगी और दिगम्बर मुनि को कपड़े पहनाने की राय ने 'चुप्पी तोड़ें विद्वान्' लेख में निर्भीकता से विद्वानों और देनेवालों को भी सबक मिलेगा। उनकी परिषदों की आलोचना करनेवालों को सटीक जबाब 'आओ एक अभियन चलाएँ' भाई शैलेष शास्त्री का | दिया है। यदि २५ विद्वान एक-एक लेख भी लिखें तो रात्रिभोजन पर लेख प्रासङ्गिक है। पं. पुलकशास्त्री एवं डॉ. आलोचकों को भी समझ में आ जाये। निश्चयाभास-समर्थक अखिल जी वंसल के लेखों ने भी जिनभाषित को गौरव | तो मनियों को लडाने में विश्वास रखते हैं। खेद है कि कछ प्रदान किया है। विद्वान् भी उनकी चालों में फंस रहे हैं। कुण्डलपुर का मंदिर पं. सुनील संचय' जैनदर्शनाचार्य | तो आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं उनके संघ के श्रुत संवर्द्धन संस्थान प्रथमतल २४७ साधुओं को अप्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष रूप से निशाना बनानेवालों के दिल्ली रोड, मेरठ (उ.प्र.) लिए मुहरे के रूप में मिल गया है, जिसकी जितनी निन्दा की मझे कृपा करके 'जिनभाषित' मासिक पत्रिका का | जाये. कम है। जिनभाषित में लेखकों का दायरा बढाया जाये। दिसम्बर २००६ का अंक भेजने का कष्ट करें। डॉ. नरेन्द्र जैन, सनावद निःशुल्क प्रवेश परम पूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज | शासकीय शाला में लगने वाला प्रवेश शुल्क, अध्ययन के परम शिष्य पूज्य मुनि श्री प्रशांत सागर जी एवं निर्वेग | शुल्क संस्था द्वारा वहन किया जावेगा। स्थान सीमित है, सागर जी महाराज की प्रेरणा से धार्मिक नगरी बीना में श्री | अतः शीघ्र संपर्क करें। नाभिनन्दन दिगम्बर जैन पाठशाला (छात्रावास सहित) संपर्क सूत्र - अध्यक्ष-अभय सिंघई, मो. 9425171138 शैक्षणिक वर्ष 2007-2008 के जुलाई माह से लम्बे अंतराल मंत्री - विभव कोठिया 07580-223333 के बाद पुनः प्रारंभ की जा रही है। इसमें ८वीं बोर्ड एवं अधिष्ठाता - पं. निहालचंद जैन 07580-224044 १०वीं बोर्ड परीक्षा पास वे ही छात्र प्रवेश पा सकेंगे जो प्राचार्य - पं. राजेश शास्त्री मो. 09993181136 स्थानीय शासकीय शाला में अपना अध्ययन जारी रखते श्री नाभिनन्दन दिगम्बर जैन हितोपदेशनी सभा, हुए धार्मिक शिक्षा ग्रहण करना चाहेंगे। आवास, भोजन एवं | बीना (सागर)म.प्र. 28 फरवरी 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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