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के दो अशुद्ध पारिणामिक भावरूप होने से मार्गणा के कथन में घटित होते हैं। यदि इसप्रकार कहा जाये कि "शुद्ध और अशुद्ध के भेद से पारिणामिक भाव दो प्रकार का नहीं है परंतु एक शुद्ध ही है" तो ऐसा नहीं है । यद्यपि सामान्यरूप से उत्सर्ग व्याख्यान से शुद्ध पारिणामिक भाव कहा जाता है तो भी अपवाद व्याख्यान से अशुद्ध पारिणामिक भाव भी है। जैसे- 'जीव भव्याभव्यत्वानि च' इसप्रकार त. सूत्र में जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्वरूप तीन प्रकार पारिणामिक भाव कहा है। वहाँ शुद्ध चैतन्यरूप जीवत्व, अविनश्वरपने के कारण शुद्ध द्रव्य के आश्रित होने 'शुद्ध द्रव्यार्थिक' ऐसी संज्ञा वाला शुद्ध पारिणामिक भाव कहलाता है और जो कर्मजनित दसप्राणरूप जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्वरूप से तीन हैं वे विनश्वरपने के कारण पर्यायार्थिक होने से ' पर्यायार्थिक' ऐसी संज्ञा वाले अशुद्ध पारिणामिक भाव कहलाते हैं
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प्रचार-प्रसार - सहयोग
अत्यन्त प्रसन्नता की बात है कि 'जिनभाषित' की लोकप्रियता तथा विशिष्ट शैली को देखकर निम्नलिखित महानुभावों ने सहर्ष, स्वेच्छा से इस पत्रिका के प्रचार-प्रसार में अपना सहयोग देने का संकल्प लिया है।
ब्र. पं. राजकिंग जैन प्रोशेसन रोड, पुराना बाजार, अशोकनगर (म.प्र.) फोन 09329276951
आप स्व. श्री राजेन्द्रकुमार जी जैन के सुपुत्र हैं। आप पू. आ. विद्यासागर जी के परम भक्त हैं ।
अभी युवा एवं अविवाहित हैं ।
वर्तमान में संगीत में एम.ए. कर रहे हैं । आपने धार्मिक शिक्षण श्री वर्णी दि. जैन गुरुकुल जबलपुर में लिया है। विधान कराने तथा संस्कार शिविर आदि लगाने में आप दक्ष हैं। आकाशवाणी से आपके भजनों का प्रसारण होता रहता है । सुमधुर वाणी द्वारा सबको मोहित करने में आप कुशल हैं।
26 फरवरी 2007 जिनभाषित
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प्रश्न- अशुद्धपना कैसे है ?
उत्तर- यद्यपि ये तीन अशुद्ध पारिणामिक भाव व्यवहार से संसारी जीव में हैं तो भी " सव्वे सुद्धा हु सुद्धणया" (शुद्ध नय से सर्व संसारी जीव वास्तव में शुद्ध हैं), इस वचन से शुद्धनिश्चयनय की अपेक्षा से (संसारी जीव में) ये तीनों भाव नहीं हैं और मुक्त जीव में तो सर्वथा नहीं हैं, इस हेतु से अशुद्धपना कहलाता है । यहाँ शुद्ध और अशुद्ध पारिणामिक भावों में से शुद्ध पारिणामिक भाव ध्यान के समय ध्येयरूप होता है, क्योंकि ध्यान पर्याय विनश्वर है और शुद्ध पारिणामिक भाव तो द्रव्यरूप होने से अविनश्वर हैं, ऐसा भावार्थ है ।
भावार्थ- उपरोक्त कथन से स्पष्ट होता है कि संसारी जीव में दसप्राणरूप जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व ये तीन अशुद्ध पारिणामिक भाव हैं और मुक्त जीवों में जीवत्वरूप शुद्ध पारिणामिक भाव पाया जाता है। इस तरह पारिणामिक भावों के शुद्ध और अशुद्ध दो भेद स्पष्ट |
1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा (उ.प्र . )
पं. राहुल जैन, द्वारा श्री ऋषभ कुमार जी जैन होली का मैदान, पुराना बाजार, पिपरई (जिला- अशोकनगर ) म.प्र. फोन 07548-224706
आप श्री ऋषभ कुमार जी के सुपुत्र हैं । आपने धार्मिक व शिक्षा श्री वर्णी दि. जैन गुरुकुल जबलपुर में प्राप्त की है । आपका शौक संगीत एवं काव्यरचना है। आप पू. आ. विद्यासागर जी महाराज के परम भक्त हैं। डॉ. अनेकान्त कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिसर इन्दौर में दि. 14 जनवरी 06 को आयोजित पुरस्कार समर्पण समारोह में वर्ष 2004 का कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार डॉ. अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली को उनके शोध प्रबन्ध 'दार्शनिक समन्वय की दृष्टि नयवाद' पर प्रदान किया गया। डॉ. अनेकान्त नई दिल्ली स्थित श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय) में जैनदर्शन विभाग में वरिष्ठ व्याख्याता हैं
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डॉ. हरेराम त्रिपाठी
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