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तीर्थंकर पद्मप्रभ एवं नमिनाथ के चिह्नकमलों में भिन्नता
तीर्थंकरों के जन्म के पश्चात् जब सौधर्म इन्द्र बालक को जन्माभिषेक हेतु पाण्डुक शिला पर विराजमान करते हैं, तब सौधर्म इन्द्र को बालक तीर्थंकर के पैर के अँगूठे में एक चिह्न दिखाई देता है, वही चिह्न उन तीर्थंकर का लांछन माना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक तीर्थंकर का चिह्न अलग-अलग होता है । चिह्न पशु-पक्षियों से लेकर स्वस्तिक, कलश, शंख, वज्रदण्ड एवं चन्द्रमा आदि तक होते हैं। यदि पर्यावरण के दृष्टिकोण से आकलन करें, तो पाते हैं कि ये चिह्न हमारे वातावरण के जीवित एवं अजीवित दोनों प्रमुख अवयवों का प्रतिनिधित्व करते हैं । तीर्थंकरों के ये चिह्न मानव जगत् को पर्यावरण के संरक्षण का उपदेश भी देते हैं कि जीवितों को अभय प्रदान करो एवं अजीवित वस्तुओं का आवश्यकतानुसार एवं बुद्धि पूर्वक उपयोग करो ।
वैसे तो लगभग सभी तीर्थंकरों के चिह्न अलगअलग हैं एवं उन्हें पहिचानने में कोई कठिनाई नहीं आती है, परन्तु छठे तीर्थंकर भगवान् पद्मप्रभ एवं इक्कीसवे तीर्थंकर भगवान् नमिनाथ, दोनों के चिह्न क्रमशः श्वेतकमल एवं नीलकमल हैं। इन चिह्नों को जब भगवान् की मूर्ति के पादपीठ में अंकित किया जाता है, तब भिन्नता दिखाई नहीं देती है, क्योंकि मूर्तिकार दोनों प्रतिमाओं के नीचे एक जैसा ही कमल उकेर देते हैं। एक और कारण यह भी है कि पत्थर अथवा धातु पर रंगीन आकृति उकेरना संभव नहीं होता है। प्रस्तुत आलेख के लेखक ने इस लेख में दोनों प्रकार के कमल के फूलों में भिन्नता दर्शायी है एवं प्रतिमाओं पर विभिन्नतावाले चिह्नों को प्रदर्शित करने के लक्षण भी प्रस्तुत किये हैं ।
श्वेत कमल छठे तीर्थंकर भगवान् पद्मप्रभ का लांछन श्वेतकमल है। इस कमल का रंग गुलाबी अथवा हल्का पीला भी हो सकता है। संस्कृत में इसे अम्बुज अथवा अरविन्द भी कहा जाता है। लेटिन भाषा में इसे निलम्बो न्यूसीफेरा (Nelumbo nucifera ) नाम दिया गया है, जो कि निलम्बोनेसी कुल का सदस्य है । अँग्रेजी भाषा में इसे इण्डियन लोटस अथवा चाईनीज वाटर लिली भी कहा जाता है।
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32 फरवरी 2007 जिनभाषित
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प्रो. डॉ. अशोक जैन
श्वेत अथवा गुलाबी कमल एक जलीय, बहुवर्षीय एवं देहा-कुरधारी (स्टोलोनीफेरस) प्रकार का पौधा होता है। इसकी पत्तियाँ कुछ-कुछ गोलाकार अथवा हृद होती है। पत्तियाँ पानी की सतह से ऊपर आ जाती हैं। पुष्प का बाहरी पुष्पदल कुछ सफेद-हरा एवं भीतरी पुष्पदल सफेद-गुलाबी, हल्का पीला अथवा पूर्ण रूप से सफेद होता है । पुष्प के मध्य में एक मांसल एवं डिस्क जैसी संरचना स्थित होती है, जिसे 'टोरस' (Torus) कहा जाता है।
नील कमल - इक्कीसवें तीर्थंकर भगवान् नामिनाथ का चिह्न नीलकमल है। लेटिन भाषा में इसे निम्फिया नौचली कहा जाता है जो कि निम्फिएसी कुल का सदस्य है।
यह भी एक बहुवर्षीय, जलीय एवं शाकीय पौधा है। इसकी पत्तियाँ बर्तुलाकार, किनारों से चिकनी अथवा कभीकभी लहरदार होती हैं। पत्तियों हमेशा पानी की सतह पर ही तैरती रहती हैं। पत्तियों की निचली सतह चिकनी होती है। इसके पुष्प नीले अथवा कभी-कभी बेंगनी रंग के होते हैं। इसके पुष्पों में पुंकेशर स्पष्ट एवं छोटे रेशेदार होते हैं। पंखुड़िया थोड़ी सँकरी एवं लम्बी होती हैं।
उक्त दोनों ही प्रकार के कमलों के कन्द एवं बीज खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग किये जाते हैं, जबकि जैनधर्म के अनुसार यह अभक्ष्यों की श्रेणी में रखे गये हैं। दोनों ही प्रकार के कमल सम्पूर्ण भारत के तालाबों में पाये जाते हैं। इनमें पुष्प मई माह से अक्टूबर माह तक आते हैं।
चिन्ह प्रदर्शित करने का तरीका - श्वेतकमल को चित्रांकन करने अथवा प्रतिमा के पाद में उकेरने के लिये पुष्पदल (पंखुड़ियों) को थोड़ा घना एवं चौड़ा बनाया जाना चाहिए एवं पुष्प के मध्य एक डिस्क जैसी संरचना (टोरस) बनाना चाहिये ।
नीलकमल का पुष्पदल अर्थात् पंखुड़ियाँ आकार में सँकरी एवं थोड़ी लम्बी बनाना चाहिए। ये घनी भी कम होती हैं एवं पुष्प के मध्य में डिस्क (टोरस) का अभाव होता है।
इन दोनों प्रकार के कमलों के चित्र दायें पृष्ठ पर देखिए ।
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