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लिए विगत् दो माह बहुत दुखद व्यतीत हुए जिनने हमारे । जन्म दिनांक १६, अप्रैल १९२६ को बड़ा शाहगढ़ (छतरपुर
बीच से श्रीमान् पं. दयाचंद्र जैन साहित्याचार्य, पं. पद्मचंद्र जैन शास्त्री, पं. खूबचंद्र जैन सिद्धांत शास्त्री एवं प्रो. डॉ. नंदलाल जैन को सदा-सदा के लिए छीन लिया। यह चारों ही विद्वान् जैन धर्म, दर्शन एवं साहित्य के अप्रतिम मनीषी थे, जिनके निधन से जैन धर्म और समाज की अपूरणीय क्षति हुई है। उक्त चारों विद्वानों का संक्षिप्त परचिय इस प्रकार है
म.प्र.) में हुआ था । जैन दर्शन शास्त्री एवं रसायन विज्ञानी डॉ. जैन ने 'नंदन वन', 'आपका स्वागत है', 'ग्लॉसरी ऑफ कृषि जैन टर्म्स', 'सर्वोदयी जैन धर्म' आदि कृतियों का लेखन तथा धवला पुस्तक-१, राज वार्तिक अध्याय- २,५ व
८ का अंग्रेजी अनुवाद किया है। वर्तमान में वे वर्णी जीवन गाथा का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे थे। उन्होंने कुछ साधु संतों के ग्रन्थों का भी अंग्रेजी में अनुवाद किया था। जो अभी अप्रकाशित है।
म.प्र. के पन्ना जिले के अजयगढ़ निवासी पं. दयाचंद्र जैन साहित्याचार्य सादगी पसंद इंसान थे। संस्कृत विद्या पर आपका अधिकार था । आपने अनेक साधुसंघों में अध्यापन कार्य किया तथा अनेक शिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण प्रदान किया। आपकी दि. २५/१२/२००६ को ८८ वर्ष की आयु में पन्ना, म.प्र. निधन हो गया।
अनेकान्त शोध त्रैमासिक पत्रिका एवं वीर सेवा मन्दिर नई दिल्ली के पर्याय माने जाने वाले आगमनिष्ठ विद्वान् पं. पद्मचंद जैन शास्त्री अपनी स्पष्टवादिता और आगमिक लेखन के लिये प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने सम्पादकीय लेखों, समीक्षाओं और मूल जैन संस्कृति अपरिग्रह आदि कृतियों के माध्यम से समाज में ख्याति अर्जित की। वृद्धावस्था में भी उनकी अध्ययन और कार्य के प्रति लगन तथा प्रेरक विचारशीलता हर किसी को लुभाती थी। उनका दिनांक १ जनवरी, २००७ को नई दिल्ली में ९२ वर्ष की आयु में निधन हो गया ।
बुन्देलखण्ड में पूज्य वर्णी जी की जैन धर्म ग्रहण भूमि तथा मन्दिरों एवं विद्वानों की नगरी मड़ावारा जिला ललितपुर, उ.प्र. में जन्मे श्री पं. खूबचंद जैन सिद्धान्त शास्त्री ने अध्ययनोपरांत अपने व्यवसाय के साथ ही नगर के बच्चों को जैन पाठशाला में अध्ययन कराना प्रारंभ किया और जैन धर्म और जैन संस्कारों का बीजारोपण किया। मुझे भी उनसे बालबोध एवं छहढाला आदि पढ़ने का सौभाग्य मिला। वे सादा जीवन उच्च विचार के प्रतीक थे । वे सहज श्रुत साधन कृति के लेखक थे। उनका दिनांक १४ जनवरी २००७ को ९७ वर्ष की आयु में मड़ावरा में निधन हो गया ।
जैन जगत के मूर्धन्य विद्वान् डॉ. नंद लाल जैन का
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उक्त चारों ही विद्वान् अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के वरिष्ठ सदस्य/संरक्षक थे। विद्वत्परिषद् के लिए इनके निधन से गहरा सदमा लगा है। मैं सम्पूर्ण अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वतपरिषद् की ओर से इन दिवंगत आत्माओं के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ तथा समस्त शोकाकुल परिवार जनों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूँ ।
डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन एल- ६५, न्यू इन्दिरा नगर, बुरहानपुर (म.प्र.) पिसनहारी - मढ़िया के पर्वत पर श्रीपार्श्वनाथ मंदिर निर्माण के ५० वर्ष
जबलपुर निवासी श्री दशरथ लाल जी (जन्म सन् १९२२) ने अपनी माँ की इच्छा को पूरा करने हेतु छोटे भाई ज्ञानचंद जी के सहयोग से पिसनहारी की मढ़िया के पर्वत पर जाते समय बायीं तरफ 'भगवान् पार्श्वनाथ' के एक विशाल कलात्मक मंदिर का निर्माण कराया । बसंत पंचमी दिनांक २३/१/०७ को इस मंदिर को निर्मित हुए पूरे ५० वर्ष हो गये । ५० वर्ष पुराने मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य श्री दशरथलाल जी के पुत्र, पुत्री, एवं श्री ज्ञानचंद जी के पुत्र श्री अशोक एवं श्री अभय करवा रहे हैं। श्री दशरथलाल जी आचार्य श्री विद्यासागर जी के परमभक्त थे । आप पिसनहारी मढ़िया के १८ वर्षों तक कोषाध्यक्ष रहे। सन् १९९६ ई. में आपने धर्मध्यानपूर्वक देहत्याग कर दिया।
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फरवरी 2007 जिनभाषित 31
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