Book Title: Jinabhashita 2007 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 27
________________ कुछ लोग इसे गलत बताते हैं जबकि मेरे कुत्ते, बिल्ली शाकाहारी । जीवों की हिंसा करने वाले कुत्ते-बिल्ली आदि पशुओं को । इस संबंध में शास्त्र क्या कहते हैं, बताइये । पालते हैं, अतिशय निर्दय हैं। वे जीव पाप के भार से नरक में प्रवेश करते हैं। जिज्ञासा- शुद्ध द्रव्यों में उत्पाद व्यय किस प्रकार होता है ? समाधान- कुत्ते, बिल्ली पालने को शास्त्रों में पाप का कारण एवं निषिद्ध कहा है कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं: 1. सर्वार्थसिद्धि 7/21 में अनर्थदण्ड की परिभाषा बताते हुए इसप्रकार कहा है- असत्युपकारे पापादान हेतुः अनर्थदण्डः । उपकार न होकर जो प्रवृत्ति पाप का कारण है उसे अनर्थदण्ड कहते हैं । अनर्थदण्ड के भेदों में एक भेद हिंसादान भी कहा गया है जिसकी परिभाषा कार्तिकेयानुप्रेक्षा में इसप्रकार कही है: समाधान- शुद्ध द्रव्यों में उत्पाद व्यय के संबंध में श्री सर्वार्थसिद्धि 5/7 की टीका में इस प्रकार कहा है: I मज्जार-पहुदि धरणं आउह-लोहादि विक्कणं जंच । लक्खा खलादि गहणं अणत्थ- दण्डो हवे तुरिओ ॥ 347 ॥ क्रियानिमित्तोत्पादाभावेऽप्येषां धर्मादीनामन्यथोत्पादः कल्प्यते । तद्यथा-द्विविध उत्पाद: स्वनिमित्तः परप्रत्ययश्च । स्वनिमित्तस्तावदनन्तानामगुरुलघुगुणामनामागमप्रामाण्यादभ्युपगम्यमानानां षट्स्थानपतितया वृद्ध्या हान्या च प्रवर्तमानानां स्वभावादेतेषामुत्पादो व्यययश्च । परप्रत्ययोऽपि अश्वादि गतिस्थित्यवगाहनहेतुत्वात् क्षणे क्षणे तेषां भेदात्तद्धेतुत्वमपि भिन्नमिति परप्रत्ययापेक्ष उत्पादो विनाशश्च व्यवह्वियते । अर्थ- धर्मादिक द्रव्यों में क्रियानिमित्तक उत्पाद नहीं अर्थ- बिलावादि हिंसक जन्तुओं का पालना, लोहे तथा अस्त्र-शस्त्रों का देना-लेना और लाख, विष आदि का लेना-देना चौथा हिंसादान अनर्थदण्ड है । भावार्थ- इस गाथा में बिलाव आदि हिंसक जन्तुओं है तो भी इनमें अन्य प्रकार से उत्पाद माना गया है। यथा को पालना अनर्थदण्ड कहा है। उत्पाद दो प्रकार का है, स्वनिमित्तक उत्पाद और परप्रत्यय उत्पाद । स्वनिमित्तक यथा- प्रत्येक द्रव्य में आगम से अनन्त अगुरुलघुगुण (अविभाग प्रतिच्छेद) स्वीकार किये गए हैं, जिनका छहस्थानपतित वृद्धि और हानि के द्वारा वर्तन होता रहता है, अतः इनका उत्पाद और व्यय स्वभाव से होता है। इसीप्रकार पर प्रत्यय का भी उत्पाद और व्यय होता है। यथा- ये धर्मादिक द्रव्य क्रम से अश्वादि की गति, स्थिति और अवगाहन में कारण हैं, चूंकि इन गति आदिक में क्षण क्षण में अंतर पड़ता है इसीलिए इनके कारण भी भिन्न-भिन्न होने चाहिए, इसप्रकार इन धर्मादिक द्रव्यों में प्रत्यय की अपेक्षा उत्पाद और व्यय का व्यवहार किया जाता है। सभी शुद्ध द्रव्यों में इसीप्रकार दो तरह से उत्पाद - व्यय मानना योग्य है। 2. तत्त्वार्थसार 4/33 में इस प्रकार कहा है मार्जारताम्रचूडादिपापीयः प्राणिपोषणम् । नैः शील्यं च महारम्भपरिग्रहतया सह ॥ 33 ॥ अर्थ- बिल्ली, कुत्ते, मुर्गे इत्यादि पापी प्राणियों का पालना, शीलव्रतरहित रहना और आरंभ तथा परिग्रह को अति बढ़ाना नरकायु के आस्रव के कारण हैं । उपरोक्त श्लोकों में कुत्ते, बिल्ली आदि को पालना नारका का आस्रव कहा है। आपका कुत्ता चाहे आपके द्वारा शाकाहारी समझा जाता हो परन्तु वह त्रस जीवों को मारने एवं गंदे स्थानों पर जाने से नहीं चूकता। अतः कुत्ते-बिल्ली आदि पापी प्राणी ही हैं और इनको पालना आगम में निषिद्ध पूज्य मुनि श्री सुधासागर जी ने अपने प्रवचन में कहा था कि जिन घरों में कुत्ते-बिल्ली आदि हिंसक प्राणी पाले जाते हैं, वे घर मुनि के आहार के योग्य नहीं हैं। अतः धार्मिक दृष्टि के अनुसार आपको ऐसे हिंसक जन्तुओं का पालन नहीं करना चाहिए। 3. श्री आदिपुराण सर्ग 10 में इसप्रकार कहा है:वधकान् पोषयित्वान्यजीवानां येऽतिनिर्घृणाः । खादका मधुमांसस्य तेषां ये चानुमोदकाः ॥ 26 ॥ अर्थ- जो मधु और मांस खाने में तत्पर हैं, अन्य Jain Education International जिज्ञासा- क्या पारिणामिक भाव भी शुद्ध-अशुद्ध दो प्रकार के होते हैं? आगम प्रमाण से समझायें । समाधान- बृहद् द्रव्यसंग्रह गाथा 13 की टीका में श्री ब्रह्मदेवसूरी ने पारिणामिक भाव के शुद्ध अशुद्ध भेद बताते हुए इसप्रकार कहा है : शुद्ध पारिणामिक भावों की अपेक्षा से गुणस्थान और मार्गणा का निषेध किया था, परंतु यहाँ भव्यत्व और अभव्यत्व फरवरी 2007 जिनभाषित 25 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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