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अतः इसमें कोई संदेह नहीं कि रामगढ़ पर्वत पर एवं आसपास | इसलिए जैनों ने इस प्राचीन प्रथा का खूब विकास किया प्राचीन काल में जैन मंदिरों का निर्माण किया गया था तथा | और आज तक इस पद्धति को सुरक्षित भी रखा है। यहाँ जैन बस्तियाँ थीं। यह अवश्य है कि कालांतर में धर्मद्वेषी जोगीमारा गुफा के ये जैन भित्तिचित्र न केवल राजाओं एवं विधर्मियों ने जैन मंदिरों का विनाश कर दिया | ऐतिहासिक महत्त्व के हैं, बल्कि ये तत्कालीन धार्मिक एवं
और इसके फलस्वरूप यहाँ से जैनों को प्राण-रक्षार्थ पलायन | सामाजिक जीवन को भी रेखांकित करते हैं। इस वर्ग के करना पड़ा। आज भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं आया | उदाहरण भारत में अन्यत्र कहीं नहीं प्राप्त होते। मुनि है।
कान्तिसागर ने सरगुजा की जोगीमारा गुफा की जैनाश्रित उपर्युक्त प्रमाण से प्रमाणित होता है कि जैनधर्म का | चित्रकला का एक पुरातन चित्र अपनी कृति 'खोज की प्रभाव सरगुजा के वनांचल पर रहा है तथा जैन संस्कृति के | पगडंडियाँ' में प्रकाशित किया है, जो उन्हें छत्तीगढ़ के संदेशवाहक के रूप में रामगिरि एक बहुचर्चित केन्द्र रहा है। पुरातत्त्व साधक श्री लोचनप्रसाद पाण्डेय से प्राप्त हुआ था। जोगीमारा गुफा के प्राचीनतम जैन भित्ति चित्र इसका उल्लेख उन्होंने अपने आत्मवक्तव्य में दिया है।
विश्व में जितने भी प्राचीन कला के उदाहरण हैं, वे डॉ. ब्लाख के अनुसार इस गुफा में उपलब्ध प्राकृतप्रायः भित्ति चित्रों के हैं। उस काल में धार्मिक स्थानों, जैसे | भाषा में उत्कीर्ण शिलालेख ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का है। गुफाओं या देवमंदिरों में भी विभिन्न सम्प्रदायों के महापुरुषों | इससे यह प्रमाणित होता है कि उन दिनों सरगुजा के इस भूकी विशिष्टतम एवं उत्प्रेरक घटनाएँ व अन्य सांस्कृतिक | भाग पर श्रमणसंस्कृति का प्रभाव था। इतना ही नहीं, यहाँ चिन्ह चित्रांकित किये जाते थे। ऐसी गुफाओं में सबसे अधिक का प्राकृतिक सौन्दर्य बड़ा ही आकर्षक और शान्तिप्रदायक प्राचीन एवं प्रसिद्ध गुफा रामगढ़ की जोगीमारा गुफा है। | होने के कारण लोकवासी प्रवचन, व्याख्यान एवं अमृतवाणी रामगढ़ की सीताबोंगरा गुफा के निकट ही यह गुफा है। यह | का पान करने इस वनाच्छादित पहाड़ी की गुफा में आया ३० फट लम्बी और १५ फट चौडी है। गुफा का द्वार पूर्व | करते थे। की ओर है। इसमें भारतीय भित्तिचित्रों के सबसे प्राचीन | सरगुजा की यह भूमि दिगम्बरजैन मुनियों की तपस्या नमूने अंकित हैं। भित्तिचित्रों के अधिकांश भाग मिट गये हैं से पवित्र, अनेक धर्मनिष्ठ यात्रियों की भक्ति से पूजित एवं
और सदियों की नमी ने भी उन्हें काफी प्रभावित किया है। खारबेल और सम्प्रति जैसे जैन धर्माविलम्बी सम्राटों के कारण इन चित्रों की पृष्ठभूमि धार्मिक है। इनमें धर्म और कला का | प्राचीन इतिहास में अपना एक विशिष्टस्थान रखती है। सच अनुपम स्थान है। अति प्राचीन और भारतीय तक्षणकला की | तो यह है कि जैनियों के लिए आज भी रामगढ पहाडी एक उत्कृष्ट मौलिक सामग्री भी इन चित्रों में पाई जाती है। पुरातन पवित्र तीर्थ की महिमा और गरिमा लिए हुये है।
डॉ. रायकृष्णदास के मतानुसार यहाँ की चित्रकला | | सन्दर्भ का संबंध जैनधर्म से माना जाता है, क्योंकि इनमें से कुछ
| १. (i)मध्यप्रदेश जिला गजेटियर : सरगुजा : डा. राजेन्द्र वर्मा, चित्रों का विषय जैन था। इनमें पदमासन लगाये एक व्यक्ति
१९९८, भोपाल, पृ. ३६। का चित्र पाया जाता है। पद्मासन जैन तीर्थंकरों की एक
(ii) मध्यप्रदेश और बरार का इतिहास : योगेन्द्रनाथ शील, विशेष मुद्रा है। बौद्धों में इस मुद्रा का विकास बहुत काल
१९२२, प्रयाग, पृ. २६८।
२. श्री रविषेणाचार्य विरचित पद्मपुराण, १९७४, देहली, पृ.३७९ । बाद में हुआ है। चित्रों के निम्न भाग में एक चैत्याकार
३. (i) जर्नल आफ दि इंडियन हिस्ट्री, भाग ४२, पृ.६५। आगार है, जिसमें खिड़की स्पष्ट है। इन चित्रों को कलिंग
(ii) स्टडीज इन इन्डोलाजी, भाग ४, पृ.४२। शासक खारबेल ने बनवाया था, जो स्वयं जैन धर्मावलम्बी
४. छत्तीसगढ़ में जैन धर्म की परम्परा एवं इतिहास : डा. कुन्तल राजा था। ये कलात्मक भित्तिचित्र जैनधर्म के प्राचीन इतिहास |
गोयल (अप्रकाशित पाण्डुलिपि)। एवं सांस्कृतिक चरणों के उस काल के महत्त्वपूर्ण प्रमाण हैं, ५. खोज की पगडंडियाँ : मुनि कान्तिसागर, १९५३, काशी, जिनसे होकर यह क्षेत्र गुजरा है। उस समय जैन प्रतिमाएँ भी
पृ.१६,११४। नगर के बाहर गुफाओं में अवस्थित रहा करती थीं। विद्वानों
मनीषा भवन, चोपड़ा कालोनी के मतानुसार इन धर्ममूलक भित्तिचित्रों से अशिक्षित भी
अम्बिकापुर-497001 प्रेरणा पाकर धर्मगत रहस्य को आत्मसात् कर सकते थे।।
(सरगुजा, छत्तीसगढ़)
22 फरवरी 2007 जिनभाषित -
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