Book Title: Jinabhashita 2007 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 17
________________ या प्रति प्रार्थी को अकेले कार्य करने की अनुमति देना । को अपने पास रखने का हकदार नहीं है या यह पाया जाये उचित नहीं है। न्यायालय की दृष्टि में जैनधर्म के अनुसार | कि मूर्ति याचिकाकर्ता विभाग की है। मूर्ति को ढंकने के ढाँचे से प्रकरण के गुणदोष पर कोई ५. प्रतिपक्षी ९ कुण्डलपुर ट्रस्ट न्यायालय को हक प्रभाव नहीं पड़ेगा। किन्तु यह काम स्वतंत्र समिति के पर्यवेक्षण | प्रतिज्ञा-पत्र (अंडर टेकिंग) देगा कि वह मूर्ति पर निर्मित में होना चाहिए। यद्यपि शिखर (डोम) बनाने हेतु तकनीकि | होने वाले शिखर एवं नीले रंग में दर्शाये गये मन्दिर के भाग सहायता ली जा सकती है। इस उद्देश्य हेतु जिला जज की | के निर्माण का पूरी लागत वहन करेगा। शेष भाग उसके द्वारा अध्यक्षता में एक समिति का गठन ठीक होगा जिसमें | निर्मित नहीं होगा। कुण्डलपुर ट्रस्ट प्रतिज्ञापत्र के साथ एक जिलाध्यक्ष एवं पुलिस अधीक्षक दमोह और दोनों पक्षों के | करोड़ रुपयों की प्रतिभू (स्यूरटी) प्रस्तुत करेगा कि निर्माण एक-एक प्रतिनिधि होंगे। वर्तमान में मूर्ति के संरक्षण की | के मध्य मूर्ति किसी भी प्रकार क्षतिग्रस्त नहीं होगी और यदि आवश्यकता है। (पद १७) हुई तो वह क्षतिपूर्ति हेतु उत्तरदायी होगा। परिणाम स्वरूप यह निर्देशित किया जाता है कि उक्त ६. कुण्डलपुर ट्रस्ट का एक प्रस्ताव प्रस्तुत करेगा पाँच महानुभावों की समिति मूर्ति पर पक्का डोम (शिखर) | कि उक्त निर्माण उसकी लागत और जोखिम पर होगा और बनाने का कार्य संपन्न करेगी ताकि मूर्ति संरक्षित हो और | यदि यह सिद्ध हुआ कि पुराना ढाँचा संरक्षित स्मारक और जैन समाज की धार्मिक भावना प्रभावित न हो। (पद १८) | मूर्ति एंटीक्वीटी है तब ट्रस्ट कोई हक या दावा प्रस्तुत नहीं उक्त समिति शिखर निर्माण कार्य की अनुमति देगी। | करेगा और पुरातत्व विभाग नये मन्दिर को अपने कब्जे में प्रति प्रार्थी कुण्डलपुर ट्रस्ट समिति को योजना (प्लान) एवं | लेगा और नया मन्दिर प्राचीन संरक्षित स्मारक और मूर्ति अनुमानित लागत बताएगी जो मूर्ति के चारों से ढंकने हेतु निर्माण कार्य की स्वीकृति देगी। शेष निर्माण कार्य की ७. न्यायालय के पंजीयक (ज्यू.) के समक्ष उक्त स्वीकृति इस स्तर पर नहीं दी जा सकती। भक्तों और पूजकों | प्रतिज्ञा-पत्र प्रस्तुत होने पर एक सप्ताह में समिति की बैठक को धूप-वर्षा से रक्षा हेतु अस्थाई शेड बनाया जा सकता है। | होगी ताकि संरक्षण का कार्य प्रारंभ हो। (पद १९) ८. यह अंतिम व्यवस्था मर्ति के स्थान के संबंध में निर्देश - ( पद २०) है। समिति अनेक्चर-एक्स में दर्शाये 'ए'- टू- 'ए' जो परिणामस्वरूप निम्न निर्देश दिये जाते हैं काली रेखा से घेरा है, के निर्माण को पूर्ण करेगी और उसके १.नये मंदिर में जहाँ मूर्ति स्थापित है उस पर पक्का | आगे निर्माण कार्य नहीं करेगी। अनेक्चर-एक्स इस आदेश शिखर (डोम) निर्मित करने हेतु जिला जज, जिलाध्यक्ष, | का अंश है। आरक्षी अधीक्षक दमोह एवं दोनों पक्षों के एक-एक प्रतिनिधि ९.समिति निर्माण कार्य को निरंतर देखेगी और समयकी समिति निर्मित की जाती है। समय पर कार्य स्थल पर निर्माण कार्य देखेगी और मूर्ति की २. समिति शिखर और निर्माण का अनुमोदन करेगी। संरक्षा हेतु व्यवस्था करेगी। जिला जज मासिक प्रतिवेदन तकनीकी सलाह भी ले सकेगी। समिति सुनिश्चित करेगी प्रस्तुत करेंगे। उक्त समिति इस न्यायालय को अंतिम प्रतिवेदन की निर्माण के मध्य मूर्ति क्षतिग्रस्त न हो। तीन माह में तत्काल प्रस्तुत करेगी। ३. सदस्यों में मतभेद की स्थिति में जिला जज का अंत में पद २१ में माननीय न्यायालय ने आदेशित निर्णय अंतिम होगा जो इस न्यायालय के आदेश का विषय | किया कि यह अंतरिम व्यवस्था है और प्रकरण का गुण होगा। जिला जज के निर्णय से आहत पक्ष इस न्यायालय से | दोषानुसार निर्णय इससे अप्रभावित रहेगा और पक्षकार इस निर्णयपाने स्वतंत्र रहेगा। न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखने स्वतंत्र हैं। यदि किसी ४. निर्माण का संपूर्ण व्यय प्रतिपक्षी-कुण्डलपुर ट्रस्ट | पक्ष को आगे प्लीडिंग प्रस्तुत करना हो तो वह आठ सप्ताह वहन करेगा जो तकनीकी सहायता एवं कार्य हेतु व्यक्ति | में प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है। उसके बाद कार्यायल प्रकरण नियुक्त करेगा। निर्माण पूर्व समिति से अनुमोदन लेगा। किन्तु | को सुनवाई हेतु लिष्ट करेगा। वह किसी भी प्रकार की लागत, क्षति पूर्ति आदि का पात्र हस्ता.के.के.लाहोटी,जज नहीं होगा यदि यह पाया जाता है कि कुण्डलपुर ट्रस्ट मन्दिर | दि. २०/०५/०६ -फरवरी 2007 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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