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देना, आहार दान कहलाता है।
इन चारों दानों के प्रभाव से मनुष्य या तो मोक्ष प्राप्त करता है, यदि यह संभव न हो पाता तो देवगति में चला जाता है तथा उत्तम भोगभूमि में भी जन्म ले सकता है। अतः श्रावक को दान अवश्य करना चाहिए। कविवर द्यानतराय जी कहते हैं
दान चार प्रकार, चार संघ को दीजिए । धन बिजुरी उनहार नरभव लाहो लीजिए। चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान देकर नरभव का लाभ लेना चाहिए। धन बिजली के समान पलायन करने वाला है जिसका मन धन में लगा रहता है वे नरतन की संभाल नहीं कर पाते और जिनका तन त्याग में नहीं लगता वे वैभव को प्राप्त नहीं कर पाते अतः तन, मन और धन का सदुपयोग कर आत्महित करना चाहिए। स्वामी समन्तभद्र ने दान की महत्ता बताते हुए कहा है
क्षितिगतमिव वट बीजं, पात्रगतं दानमल्पमपि काले । फलतिच्छाया विभवं बहुफलमिष्टं शरीर भृ-ताम् ॥ अर्थात योग्य समय में सुयोग्य पात्र के लिए दिया हुआ थोड़ा सा दान भी उत्तम भूमि में पड़े हुए बीज के सदृश प्राणियों के लिए माहात्म्य और वैभव से युक्त बहुत से इच्छित फल को प्राप्त करता है। रमणसार में कहा गया है। कि - सप्तांग राज्य, नवनिधि का भंडार, छह अंगों से युक्त सेना, चौदह रत्न, छियानवे हजार स्त्रियों का वैभव प्राप्त
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होना सुपात्र दान का फल है। अतः सत्पात्र में दान करना चाहिए। कंबीर ने कहा है
पानी बाढ़े नाव में घर में बाढ़े दाम ।
दोनों हाथ उलीचिये यही सयानो काम ॥ यदि व्यक्ति दान नहीं करता तो उसका धन नष्ट हो जाता है । नीतिकार कहते हैं
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दानंभोगोनाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुक्ते तस्य तृतीया गतिर्भविति ॥ अर्थात दान, उपभोग और नाश, धन की ये तीन अवस्थाएं होती हैं, जो न दान देता है न उपभोग करता है उसके धन की तीसरी (नाश) अवस्था होती है। धन खर्च कहाँ करना चाहिए, इस सम्बन्ध में कहा गया है
जिनबिम्ब जिनागारं जिनयात्रा प्रतिष्ठितम् ।
दानं पूजा च सिद्धान्त लेखनं क्षेत्र सप्तकम् ॥ अर्थात जिनबिम्ब स्थापन 2- जिनालय निर्माण 3तीर्थक्षेत्रों की यात्रा 4- पंचकल्याणक प्रतिष्ठा 5- पात्र को चार प्रकार का दान 6- जिनपूजा 7- सिद्धान्त लेखन ।
अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि हमें त्याग धर्म को अंगीकार कर मन, वचन, काय की शुद्धता पूर्व शास्त्रोक्त विधि से सत्पात्र में दान देकर अपनी चंचला लक्ष्मी का उपयोग कर पुण्यार्जन करना चाहिए और रागद्वेष को समाप्त कर सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए सार्थक प्रयास करना चाहिए । ए-27, न्यू नर्मदा विहार, सनावद
श्री प्रकाश गुप्त विधि सलाहकार
क्या अंडों के विक्रय में कोई प्रतिबंध किसी नगरपालिका | याचिका प्रस्तुत हुई जो अस्वीकृत हो गई। इसके उपरांत उच्चतम क्षेत्र में लगाया जा सकता है। यह विचित्र सा प्रश्न उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील में यह कहा गया कि इस प्रकार के न्यायालय के समक्ष एक अपील में उठ खड़ा हुआ। ओम प्रकाश पूर्ण प्रतिबंध व्यापारियों के व्यापारिक अधिकारों पर कुठाराघात प्रति उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय | हैं | उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में उत्तर प्रदेश नगरपालिका। द्वारा एक रिट याचिका निरस्त किये जाने के निर्णय के विरूद्ध अधिनियम के प्रावधानों को विचार में लिया और यह पाया कि यह अपील उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत की गई। ऋषिकेश क्षेत्र नगर पालिका को इस प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं। जो अधिसूचना में बहुत से मंदिर हैं। इस संदर्भ में कुछ नागरिक संस्थाओं और जारी की गई है वह पूर्णतया नियमानुसार है। व्यापार का अधिकार । संगठनों की ओर से नगरपालिका के समक्ष यह प्रतिवेदन प्रस्तुत नागरिकों को है, लेकिन उस पर उचित प्रतिबंध लगाया जाना किया गया कि नगर के सार्वजनिक स्थानों पर अंडों के विक्रय गलत नहीं है। हरिद्वार, ऋषिकेश, तीर्थ स्थल हैं। वहां पर पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। सार्वजनिक रूप से मांसाहारी खाद्य पदार्थों के विक्रय पर प्रतिबंध लगाया जाना अनुचित नहीं है। इन तीर्थ स्थलों में बहुत बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री आते हैं। उनकी भावनाओं को ध्यान में रखकर नगरपालिका ने प्रतिबंध लगाया है। नगरपालिका क्षेत्र के बाहर अंडे या अन्य मांसाहारी पदार्थों के विक्रय पर कोई रोक नहीं है इस कारण व्यापार को ऐसी कोई हानि नहीं होनी है ! यह
अधिसूचना के द्वारा कहा गया है कि सार्वजनिक स्थानों पर और सार्वजनिक दृष्टि में नजर आने वाले स्थान पर कोई भी गोश्त या मछली का विक्रय नहीं किया जायेगा। सड़कों, होटलों, ढाबों, जलपान गृहों, धर्मशालाओं की दुकानों पर भी यह रोक लगाई गई थी। संशोधन प्रतिबंध लागू कर दिया गया। उच्च न्यायालय के समक्ष इस प्रतिबंध को निरस्त किये जाने हेतु रिट | प्रतिबंध उचित प्रतिबंध की सीमा में आते हैं।
अगस्त 2004 जिन भाषित
तीर्थों में मांसाहार पर पाबंदी उचित
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