________________
की पूजा किया करते थे। बौद्ध ग्रन्थ "आर्य मंजुश्री मूल्य | समाज में यह चेतना कैसे लायी जाय यह विचारणीय प्रश्न काव्य" में कहा गया है कि अयोध्या में जन्मे इन्हीं ऋषभदेव | है। उल्लेखनीय है कि केवल आदिनाथ ही नहीं यहाँ द्वितीय ने हिमालय में तप द्वारा सिद्धि प्राप्त की थी। और वे जैन धर्म | तीर्थंकर अजितनाथ की जन्मभूमि की तो और दुर्गति हो रही के आद्यदेव थे।
है। बक्सरिया टोला-तुलसी नगर में उस पावन स्थल तक अयोध्या के इस गौरवमयी स्थल पर आज विश्व वन्द्य पहुंचने के लिए आप को अपावन विष्टा के ढेर से गुजरना आदिनाथ स्वामी का महान स्मारक मंदिर स्वरूप में होना | होता है। उस टोंक की कोई सुरक्षा भी नहीं है। हमें रास्ता चाहिए था, किन्तु विडंबना यह है कि उस प्राचीनतम स्थल | बताने वाले बालक ने बताया कि यहाँ के बड़े मंदिर की जैन जाने का रास्ता तक इतना कण्टकाकीर्ण और पहुंचविहीन है | कमेटी के अंतर्गत इन जन्मभूमियों की टोंकें आती हैं, परन्तु कि स्थानीय लोग भी उसे विस्मृत करते जा रहे हैं। आस- | कमेटी में बाहर के ही संभ्रांत सदस्य हैं, इसीलिए बैठक पास के जैन मंदिर के एक पुजारी तक ने मुझे बताया कि कभी-कभार ही होती है और इस ओर तो किसी का ध्यान ही जन्म भूमि तो मोहल्ला रामकोट में है। मैंने कहा कि भगवान नहीं है। हाँ नवनिर्मित बड़े जैन मंदिर में अवश्य जैन समाज राम से भी प्राचीन भगवान आदिनाथ स्वामी की जन्म भूमि | के लोग अपने-अपने नाम पटल लगवाकर नित्य नये निर्माण पहुँचना है। तब उसने कहा कार यहीं रोक दीजिए और मेरे | करा रहे हैं वहां के पुजारी/व्यवस्थापक ने हमें जैन तीर्थंकरों साथ पैदल एक-दो किलोमीटर चलिए, तब उस टोंक पर | के जन्म भूमि संबंधी कोई और साहित्य भी उपलब्ध कराने पहुँच पायेंगे। कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि किसी भारी बरसात | से इंकार कर दिया। कहा कि यहाँ जो फ्री में पत्रिकाएं आ में आदिनाथ जन्मस्थली टोंक को भी सरय का जलप्लावन | जाती हैं वही कुछ प्रचार सामग्री है। हम कछ भी साहित्य भविष्य में ले डूबे। कारण साफ है जब तक इस देश में किसी | खरीदने की स्थिति में नहीं हैं। जन्मभूमियों वाला एक छोटा स्थान पर विवाद नहीं होता, तब तक लोग उस ओर ध्यान ही पीला "हैंड पेपर" जरूर उसने दिया जिसमें टोंकों के नाम नहीं करते जैसे महापुरूषों के मरने के बाद ही उनकी पूजा मोहल्लेवार छपे थे। अयोध्या में अन्य जन्मस्थलियां निम्न का प्रावधान हमारे यहाँ है।
प्रकार हैंभारतीय समाज और विशेष तौर से सम्पन्न जैन समाज, तीर्थंकर सुमतिनाथ की जन्म भूमि कटरा स्थित प्राचीन जो नित नये ऊँचे मंदिर बना रहा है, जमीन से निकली | मंदिर, राजघाट स्थित तीर्थंकर अनंत नाथ की टोंक और चौथे आदिनाथ की प्रतिमाओं पर छोटे-छोटे कस्बों में गगनचुम्बी | तीर्थकर अभिनन्दन स्वामी की जन्मस्थलीय अशर्फी भवन मंदिर निर्मित कर रहा है, वह समर्थ जैन समाज प्रभु आदिनाथ | सुसहटी में वंदनीय है। और यह एक भी जन्मभूमि उल्लेखनीय की जन्मस्थली पर भव्य "आदिनाथ जन्मभूमि" का निर्माण | रूप से निर्मित नहीं है बस टोंकें भर हैं। एक तीर्थंकर धर्मनाथ कर इस ऐतिहासिक विरासत को स्मरणीय रूप से वन्दनीय की जन्म स्थली फैजाबाद-लखनऊ मार्ग पर भी वंदनीय है। नहीं बना सकता। जहाँ बाद में जन्मे राम के लिए पूरे भारत | | उपर्युक्त 5 तीर्थंकरों की जन्मभूमि ऐतिहासिक अयोध्या में आग लगी हो, सरकारें बन-मिट रही हो वहीं राम के | कम से कम जैन समाज के लिए तो शिखर जी और गिरनार हजारों वर्ष पूर्व जन्मे महान श्रमण संस्कृति के प्रवर्तक भगवान जी से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। पर गिरनार पर तो पण्डों/महंतों ऋषभदेव की जन्मभूमि की चर्चा तक नहीं। कोई एक ईंट ने अनधिकृत कब्जा कर उसे दर्शनविहीन कर दिया है। शिखर लगाने वाला नहीं। यह न केवल लज्जा-जनक है वरन् दुखद जी श्वेताबरो और दिगंबरों का अखाड़ा बना हुआ है और भी। यह केवल वेदों-उपनिषदों में वर्णित आराध्य आदिनाथ वीरान होती जा रही 5 तीर्थंकरों की पावन अयोध्या की सुध भर का प्रश्न नहीं है वरन् भारत को "भारतवर्ष" नामकरण लेने वाला कोई नहीं है। यहीं निकट लखनऊ में बैठकर जैन देने वाले भरत चक्रवर्ती के जनक आदिनाथ और भारत को समाज के कतिपय महारथी देश के अन्य तीर्थों के सरंक्षण वाणी (शब्द एवं अंक) देने वाली पुत्री के पिता महानतम की बात ऊँचे स्वर में करते हैं, अनेक पत्र छाप रहे हैं, श्रीमंतों तपस्वी आदिनाथ की जन्म भूमि के गौरव संरक्षण का प्रश्न के मिलों में कमेटियां संचालित हो रही हैं, लाखों करोड़ों के
वारे-न्यारे हो रहे हैं पर तीर्थंकरों की जन्मभूमियाँ उपेक्षित हो अयोध्या में भाग लेने वाले विराट कवि सम्मेलन की | | रही हैं। दीपक तले आज भी अंधेरा है। आखिर हमारी इस अध्यक्षता करते हुए जब मैंने अपने उद्बोधन में यह बात | अकृतज्ञता के लिये उत्तरदायी कौन होगा? और भावी पीढ़ी कही तो वहाँ सैकड़ों की संख्या में उपस्थित हिन्दू समाज ने | को हम कैसे बतायेंगे कि हमारे आराध्यों की जन्मभूमि अयोध्या तालियों की गड़गड़ाहट से इसका सम्मान किया। परन्तु जैन | कैसी है?
___75, चित्रगुप्त नगर,
कोटरा, भोपाल-462003 18 अगस्त 2004 जिन भाषित -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org