Book Title: Jinabhashita 2004 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 29
________________ मध्यप्रदेश अल्पसंख्यक आयोग ई-ब्लाक, पुराना सचिवालय, भोपाल अरुण जैन सदस्य म.प्र.रा.अ.आ./2004/977 दिनांक 29-04-04 प्रति, माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी मुख्यमंत्री गुजरात राज्य गांधी नगर, अहमदाबाद विषय : मध्यप्रदेश राज्य अल्पसंख्यक आयोग द्वारा गुजरात के जूनागढ़ पर विराजमान 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान की निर्वाण भूमि गिरनार जी की पाँचवी एवं चौथी टोक के मूलस्वरूप को परिवर्तित करने की कुचेष्टा एवं अवैध निर्माण को तत्काल हटाने हेतु । देश में गुजरात राज्य के जूनागढ़ की पर्वत श्रृंखला पर विराजमान तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का निर्वाण स्थल "गिरनार" दिगम्बर जैन समुदाय का एक परम पावन पवित्र धार्मिक स्थल है। पूरी पर्वत माला की विभिन्न टोंकों (शिखरों) का अपना-अपना महत्व है, जो उनकी धार्मिक भावनाओं एवं श्रद्धा का द्योतक है। जैन समुदाय इस पवित्र स्थल में विगत सहस्त्राब्दियों से अपने आराध्य 22वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ का पूजन अर्चन, पूजा पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि सम्पन्न करते आ रहे हैं, इतिहास के पन्ने इस बात की पुष्टि करते हैं। स्वतंत्र भारत में कभी भी किसी ने किसी अन्य धर्म के प्रति या उनके पवित्र धार्मिक स्थलों के साथ छेड़खानी या दुर्भावना नहीं रखी है। सारा विश्व जानता है कि हमारा देश पूर्ण रूपेण एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और हमारे इस गौरव को बनाए रखने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी देश के प्रत्येक नागरिक की तथा शासन प्रशासन की है, इस पवित्र स्थल में सेवा-अर्चना आदि दैनिक धार्मिक कार्यों का प्रबंध जैनसमुदाय के धर्मावलम्बी बंधु ही करते आ रहे हैं। यहाँ लाखों धर्मावलम्बी पात्र सेवा एवं दर्शनार्थ देश-विदेश के कोने-कोने से प्रतिवर्ष आते रहते हैं। कुछ समय पूर्व से अवांछित तत्वों ने इस क्षेत्र की शांति भंग कर रखी है। वे इस जैन तीर्थ को अपने लिए सर्वदा सुरक्षित क्षेत्र मानकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाकर, जन समुदाय को भ्रमित कर जैन धर्मावलम्बियों की इस प्राचीन धरोहर के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। यहाँ तक वे भगवान की जयकार भी नहीं लगाने देते, जिससे दुर्भावना पनप रही है और धर्मावलम्बी लोग एक दूसरे धर्म के प्रति दुर्व्यवहार पाल रहे हैं, शांति व्यवस्था भंग हो गई है, और चारों ओर भय का वातवरण निर्मित हो गया है। यही नहीं उनके हौसलों ने इस क्षेत्र को दत्तात्रेय टोंक की नवीन संज्ञा देकर उसे इस नाम से प्रचलित कर रहे हैं, जो सर्वथा मिथ्या है, गलत है उक्त कथित पर्वत माला प्राचीन काल से ही जैन समुदाय का उपासना स्थल रहा है वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगा। इस प्राचीन सम्पदा और पुरातत्व की अपनी अहमियत है पावन एवं वन्दनीय है। शासन पर इन्हें सुरक्षित रखने का दायित्व है। इन स्थलों का संरक्षण करना पुरातत्व विभाग की पूर्ण जिम्मेदारी है। दुर्भावनापूर्वक वैदिक धर्मावलम्बियों द्वारा वेद विहित पद्धति से पूजा पाठ करना एवं जैन समुदाय के तीर्थ यात्रियों से अभद्रता एवं दुर्व्यवहार किया जाता है, इसके पीछे निश्चय ही अन्य समाज के उन कद्दावर व्यक्तियों का हाथ है जो इस प्रकार के तत्वों को सरंक्षण देकर राज्य के राजनैतिक क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बनाए रखना चाहते हैं। - अगस्त 2004 जिन भाषित 27 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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