Book Title: Jinabhashita 2004 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 27
________________ जिज्ञासा- समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता- श्री सुमेरचन्द भगत, आगरा अधिक जानकारी के लिए सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ 40 देखने जिज्ञासा- क्या सूक्ष्मनिगोदिया जीवों का भी अकालमरण | का कष्ट करें। होता है? यदि होता है तो क्यों? प्रश्नकर्ता- पं. देवेन्द्र शास्त्री, जबलपुर। समाधान- तत्त्वार्थसूत्र अध्याय -2,सूत्र-53 में इसप्रकार जिज्ञासा- क्या औपशमिक आदि पांच भाव जीव के लिखा है- 'औपपादिक-चरमोत्तम देहा संख्येय- | अलावा अन्य द्रव्यों में भी पाये जाते हैं? वर्षायुषोऽनपवायुषः' ॥ 53 ॥ अर्थ- उपपाद जन्म है । समाधान- इस संबंध में श्री धवला पुस्तक-5 के निम्न वाले और असंख्यात वर्ष की आयु वाले अर्थात भोगभूमिया | प्रसंग ध्यान देने योग्य हैं- 'केण भावो। कम्माणमुदएण जीव अनपवर्त्य आयु वाले होते हैं। अनपवर्त्य आयु का खयणखओवसमेणकम्माणमुवसमेण सभावदो वा। तत्थ तात्पर्य है कि उपघात के निमित्त विष, शस्त्रादि बाह्य निमित्तों | जीवदव्वस्स भावा उत्तपंचकारणहितो होति। पोग्गलदव्वभावा के मिलने पर जो आयु नहीं घटती है वह अनपवर्त्य आयु पुण कम्मोदएण विस्सासादो वा उप्पजंति। सेसाणं चदुण्हं कहलाती है। अर्थात तीनों प्रकार के जीवों का अकालमरण दव्वाणं भावा सहावदो उप्पजंति। (धवला . 5 पू. 181) नहीं होता है। इस सत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में इस प्रकार प्रश्न- भाव किससे होता है, अर्थात भाव का साधन कहा है। 'न ह येषामौपपादिकादीनां बाह यनिमित्त क्या है। वशादायुरपवर्त्यते इत्ययं नियमः। इतेरेषामनियमः'। अर्थ उत्तर- भाव, कर्म के,उदय से, क्षय से, क्षयोपशम से, इन औपपादिक आदि जीवों की आयु बाहय निमित्त से नहीं कर्मों के उपशम से अथवा स्वभाव से होता है। उनमें से जीव घटती यह नियम है, तथा इनसे अतिरिक्त शेष जीवों का ऐसा द्रव्य के भाव उक्त पांचों ही कारणों से होते हैं किन्तु पुदगल कोई नियम नहीं है। द्रव्य के भाव, कर्मों के उदय से अथवा स्वभाव से उत्पन्न उपरोक्त सूत्र की टीका से यह स्पष्ट ध्वनित होता है होते हैं। शेष चार द्रव्यों के भाव स्वभाव से ही उत्पन्न होते कि सूक्ष्म निगोदिया जीवों का भी अकालमरण संभव है। पं. रतनचन्द मुख्तार व्यक्तित्व एवं कृतित्व ग्रंथ में पृष्ठ 558 पर 2.जीवेसु पंचभावाणमुवलंभा । ण च सेसदव्वेसु पंचभावा मुख्तार साहब ने लिखा है कि 'भय तथा संक्लेश आदि के अत्थि,पोग्गलदव्वेसु ओदइयपारिणामियाणं दोण्हं चेव कारण सूक्ष्म जीवों का भी अकालमरण संभव है।' भावणमुवलंभा, धम्माधम्मकालागासदव्वेसु एक्कस्स प्रश्नकर्ता- सौ. ज्योति लुहाड़े, कोपरगाँव पारिणामियभावस्सेवुवलंभा (धवला पु. 5, पृ. 186) 2.जिज्ञासा- हर गुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्त है तो ___अर्थ- जीवों में पांचों भाव पाये जाते हैं, किन्तु शेष चतुर्थ गुणस्थानवर्ती क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव, जो देवों में 33 व्यों में तो पाँच भाव नहीं है क्योंकि पाल सागर आयु भोगता है, उसके साथ कैसे घटेगा? औदयिक और पारिणामिक इन दोनों ही भावों की उपलब्धि समाधान- आपने किस ग्रंथ में इसप्रकार पढ़ा है कि होती है, और धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और हर गुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्त है? यह ठीक नहीं है, सच | काल द्रव्यों में केवल एक पारिणामिक भाव ही पाया जाता तो यह है कि पहले, चौथे, पांचवें तथा तेरहवें गुणस्थान को छोड़कर शेष गुणस्थानों का उत्कृष्ट एवं जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि पुद्गल में भाव कर्म के है। इन चार गुणस्थानों का काल जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है पर | उदय से जो फलदान शक्ति आ जाती है वह उसका औदयिक उत्कृष्ट से निम्न प्रकार है भाव है तथा पाँचों अजीव द्रव्यों में जो अस्तित्व, वस्तुत्व 1.प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान- अभव्य अथवा अभव्य | आदि गण पाये जाते हैं वे पारिणामिक भाव हैं। सम भव्य दूरानुदूरभव्य की अपेक्षा अनन्तानन्त काल है। पारिणामिक भाव के संबंध में सर्वार्थसिद्धि पैरा 269 में 2.चतुर्थ अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान- अन्तर्मुहूर्त कम | तत्वार्थ सूत्र अध्याय-2 के 8वें सूत्र की टीका में इस प्रकार एक करोड़ पूर्व 33 सागर। कहा है- "शंका-अस्तित्व, नित्यत्व और प्रदेशत्व आदि भी 3.पंचम देशविरत गुणस्थान- कुछ कम एक करोड़पूर्व। भाव हैं उनका इस सूत्र में ग्रहण करना चाहिए? 4.तेरहवां सयोगके वली गुणस्थान- आठ वर्ष समाधान- अलग से उनके ग्रहण करने का कोई काम अन्तर्मुहुर्तकम एक करोड़पूर्व। नहीं, क्योंकि उनका ग्रहण किया ही है। शंका-कैसे? समाधान अगस्त 2004 जिन भाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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