Book Title: Jinabhashita 2004 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 36
________________ रजि नं.UP/HIN/29933/24/1/2001-TC डाक पंजीयन क्र.-म.प्र./भोपाल/588/2003-05 सतना म.प्र. में 'जैन युवा सम्मेलन' संतशिरोमणि परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परमप्रभावक शिष्य, तरुणाई के प्रखर वक्ता मुनिश्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज के सान्निध्य में जैन युवा सम्मेलन रविवार, 12 सितम्बर 2004 को आयोजित करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है, जिसका उद्देश्य समाज की युवाशक्ति को संगठित कर उन्हें दिशा बोध कराना है। इसी तारतम्य में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष योगदान देने वाले पाँच युवाओं को जैन युवा रत्न एवार्ड से सम्मानित किया जायेगा। अत: समाज के सभी नवयुवकों से अनुरोध है कि आप अपनी संस्था के सभी पदाधिकारी एवं सदस्यों की इष्ट मंडली सहित पधारकर युवाशक्ति को जाग्रत करने एवं सामाजिक एकता को बनाये रखने के लिये अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर हमें कृतार्थ करें। संयोजक : दीपक जैन मो.9425173802 जैन क्लब भवन, चौक बाजार, सतना 485001 (म.प्र.) फोन : 07672-507135 जैन संस्कृति में आस्था का दुर्लभ उदाहरण आज जब सम्पूर्ण भारत में पश्चिमी सभ्यता सिर पर चढ़ कर बोल रही है, बालकों के जन्मदिनोत्सवों पर केक काटने और 'हेप्पी बर्थ डे टू यू' का विदेशी मन्त्रोच्चार करने का रिवाज आम हो गया है, तब चि. सिद्धार्थ जैन के पाँचवें जन्मदिनोत्सव (8अगस्त 2004) का दृश्य देखकर हृदय को बड़ी शीतलता मिली। शीतलता का कारण था जन्मदिनोत्सव अनुष्ठान में भारतीय एवं जैन संस्कृति के दर्शन होना।। चि. सिद्धार्थ के पिता श्री शरद जैन एवं माता श्रीमती संगीता जैन (स्व. श्री नन्नूमल जी एवं श्रीमती रुक्मिणी देवी के नाती) भोपाल के एक प्रतिष्ठित, सुसंस्कृत श्रेष्ठिकुल के उत्तराधिकारी हैं। कुण्डलपुर के बड़े बाबा और परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के अनन्य भक्त हैं। उनमें भारतीयता एवं जैनत्व के संस्कार कूट-कूट कर भरे हुए हैं। उन्होंने अपने सुपुत्र के जन्मदिवसोत्सव में केक कटवाने की बजाय उसके द्वारा बड़े बाबा एवं आचार्यश्री के चित्रों के समक्ष पाँच दीप प्रज्ज्वलित कराए तथा पुष्पांजलि अर्पित कराते हुए पंचाग नमस्कार करवाया। इसके पश्चात् उन्होंने श्री दिगम्बर जैन अतिशयक्षेत्र कुण्डलपुर एवं भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी मुम्बई को, जिसके वे स्वयं राष्ट्रीय मंत्री है, ग्यारहग्यारह हजार रुपए दान किए। "जिनभाषित' के लिए भी पाँच सौ रुपयों का दान घोषित किया। बालकों के जन्मदिनोत्सव मनाने की यह भारतीय एवं जैन पद्धति समाज के लिए अनुकरणीय है। इसका उदाहरण प्रस्तुत कर समाज को इसकी प्रेरणा देने के लिए हम श्री शरद जी एवं श्रीमती संगीता जी का अभिनन्दन एवं साधुवाद करते हैं / सम्पादक स्वामित्व एवं प्रकाशक, मुद्रक :रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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