Book Title: Jinabhashita 2004 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 33
________________ कराया। यहां पर भी समयसारादि की कक्षाएं पूर्ववत लगी। परीक्षा में सम्मिलित हुए। इस शिविर में 14 स्थानीय विद्वानों शिविर में सभी का बहुत उत्साह था। लगभग 350 ने एवं 12 संस्थान-सांगानेर के विद्वान छात्रों ने अध्यापन शिविरार्थियों ने इस शिविर में भाग लिया। कार्य कराया। 28 मई से 05 जून 2004 तक करमाला (सोलापुर- ग्रीष्मावकाश में लगाए गए शिविरों के माध्यम से जो महा.) में श्री पी. सी. पहाडिया जी के तत्त्वावधान में धर्म-सरिता प्रवाहित हुई, उसका प्रभाव यह हुआ कि इस शिविर आयोजित किया गया जिसमें 125 शिविरार्थियों ने | वर्ष सत्र 2004-05 में छात्रावास में 41 नूतन छात्रों का भाग लिया। प्रथम बार नगर में आयोजित शिविर में लोगों प्रवेश हुआ।18 जुलाई 2004 को संस्थान द्वारा नवागत छात्र ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। यहां पर तत्त्वार्थसूत्र, छहढ़ाला, प्रवेश समारोह का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि बालबोध, भक्तामरस्रोतादि कक्षाएँ लगाई गईं। पद राजस्थान सरकार के शिक्षामंत्री श्री घनश्यामदास जी ___ तदनन्तर बैनाड़ा जी के ही सान्निध्य में गुना (म.प्र.) में | तिवाड़ी , अध्यक्ष पद संस्थान के अध्यक्ष श्री गणेश जी एक विशाल शिविर 07 जून से 17 जून 2004 तक आयोजित राणा, विशिष्ट अतिथि पद श्री मोहनदास अग्रवाल ने सुशोभीत किया गया। जिसमें तत्त्वार्थसूत्र, छहढ़ाला, द्रव्यसंग्रह, | किया। इसके अलावा संस्थान के सभी पदाधिकारीगण एवं रत्नकरण्डकश्रावकाचार, बालबोध, सामायिक पाठ एवं | गणमान्य जन भी पधारे। इस अवसर पर छात्रों द्वारा सांस्कृतिक जिज्ञासा-समाधान इत्यादि कक्षाएं लगाई गई। शिविर के कार्यक्रम पेश किए गए। नूतन छात्रों ने अपने अनुभव को प्रति लोगों का उत्साह दर्शनीय था। बालबोध की विविध भी सनाया। संस्थान के उपाधिष्ठाता भी राजमल बेगस्या जी कक्षाओं में लगभग 500 बच्चों ने भाग लिया। कुल शिविरार्थी | ने नवागत सभी छात्रों के लिए श्रमण संस्कृति रक्षार्थ प्रतिज्ञा संख्या भी 110 थी। गुना जैन समाज के अध्यक्ष पवन | भी दिलवाई। अन्त में मुख्य अतिथि महोदय ने अपने कुमार जैन साहब ने स्वयं तत्त्वार्थसूत्र की कक्षा में भाग | उद्बोधन में कहा कि श्रमण-संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति लिया और अपने वक्तव्य में अंतिम दिन कहा कि इतना | विश्व की दो प्राचीन संस्कृति हैं, अनादिनिधन हैं। हमारा अच्छा शिविर गुना नगर में पहले कभी नहीं लगा। इस | देश जो जगदगुरु के नाम से विश्वविख्यात है इसमें यदि शिविर में मुनि श्री 108 प्रशान्तसागर जी एवं मुनि श्री 108 | कुछ है तो मुनि, साधु, संतों का समागम है। ऐसी अजस्र निर्वेगसागर जी का भी मंगलसान्निध्य प्राप्त हुआ। प्रवाहमान संस्कृति एवं संस्कृत के रक्षार्थ जो यह संस्थान 24 मई से 01 जून 2004 तक अमजेर (राज.) के | खोला गया है । यह जैनियों के लिए ही नहीं, राजस्थान विभिन्न सात आंचलों में भी पं. श्री वीरेन्द्र शास्त्री हीरापुर | और भारत-वर्ष के लिए भी गौरव की बात है। मैंने अपने के संयोजन में संस्थान द्वारा शिविर लगाया गया जिसमें | जीवनकाल में इतना सुन्दर संस्थान अन्यत्र नहीं देखा। लगभग 1000 शिविरार्थियों ने भाग लिया। यह शिविर | समारोह का सफल संचालन श्री राकेश जी (संस्कृत महिला-परिषद अजमेर ने आयोजित किया। जिसमें सभी व्याख्याता) ने किया। ने बड़ी तन्मयता से भाग लिया। संस्थान के छात्र धर्म प्रचारक के अलावा सामाजिक __05 जून से 15 जून 2004 तक बुन्देलखण्ड की पावन | कार्य भी करते हैं। इसके अन्तर्गत 21 जुलाई 2004 को धरा पर 27 स्थानों पर उपा. ज्ञानसागर जी की पावन प्रेरणा | 'विद्याविनोद काला मेमोरियल ट्रस्ट' के लिए संस्थान सांगानेर से आयोजित श्रुतसंवर्द्धन ज्ञान संस्कार प्रशिक्षिण शिविरों में | के 11 छात्र एवं अध्यापकों ने उनकी पुण्यतिथि पर श्री संस्थान के 20 विद्वान छात्रों ने विविध स्थानों पर धर्म प्रचार | महावीर कैंसर अस्पताल जयपुर में रक्तदान देकर अभयदान किया। जिसमें लगभग 11,000 शिविरार्थियों ने भाग लिया। का सराहनीय कार्य किया। पं. मनोज शास्त्री ____ 19 मई से 28 मई 2004 तक जयपुर के 23 प्रांचलों में मुनिश्री समता सागर जी महाराज द्वारा शिविर आयोजित किए गए। जिसके मुख्य संयोजन श्री "प्रवचनमाला" रतनलाल नृपत्या जी ने किया। शिविर के मुख्य समन्वयक श्री डा. सनतकुमार जी , सहयोगी समन्वयक ब्र. भरत जी परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम एवं श्रीमती कोकिला सेठी तथा संयोजक श्री सुरेन्द्र पाटनी | आशीर्वाद से इस वर्ष हमारे सिवनी शहर में पूज्य श्री एवं श्री संतोष गोदिका जी थे। इस शिविर में 1537 | समतासागर जी महाराज एवं ऐलक श्री निश्चयसागर जी शिविरार्थियों ने भाग लिया, जिनमें से 1231 शिविरार्थी का चातुर्मास स्थापना दि. 04-07-2004 को हो चुकी है। चातुर्मास स्थापना का कार्यक्रम श्री सुमत जैन, भोपाल के - अगस्त 2004 जिन भाषित 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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