Book Title: Jinabhashita 2002 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 10
________________ वालों में ही ठीक चल पाती है, अतः तीर्थक्षेत्र कमेटी को यदि शक्तिशाली श्वेताम्बर समाज से मुकाबला करना है तो उसे भी सशक्त बनना होगा। तुम एक करोड़ का ध्रुव फंड तैयार करो । बहुत-सी कठिनाइयों का समाधान आसानी से हो जायेगा । अनेक वर्षों के प्रयास के पश्चात् जब तीर्थक्षेत्र कमेटी के अनेक कर्णधार महानुभाव वांछित फंड संगृहीत करने में सफल नहीं हो पाये, तब पूज्य आचार्य समन्तभद्र महाराज ने अपने अनन्य प्रिय शिष्य मुनि आर्यनन्दी जी को प्रेरित किया। गुरुआज्ञा को शिरोधार्य कर पूज्य आर्यनन्दी जी महाराज ने सन् 1981 में बेलगाँव में चातुर्मास पश्चात् अपने संकल्पित एक कोटि फंड की दान राशि की पूर्ति के लक्ष्य को पूरा किया। उनके इस महान अवदान ने ही भारतवर्षीय तीर्थरक्षा कमेटी को समस्त तीर्थों के रक्षण, संवर्द्धन के लिए समृद्ध किया। पूज्य आर्यनन्दी जी महाराज की इस सफलता के लिये बेलगाँव तथा श्रवणबेलगोला में विशाल अभिनन्दन समारोहों का आयोजन हुआ। बेलगाँव में सामूहिक चौके में पूज्यश्री को आहार में मिठाई के ग्रास दिये गये । पूज्य आर्यनन्दी जी महाराज की अनेक यात्राओं के संघपति श्री हीराचंद जी कासलीवाल और उनके परिवार के चौके में महाराज का पड़गाहन हुआ । कासलीवाल जी ने भी लक्ष्य प्राप्ति पश्चात् सर्वप्रथम महाराज को आहार देने का संकल्प लिया हुआ था। आहारदान के उपलक्ष्य में उन्होंने तीर्थक्षेत्र कमेटी के हितार्थ प्रशंसनीय दान राशि घोषित की। श्रवणबेलगोला में सन् 1981 के महामस्तकाभिषेक के विशाल कार्यक्रम के पंडाल में पूज्य आर्यनन्दी जी महाराज का अभिनन्दन पूज्य आचार्य देशभूषण महाराज, ऐलाचार्य धर्मसागर महाराज और उनके संघस्थ साधुओं तथा अन्य अनेक आचार्यों के संघस्थ साधुओं के सानिध्य में हुआ। उस कार्यक्रम में लगभग डेढ़ सौ दिगम्बर साधु थे। चतुर्विध संघों को मिलाकर एक गरिमामय पिच्छीधारियों की उपस्थिति थी । इस अभिनन्दन समारोह में अपने उद्बोधन में आर्यनन्दी जी महाराज ने अपनी सफलता का समस्त श्रेय अपने गुरु पूज्य समन्तभद्र महाराज को तथा दिगम्बर समाज की उदार दानप्रवृत्ति को दिया, अपने आपको मात्र निमित्त ही कहा । धन्य है, उनकी निस्पृह वृत्ति को । सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरी की विशाल जल योजना के सूत्रधार कुंथलगिरी के गुरुकुलवासियों, विद्यार्थियों को तथा आसपास के खेतिहरों को सदैव से जलसंकट का सामना करना पड़ता था। कुंथलगिरी सिद्धक्षेत्र की अनेक निर्माण योजनाएँ जलाभाव के कारण अधूरी थीं। तीर्थयात्रियों को भी वहाँ समुचित पानी की व्यवस्था न होने के कारण असुविधा का सामना करना होता था । कुंथलगिरी सिद्धक्षेत्र देशभूषण, कुलभूषण आदि मुनिराजों की निर्वाणभूमि के साथ ही पहाड़ पर अनेक दिगम्बर जैन मन्दिरों वाला मनोरम भव्य दर्शनीय क्षेत्र है। पूज्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर महाराज की छत्तीस दिवसीय सल्लेखना पश्चात् यह अगस्त 2002 जिनभाषित 8 Jain Education International 1 । सिद्धक्षेत्र समस्त भारत के दिगम्बर चतुर्विध संघों, तीर्थयात्रियों के लिये अनिवार्यत: वन्दनीय क्षेत्र है। पूज्य आचार्य आर्यनन्दी महाराज के साधनापथ में भी कुंथलगिरि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहीं पर उन्होंने चारित्र चक्रवर्ती पूज्य शान्तिसागर महाराज से सप्तम प्रतिमा के व्रत तथा पूज्य समन्तभद्र महाराज से भगवती मुनि दीक्षा प्राप्त की थी। इन्हीं कारणों से पूज्य आर्यनन्दी महाराज कुंथलगिरि क्षेत्र के प्रति कर्तव्यबोध से बँधे हुए थे। पूज्य गुरुदेव समन्तभद्र जी महाराज की भावना भी क्षेत्र पर जलापूर्ति की थी। अस्तु, एक बृहद् जल योजना के सूत्रधार गुरुआज्ञा से पूज्य आर्यनन्दी महाराज बने । योजना काफी लागत की थी, जिसे महाराष्ट्र शासन के सहयोग के बिना पूरा नहीं किया जा सकता था । पूज्य महाराजश्री के भक्तों के प्रयास से महाराष्ट्र शासन के तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवाजीराव निलंगेकर को कुंथलगिरी में महाराजश्री के चरणों तक लाया गया। महाराज के प्रभाव से उन्होंने समस्त योजना पूर्ति की स्वीकृति प्रदान कर तुरंत ही साथ आये अफसरों को जल योजना को कार्यान्वित करने का आदेश कर दिया। उनकी इस तत्परतापूर्ण कार्यवाही से प्रभावित महाराज के मुँह से उनके लिये मुख्यमंत्री बनने का आशीष निकल गया। महाराज के सरल चित्त से निकले वचनों का प्रभाव था अथवा संयोग कि शिवाजीराव निलंगेकर छ: माह के अन्तराल में ही महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री मनोनीत हो गये। महाराज तो आशीष प्रदान कर भूल गये थे, परन्तु निलंगेकर जी नहीं भूले थे और वे महाराज के प्रति दृढ़ श्रद्धालु हो गये थे । जल योजना में द्रुत गति आ गयी थी और करोड़ों की योजना शीघ्र ही मुख्यमंत्री की अनुशंसा से पूरी हो गयी। जो जल चारों ओर के पहाड़ों से व्यर्थ बह जाता था, उसे एक जलाशय में एकत्रित कर दिया गया था तथा एक बड़े कूप का निर्माण कर दिया गया था। कूप में सदैव जल की आपूर्ति निर्मित जलाशय के जल से होने लगी। कूप को पाइप लाइनों से जोड़ने पर क्षेत्र को तथा कृषकों को प्रचुर जल मिलने लगा। सूत्रधार के रूप में पूज्य आर्यनन्दी महाराज के कुंथलगिरी क्षेत्र पर किये इस उपकार को कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा । जीवंत तीर्थों के पोषक पूज्य आचार्य आर्यनन्दी महाराज ने अपने गुरु पूज्य समन्तभद्र महाराज द्वारा स्थापित अनेक गुरुकुलों का पोषण अपनी दान प्रेरणा से किया इन गुरुकुलों में जैनागम का शिक्षण तथा लौकिक शिक्षण गुरुकुल पद्धति से होता है। इस प्रकार दिगम्बर जैन समाज को इन गुरुकुलों द्वारा अनेक उद्भट विद्वानों की श्रृंखला देकर जीवंत तीर्थों का पोषण उनके द्वारा किया गया। इन गुरुकुलों में समाज के अधिकांश विपन्न वर्ग के बालक निःशुल्क शिक्षण प्राप्त करते हैं। इन गुरुकुलों में विशेष उल्लेखनीय श्री पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन ब्रह्मचर्य आश्रम गुरुकुल एलौरा (वेरुल) है जिसकी स्थापना 5 जून 1962 की श्रुतपंचमी के दिन पूज्य आर्यनन्दी महाराज के सान्निध्य में हुई। इस गुरुकुल में 300 विद्यार्थियों को For Private & 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