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शिक्षण, छात्रावास, भोजन की निःशुल्क व्यवस्था के साथ धार्मिक और लौकिक शिक्षण भी दिया जाता है।
अन्य उल्लेखनीय गुरुकुल पूज्य आर्यनन्दी जी महाराज द्वारा पोषित देशभूषण - कुलभूषण ब्रह्मचर्याश्रम कुंथलगिरी तथा पूज्य श्री की प्रेरणा से स्थापित श्री नेमिनाथ दिगम्बर जैन ब्रह्मचर्याश्रम गुरुकुल नवागढ़ है। इस गुरुकुल में 200 छात्रों की निःशुल्क शिक्षण व्यवस्था है । पूज्य श्री द्वारा स्थापित गुरुकुल आज उनके न होने पर भी उसी गरिमा से चल रहे हैं, जैसे कि उनके जीवनकाल में चलते थे। पूज्यश्री द्वारा समाज को प्रेरित कर इस प्रकार की व्यवस्था की गयी है कि अर्थाभाव अथवा अन्य कारणों से इन धर्माश्रयों के संचालन में व्यवधान न आये।
इन आश्रमों से निकले हुए विद्वान स्वेच्छा से वर्षो यहाँ अध्यापन का कार्य सेवाभाव से करते हैं। इस प्रकार विद्वानों की सतत जीवंत श्रृंखला चल रही है। यह उनके द्वारा धर्म प्रवर्तन का जीवंत स्वरूप है ।
सम्मेदशिखर पर स्थापित चौपड़ा कुण्ड मन्दिर
श्वेताम्बरों के प्रबल विरोध का सामना करते हुए पूज्य आर्यनन्दी जी महाराज की प्रेरणा से ही चौपड़ा कुण्ड, सम्मेदशिखर पर मन्दिर निर्माण तथा जिनबिम्बों की स्थापना हो पायी थी। पूज्य आचार्य आर्यनन्दी जी महाराज को इस कार्य को पूरा कराने की प्रेरणा पूज्य आचार्य विमलसागर महाराज से प्राप्त हुई थी। श्री सम्मेदशिखर के पर्वत पर अनेक वर्षों से मूर्तियाँ स्थापना हेतु खुले मैदान में रखी हुई थीं श्वेताम्बरों द्वारा वहाँ अनेक कानूनी तथा असामाजिक तत्त्वों के माध्यम से व्यवधान उपस्थित किये जाते रहते थे। आचार्य विमलसागर जी जैसे प्रभावक सन्त इस कार्य को पूरा नहीं करा पाये थे। पूज्य विमलसागर महाराज ने एक दिन सहज परिहास में पूज्य आर्यनन्दी महाराज से कहा कि यदि चौपड़ा कुण्ड पर आपके होते मन्दिर निर्माण नहीं हो पाया तो आपका "तीर्थ शिरोमणि तिलक" कहलाना व्यर्थ है। यह सन् 1996 सम्मेदशिखर चातुर्मास के अवसर पर हुए वार्तालाप का अंश है। दोनों आचार्यों में इस प्रकार का सहज वात्सल्यपूर्ण वार्तालाप यदा-कदा चलता रहता था । आचार्य आर्यनन्दी जी महाराज ने इसे गम्भीरता से विचारते हुए संकल्प किया कि “जब तक सम्पूर्ण
श्री पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम, अशोक नगर, उदयपुर में श्री दिगम्बर जैन महासमिति उदयपुर संभाग एवं श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर के संयुक्त तत्त्वावधान में 21 जून से 29 जून, 2002 तक 8 दिवसीय शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें धार्मिक शिक्षण, पूजन एवं संस्कार आदि का प्रशिक्षण दिया गया। 350 शिक्षार्थियों ने शिविर में भाग लिया एवं 217 ने परीक्षायें दीं। आठ दिन तक तीन सत्रों में बालबोध भाग 1, 2, 3, 4 छहढाला, द्रव्यसंग्रह,
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मंदिर निर्माणकार्य तथा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा इन मूर्तियों की नहीं हो जायेगी, तब तक वे चौपड़ा कुण्ड से अन्यत्र कहीं नहीं जायेंगे । इस पावन पुनीत कार्य हेतु उन्हें कितने ही उपसर्ग क्यों न झेलना पड़ें, यहाँ तक कि कारावास अथवा प्राणोत्सर्ग करना पड़े तो करेंगे। उन्होंने नवयुवक उत्साही कार्यकर्ताओं को इस कार्य हेतु प्रेरित करते हुए कहा कि यदि श्वेताम्बरों अथवा अराजकतत्त्वों द्वारा गोलियाँ चलीं, तो पहली गोली वह अपने ऊपर झेलेंगे।" महाराज के इस प्रकार के निर्णय से कार्यकर्ताओं के मन में हर संघर्ष से जूझने का संकल्प जाग्रत हुआ। अब उन्हें न कानून का भय था, न ही श्वेताम्बरों से मुकाबले का आचार्यश्री ने दीप स्तम्भ बनकर उनका पग-पग पर मार्गदर्शन किया। निर्माण कार्य हेतु अर्थाभाव की पूर्ति दान दातारों द्वारा महाराज की व्यक्तिगत प्रेरणा से संभव हो सकी।
महाराजश्री पर्वत पर ही अनेक माह तक विराजमान रहे । अनेक मानवीय और प्राकृतिक आपदाएँ उनके सामने आयीं । पर्वत पर रहते हुए सर्दी-गर्मी की भीषणता महाराज की उस वज्र जैसी दुर्बल काया ने झेली अनेक प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि "देव उनकी रक्षा करते थे।" दिनाँक 23.04.1996 का दिन दिगम्बर जैन समाज के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाने योग्य है, जब पूज्य आर्यनन्दी महाराज के सान्निध्य में नवनिर्मित मंदिर की वेदियों पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा पश्चात् तीर्थंकरों की मूर्तियों को विराजमान किया गया यह एक ऐसी ऐतिहासिक घटना थी, जिसने अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज को - गौरवान्वित किया । श्वेताम्बरों के विरुद्ध सफलता का कीर्तिध्वज सम्मेदशिखर चौपड़ा कुण्ड पर सदियों तक पूज्य आचार्य तीर्थरक्षा शिरोमणि तिलक" आर्यनन्दी महाराज की कृपा से सदैव लहराता रहेगा। इस प्रकार मुनिश्रेष्ठ विष्णुकुमार जी मुनि की परम्परा को दुहराने वाले आचार्य आर्यनन्दी महाराज के तीर्थों के लिये किये गए कार्यों को सदैव स्मरण किया जावेगा और दिगम्बर जैन समाज उनका सदा ऋणी रहेगा। ऐसे इस युग के मुनिश्रेष्ठ को कोटिशः नमन, जो जीवन भर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थों के संरक्षण हेतु समर्पित रहे।
| सर्वोदय सम्यग्ज्ञान शिक्षण शिविर सम्पन्न
रत्नकरण्ड श्रावकाचार एवं तत्त्वार्थसूत्र की कक्षायें आयोजित की गईं, जिनमें अध्यापन का कार्य श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर से पधारे हुए शिविर कुलपति बा. ब्र. श्री महेश भैया जी एवं आठ विद्वानों ने किया। शिविर को परम पूज्य आचार्यरत्न 108 श्री वर्धमानसागर जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त था ।
कुन्थुकुमार जैन संयुक्त महासचिव
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- अगस्त 2002 जिनभाषित
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