Book Title: Jinabhashita 2002 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ तन्दूरी फिश इत्यादि के लिए भी किया जाता है तथा चाहे आर्डर | जाता है। उन्हीं पटियों पर रखकर जो चाकू सब्जी काटने के काम वेज का हो या नानवेज का इन सलाखों को कभी धोया नहीं जाता | में आते हैं उन्हीं से मटन-चिकन काटा जाता है और इन चाकुओं व पटियों को कभी धोया भी नहीं जाता है। . इन सिके हुए, मक्खन लगे तन्दूरी व्यंजनों पर मसाला डीप फ्रीज जो प्रिजर्वेशन के लिए होता है उसमें वेजलगाया जाता है, जो एक बड़े बर्तन में रखा होता है तथा इसी में | नानवेज दोनों रखे जाते हैं। चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी व्यंजन दोनों को लपेट-लपेट कर तंदूर पर उस्ताद जिन हाथों से चिकन काटते हैं, रोटी का मसाला लगाया जाता है। आर्डर आने पर बिना हाथ धोए, रोटी भी बना देते हैं। इन्डियन सेक्शन स्टील की एक बड़ी टेबल जिस पर कटा हुआ चिकन, ___ यह रसोई का वह हिस्सा है जहाँ पर सभी सब्जियाँ व मटन रखते हैं, उसी पर वक्त आने पर चावल भी बनाकर ठंडा दालें बनती हैं। यहाँ पर एक-दो भट्टियाँ व दो टेबलें पास-पास करने के लिए फैलाये जाते हैं, जिसमें कई बार खून व मांस भी रखी होती हैं। मिल जाता है। टेबल पर सारा कच्चा माल जैसे मावा, पनीर, दूध, दही, फ्रूट सलाद जिसका नानवेज से कोई सम्बन्ध नहीं होना क्रीम रखा होता है। उसी टेबल पर मांसाहारी खाने की कच्ची | चाहिए, उसे भी टेस्टी बनाने के लिए अंडा फेंटकर मिलाते हैं। सामग्री जैसे अंडे, मछली, चिकन रखा होता है। रविवार या छुट्टी के दिनों में या पार्टी होने पर जब भीड़ भट्टी के यहीं पास ही सारे मसाले रखे होते हैं। अब यदि अत्यधिक होती है तब किचन की सफाई, स्वच्छता पर ध्यान न कोई भी आर्डर आता है, चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी, देते हुए ग्राहक को आर्डर समय पर लगाने पर ध्यान होता है। ऐसे कुक (रसोइया) उसको बनाते समय एक ही फ्रायपान व चम्मच समय में किचन को देखना नर्क की अनुभूति करने के समान है का इस्तेमाल करता है। क्योंकि हर स्थान पर नानवेज के अवशेष भरे पड़े रहते हैं। उदाहरण के लिए बटर चिकन का आर्डर है, तो कुक ऐसे समय कई बार ग्राहकों को गलतफहमी में वेज की पहले अपनी बड़ी चम्मच से फ्राईपान में घी डालेगा, फिर फ्राईपान जगह नानवेज डिश भी लग जाती है। में चिकन डालकर उसी चम्मच से हिलाएगा फिर उसी चम्मच से पानी की शुद्धता भी प्रमाणित नहीं होती है क्योंकि वह टंकियों में एकत्रित होता है जिसकी साफ-सफाई महीनों नहीं क्रीम, काजूपेस्ट या कोई भी मसाले, जो लेने हैं, लेते हैं, फिर बनी होती है। ग्रेवी, जो हर सब्जी या नानवेज के लिए इकट्ठी बनती है, उसी स्टाफ के सदस्यों के अनुभव के आधार पर यह निष्कर्ष चम्मच से लेते हैं। बटर चिकन बनने के बाद, फ्राईपान तो धुलता सामने आता है कि चाहे छोटा-सा रेस्टॉरेन्ट हो या बड़ा होटल, है पर चम्मच वहीं पास रखे पानी भरे तपेलों में डाले देते हैं। वेज-नानवेज साथ-साथ बनता है, तो वहाँ इसी प्रकार कार्य होता किसी दाल को पतला करना हो या ग्रेवी में पानी मिलाना हो तो इसी तपेले का पानी मिलाया जाता है जिसमें हर तरह की देखा जाए तो गलत वे लोग नहीं हैं, जो ऐसे प्रतिष्ठानों के वेज-नानवेज लगी चम्मच डालते हैं। मालिक हैं या उनमें कार्यरत हैं, क्योंकि वे लोग अधिकांशतया चायनीज् सेक्शन मांसाहारी ही होते हैं, इसलिए उन सबके लिए एक पूर्ण शाकाहारी चायनीज् सेक्शन बनाने के लिए भी मुख्यत: दो भट्टियाँ की भावना समझाना कठिन कार्य है। लगी होती हैं, एवं साइड टेबल कच्चा माल रखने के लिए होती है। साथ ही किचन-स्टॉफ का कहना है कि बगैर अण्डा या यदि आप स्प्रिंग रोल खा रहे हैं तो उसको चिपकाने के चिकन स्टाक मिलाए कोई व्यंजन बनाते हैं, तो ग्राहक को वह लिए अण्डे की जर्दी का उपयोग होता है। स्वाद ही नहीं आता, जिसकी आदत उसे वर्षों से पड़ी हुई है। चिली पनीर के घोल व मंचुरियन के पकोड़ों में भी अण्डे अंत में, मैं केवल इतना ही कहना चाहूँगा कि यह किताब का इस्तेमाल होता है। केवल उन लोगों की जानकारी के लिए है जो कि अज्ञानतावश सूप में कोई भी ग्रेवी की चीज बनाने में जो पानी इस्तेमाल | ऐसे रेस्टॉरेंट में खाना खाते हैं। होता है वह चिकन स्टाक होता है। और उन लोगों के लिए भी जो कुछ सच्चाई जानते तो हैं, (चिकन को उबालकर उसका जो पानी बचता है उसे | पर हाई सोसायटी व पाश्चात्यता का नकाब ओढ़ने के कारण यह चिकन स्टाक कहते हैं) सब अनेदखा कर देते हैं। यदि इस लेख को पढ़कर एक भी तलने के लिए एक ही कढ़ाई होती है जिसमें शाकाहारी | पाठक ऐसे रेस्टॉरेन्ट (जहां शाकाहार एवं मांसाहार दोनों मिलते जैसे पापड़, चिप्स व मांसाहारी जैसे मछली, चिकन दोनों ही तले हैं) में भोजन करना बंद कर देता है, तो मेरा लेख लिखने का जाते हैं। उद्देश्य सफल हो जाएगा। सब्जी काटने के लिए लकड़ी के पटियों को काम में लाया | 'अनदेखा सच' से साभार 20 अगस्त 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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