Book Title: Jinabhashita 2002 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 21
________________ अनदेखा सच कविता- नितिन सोनी युवा दम्पती नितिन कविता सोनी ने अपने अनुभवों के आधार पर होटलों के शाकाहारी चरित्रों के दूसरे पहलू को अपनी लेखनी से उजागर किया है। शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों आहारों की व्यवस्था वाले होटल विज्ञापन तो इस बात का करते हैं कि उनके यहाँ शाकाहार की पृथक व्यवस्था है, किन्तु उनकी कथनी और करनी का अंतर शाकाहारियों को कमोवेश मांसाहार भी कराता रहता है और वे इस भ्रम में बने रहते हैं कि वे जो खा रहे हैं, वह शुद्ध शाकाहार है । लेखक ने स्पष्ट किया है कि दोनों आहार वाले होटलों में शाकाहार की मर्यादा व्यावहारिक रूप से संभव ही नहीं है। लेखक ने इस लोक प्रचलित विश्वास को ध्वस्त करने का पूर्ण प्रयास किया है कि दोनों शैलियों के भोजन वाले स्थानों पर दोनों शैलियाँ एक-दूसरे से दूरी बनाए रखती हैं और शाकाहारी ग्राहक को शुद्ध शाकाहार मिलता है। खानसामा की विवशताएँ, बर्तनों की सीमाएँ और दोनों प्रकार के आहारों में समान रूप से खाई जाने वाली / उपयोग में आने वाली सामग्री में होने वाले तालमेल के कारण विशुद्ध शाकाहार ऐसी होटलों में असंभव है। निश्चित ही यह तथ्य ज्ञानवर्द्धक ही नहीं, आँखें खोलने वाला भी है। जहाँ तक मेरा अनुभव है, ऐसे होटलों में कट्टर शाकाहारी व्यक्ति आहार करते ही नहीं हैं। वे शाकाहारी ही वहाँ जाते हैं, जो कट्टर नहीं हैं और जो शाकाहार की औपचारिकता निभाना भर पर्याप्त समझते हैं। अंततः होटलें एक व्यवसाय है, धर्मानुशासन नहीं मांसाहार का व्यवसाय करने वाले से यह अपेक्षा रखना कि वह शाकाहारियों की भावनाओं से खेल नहीं करेगा, जरूरत से ज्यादा भोलापन ही कहा जाएगा। लेखक की सराहना की जानी चाहिए कि उसने उन तथ्यों को सबके सामने रखा है, जिनके बारे में या तो शाकाहारी अनभिज्ञ पाए जाते हैं या अनदेखा करते रहते हैं । प्रो. डॉ. सरोजकुमार, इन्दौर यह किताब जो कि मेरे निजी अनुभवों के आधार पर लिखी गई है, समर्पित है मेरे स्वर्गीय पिता श्री रमेशचन्द्र जी सोनी एवं स्वर्गीय माताजी श्रीमती सुमन सोनी को। इस किताब को पूर्ण करने में इसके लेखन में इसकी परिकल्पना में, पूरा-पूरा सहयोग दिया मेरी पत्नी श्रीमती कविता सोनी ने, जिनके बिना यह कार्य कभी संभव नहीं था । मैंने पिछले एक साल ऐसे रेस्टॉरेंट में प्रबंधन का कार्य संभाला, जहाँ पर शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों तरह का खाना बनता है। अपनी आँखों के सामने ऐसा प्रदूषित वातावरण देखना एक ऐसा पीड़ाजनक अनुभव है जिसे शब्दों में बयां करना बहुत ही कठिन है । मैं स्वयं अपने को दोषी मानता हूँ, हिस्सा मानता हूँ, ऐसे नारकीय वातावरण में कार्य करने के लिए। परन्तु कभी-कभी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ ऐसे काम करने को विवश कर देती हैं। मुझे अपने इस अनुभव को आप तक पहुँचाना इसलिए जरूरी लगा, क्योंकि वे लोग जो ऐसे रेस्टॉरंट में खाना खाते हैं और सोचते हैं कि वे पूर्णत: शाकाहारी भोजन ही ग्रहण कर रहे हैं, तो वे पूर्णतः गलत हैं । आइए अब आपको एक ऐसे ही शाकाहारी मांसाहारी रेस्टॉरंट के रसोईघर यानि किचन की झलक दिखलाते हैं: सर्वप्रथम तो परिचित करवाते हैं किचन की बनावट से जो सामान्यतः सभी रेस्टॉरेन्ट में तीन भागों में बँटी रहती है: Jain Education International 1. तन्दूर सेक्शन, 2. इन्डियन सेक्शन, 3. चायनीज् सेक्शन तन्दूर सेक्शन यहाँ पर शाकाहारी एवं मांसाहारी यानि वेज एवं नानवेज तन्दूरी भोजन सामग्री तैयार होती है। • तन्दूरी रोटी के साथ नान का आटा भी लगाया जाता है, जिसमें खमीर उठाने के लिए और नर्म व सुस्वादु बनाने के लिए अंडे का इस्तेमाल किया जाता है । जो टेबल तंदूर उस्ताद के पास होती है वह एक ही होती है, जिस पर रोटी का आटा व नानवेज के सारे आयटम एक साथ रखे रहते हैं। जब तंदूरी मुर्गा या अन्य मांसाहारी तन्दूरी आइटम बनाना होता है तो पहले उस पर मक्खन व तेल का मिश्रण लगाया जाता है। इसके लिए एक डब्बे में तेल व मक्खन का मिश्रण भरा होता है तथा एक लकड़ी पर कपड़ा बाँधकर मिश्रण में डाल देते हैं, जिसके द्वारा वह मिश्रण तन्दूरी मुर्गे पर लगाया जाता है तथा उसी लकड़ी व उसी मिश्रण का शाकाहारी लोगों की रोटी / नान पर भी उपयोग किया जाता है। किसी भी तन्दूरी डिश जैसे पनीर टिक्का, पनीर पुदीना टिक्का, वेज सीक कबाब को तैयार करने के लिए पहले टिक्का व कबाब बनाये जाते हैं, जिन्हें लोहे की सलाखों में लगाकर तन्दूर में डाला जाता है। यहाँ ध्यान देने योग्य यह है कि इन्हीं लोहे की सलाखों का उपयोग मांसाहारी व्यंजन जैसे तन्दूरी मुर्गा, चिकन टिक्का, - अगस्त 2002 जिनभाषित 19 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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