Book Title: Jinabhashita 2002 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 16
________________ अविद्या कही गयी है, किन्तु 'मैं शरीर नहीं हूँ, चैतन्यमय आत्मा है' यह बुद्धि विद्या है। इस विद्या के बल पर ही व्यक्ति अपने इष्ट को पा लेता है। आचार्य अकलंकदेव कहते हैं कि त्रैलोक्यं सकलं त्रिकालविषयं सालोकमालोकितम् । साक्षात् येन यथा स्वयं करतले रेखात्रयं सांगुलि ॥ रागद्वेषभयामयान्तकजरालोलवलोभादयो, नालं कल्पदलंघनाय स महादेवो मया विद्यते ॥ अर्थात- जो त्रिकालवर्ती लोक तथा अलोक के समस्त पदार्थों का हस्तगत अंगुलियों तथा रेखाओं के समान साक्षात् अवलोकन करते हैं तथा राग-द्वेष, भय, व्याधि, मृत्यु, जरा, चंचलता, लोभ आदि विकारों से विमुक्त हैं, उन महादेव - महान देव की मैं वन्दना करता हूँ । जिनभक्ति कर्मक्षय के लिए होती है। संसार के दुःखों के बीच शान्ति का अमोघ उपाय जिनभक्ति है। इससे चिरसंचित पापों का क्षय होता है और चिरसंचित अभिलाषाओं की पूर्ति सहज ही हो जाती है। जिनेन्द्रदेव के दर्शन से नेत्र सफल हो जाते हैं, आत्मा परिष्कृत होती है और हृदय परम सन्तोष का अनुभव करता है। दर्शनपाठ में हम पढ़ते हैं Jain Education International अद्याभवत्सफलता नयनद्वयस्य, देव त्वदीय चरणाम्बुज वीक्षणेन । अद्य त्रिलोकतिलक प्रतिभासते मे, संसारवारिधिरयं चुलुकप्रमाणम् ॥ यह दिन हमारे जीवन में बार-बार आये ऐसी मंगल कामना है। एलोरा (महाराष्ट्र) में विशाल आर्यिका संघ का चातुर्मास परिषद् सदस्या ने उनकी धर्मपत्नी सौ. चमेलीदेवी जैन का स्वागत किया। आदरणीया ब्रह्मचारिणी सुषमा दीदी ने अपना मनोगत व्यक्त करते हुए संस्था के कार्यों की सराहना की। संस्था सचिव 'शिक्षण महर्षि' श्री पन्नालाल जी गंगवाल ने अपने प्रास्ताविक में संकल्प किया कि आर्यिकासंघ का चातुर्मास व्यवस्थित रूप से सम्पन्न कराया जायेगा। उन्होंने बताया कि सम्पूर्ण कमेटी एवं डॉ. प्रेमचन्द्र जी पाटनी एलोरा चातुर्मास व्यवस्था के मुख्य कार्यवाह हैं। महाराष्ट्र की प्रसिद्ध ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक लघुनगरी एलोरा में श्री पार्श्वनाथ ब्रह्मचर्याश्रम गुरुकुल के विशाल परिसर में दिनांक 25.7.2002 को विश्वविख्यात यशस्वी सन्त परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी की सुयोग्य शिष्याओं पूजनीय आर्थिका श्री अनन्तमति जी एवं आर्यिका श्री आदर्शमति जी का अपने अपने संघ के साथ चातुर्मास का शुभारम्भ मंगल कलश की स्थापना के साथ हुआ। दोनों आर्यिका संघों में सब मिलाकर तीस आर्यिका माताएँ विराजमान हैं। अनेक ब्रह्मचारिणी बहनें भी हैं। इनके अतिरिक्त परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी से आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण करने वाली प्रतिभामंडल की 70 बहनें भी पूजनीया आर्यिका श्री आदर्शमति माताजी के अनुशासन में संस्कृत साहित्य का उच्च अध्ययन करने के लिए पधारी हैं। इन्हें अध्ययन कराने के लिए आचार्य श्री के आदेश से भोपालनिवासी प्रो. पं. रतनचन्द्र जी का भी आगमन हुआ है। महाराष्ट्रवासियों को इतने विशाल संघ का चातुर्मास | देखने का पहली बार सौभाग्य प्राप्त हुआ है। चातुर्मास स्थापना का कार्यक्रम दि. 25.7.2002 को अपराह्न 2 बजे से प्रारंभ हुआ । इस दिन वीरशासन जयन्ती भी थी। अतः प्रतिभामंडल की बहनों के शिक्षण का शुभारंभ भी इसी दिन किया गया। सर्वप्रथम प्रतिभामंडल की ब्रह्मचारिणी बहनों ने मंगलाचरण किया। तत्पश्चात् मुम्बई निवासी श्री नरेश जी जैन के द्वारा आचार्य श्री विद्यासागर जी के चित्र का अनावरण तथा श्री जयसुखभाई चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट मुंबई द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया। संस्था के अध्यक्ष श्री तनसुखलाल जी ठोलिया ने प्रो. रतनचन्द्र जी का तथा डॉ. सौ. सरला पाटनी, प्राक्तन जिला 14 अगस्त 2002 जिनभाषित एल 65, न्यू इन्दिरा नगर, ए बुरहानपुर (म. प्र. ) आर्यिका माताओं को शास्त्रदान की पहली बोली श्री विजय कुमार जी महेन्द्रकर ने 11000 रु. में तथा दूसरी बोली श्री झुंबर लाल जी पाटनी ने 12000 रु. में ली। चातुर्मास मंगलकलश की बोली गुरुदेव समन्तभद्र विद्यालय के प्रधानाध्यापक के सुपुत्रद्वय श्री निशान्त कुमार एवं स्वप्निल कुमार ठोलिया ने 51000 रु. में ली। प्रतिभामंडल के ज्ञानसागरकलश की बोली 35000 रु. में श्री सन्दीपकुमार जी, सचिन कुमार जी एवं श्री शान्तिलाल जी अजमेरा कलाअध्यापक एलोरा के द्वारा ली गई। अन्त में पूजनीया आर्यिका श्री अनंतमति जी का मंगल सम्बोधन हुआ। कार्यक्रम का संचालन श्री निर्मलकुमार जी एवं श्री गुलाबचन्द्र जी जैन ( बोरालकर) ने किया। इस दिन का भण्डारा संस्था सदस्य श्री शान्ति नाथ जी गोसावी द्वारा दिया गया। For Private & Personal Use Only एन.सी. ठोलिया, मुख्याध्यापक गुरुदेव समन्तभद्र विद्यामन्दिर, एलोरा (महाराष्ट्र ) www.jainelibrary.org

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