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साधुओं की श्रुति-परम्परा के आधार पर ज्ञान को सुरक्षित रखने । ज्ञान-विज्ञान का अधिकांश अभ्युदय अब भी सरकारी अनुदानों से का विकल्प नहीं था। समाज में विद्वान् कम, वणिक अधिक थे। | करवाया जा रहा है। बौद्ध इस मुकाबले में लाभ ले गये। उन्होंने राज्याश्रय प्राप्त किया | दिगम्बर परम्परा की मान्यतानुसार श्रुत परम्परा छिन्नऔर देश के विभिन्न क्षेत्रों में कई विश्वविद्यालय स्थापित किये | भिन्न हो गयी। मात्र कुछ अंश शेष बचे हैं। श्वेताम्बर परम्परा ने और सम्पूर्ण विश्व पर हावी हो गये। वैदिक समाज अपनी समर्पित इसे स्मृति में सुरक्षित रखने का दावा किया और विशाल आगम पण्डित परम्परा और राज्याश्रय के बल पर, अपनी शास्त्रीय विद्वत्ता, | साहित्य खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं श्वेताम्बर तेरापंथ के कर्मकाण्ड और पूजनपाठ के बल पर चमत्कार दिखलाते रहे और | युगप्रधान आचार्य तुलसी ने एक ऐतिहासिक भूल को सुधारने का जन-समुदाय को अपनी ओर प्रभावित करते रहे। हम बहुत पीछे | प्रयास किया। लाडनूं (राज.) में जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय रह गये। हमारे आचार्यों ने जो शास्त्र रचे हम उन्हें बचा तक नहीं | की स्थापना करके विश्व का प्रथम जैन विश्वविद्यालय खड़ा कर पाये, जो बचा पाये, उसे पढ़-लिख नहीं पाये और उसके महत्त्व | दिया। समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ कि भगवान् महावीर के 2600वें को भी नहीं समझ पाये। हम खुद नहीं समझ पाये, इसलिए दुनिया जन्म महोत्सव के उपलक्ष्य में बिहार सरकार ने भगवान महावीर को नहीं समझा पाये । इसलिए आज हमसे हमारी पहचान पूछी जा विश्वविद्यालय बनाने की घोषणा की है। वह कब खुलेगा? यह रही है। हमें आज कोर्ट में सिद्ध करना पड़ता है कि हम अन्य कह नहीं सकते किन्तु उसकी रूपरेखा कैसे होनी चाहिए, यह नहीं, अपितु जैन हैं। हम अपने समृद्ध इतिहास और वैभव से | विचारणीय बिन्दु है। अनजान होने के कारण उसी प्रकार रो रहे हैं, जिस प्रकार बचपन | श्रुत रक्षा हेतु प्रयास में मेले में खो जाने के बाद करोड़पति बाप का लड़का रिक्शा बीसवीं सदी के प्रारम्भ में जैन विद्या के पठन-पाठन को खींचते हुए रोता है। क्योंकि उस लड़के को उस समय यह पता सुरक्षित रखने के लिए हमारे समाज के कर्णधारों ने जैन विद्यालयों नहीं है कि वह किसका पुत्र है? यह स्थिति हमारी है।
का शुभारम्भ किया। मध्यमा, शास्त्री, आचार्य की कक्षाओं में आशा की किरण
परम्परागत शास्त्रीय विषय पढ़ाकर विद्वत् पीढ़ियाँ तैयार हुईं। कुछ अनेक संघर्षों, उत्थान-पतन के बाद जाकर एक आशा | विश्वविद्यालयों तक में जैनदर्शन एवं प्राकृत विभाग खोले गये। की किरण जागी। कुछ जागरूक नेतृत्व के कारण समाज में काफी जैन चेयर स्थापित की गईं। इन सभी प्रयासों से जैन संस्कृति के शास्त्रीय पण्डित हो गये। ये भी श्रद्धावशात् आचार्यों भगवन्तों द्वारा | दर्शन-पक्ष का स्वरूप तो यत्किंचित निखरा और काफी कार्य रचित शास्त्रों को जीवन्त करने का काम करने लगे। कुछ ने | हुआ, किन्तु फिर भी जैन संस्कृति के अन्य महत्त्वपूर्ण विषय एवं समाज को जागृत किया, कुछ ने जैनेतर विद्वानों के समक्ष जैन | पक्ष बिल्कुल उपेक्षित रह गये, जिनका अध्ययन-अध्यापन और सिद्धान्तों, संस्कृति और समृद्ध साहित्य को अच्छे ढंग से प्रस्तुत | अनुसन्धान कार्य बहुत आवश्यक था। इनके बिना समग्र विद्या का किया। वर्तमान युग में जैनाचार्य, साधु और श्रावक भी इस दिशा | कार्य अधूरा है। इन सभी पक्षों की पूर्ति हेतु स्वतंत्र जैन में गतिशील हुए हैं। उन्होंने जैन शास्त्रों के अध्ययन-अध्यापन- | विश्वविद्यालय बहुत आवश्यक है। अनुसन्धान-अनुवाद तथा सम्पादन के महत्त्व को पहचाना और | जैन विश्वविद्यालय की परिकल्पना आज अपने-अपने स्तर पर सभी इसे आगे बढ़ाने में लगे हैं। जैन
आज जगह-जगह जैन विश्वविद्यालय बनाने की चर्चाएँ ग्रन्थों की अस्मिता सुरक्षित करने में जहाँ एक तरफ जैनेतर विद्वानों | सुनता हूँ, किन्तु जैन विश्वविद्यालय कैसा होना चाहिए,इसका की उपेक्षणीय दृष्टि झेलनी पड़ी वहीं दूसरी ओर ऐसे अनेक विद्या- | कोई निश्चित स्वरूप अभी तक देखने में नहीं आया। जैन नाम से प्रेमी ब्राह्मणों के वे ऋणी हैं, जिन्होंने जैन शास्त्रों के संवर्द्धन व | तो विश्वविद्यालय स्थापित हो सकते हैं, किन्तु वहाँ भी यदि सम्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
व्यावसायिक या लौकिक शिक्षा के पाठ्यक्रम ही लागू रहें, तो कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
नाममात्र से ही क्या फायदा? मूल भारतीय संस्कृति में पली-पुसी जैन संस्कृति ने | हमारे मन में ऐसे ही विश्वविद्यालय की परिकल्पना बहुत जनमानस पर भरपूर प्रभाव डाला और अपनी जड़ें मजबूत की। | दिनों से बार-बार बनती रही है, जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता वैदिक स्वर के साथ स्वर न मिलाने के कारण जैनों को सदा सत्ता | को बनाते हुए पूर्ण रूप से जैन संस्कृति मात्र के प्रति समर्पित हो। और बहुबलों की कोप दृष्टि भी झेलनी पड़ी और आज भी झेलनी | किसी भी विश्वविद्यालय में एकमात्र जैनदर्शन एवं प्राकृत विभाग पड़ रही है। सरकार द्वारा जैन परम्परागत अध्ययन-अध्यापन तथा | चलाने से संपूर्ण संस्कृति का संवर्द्धन संभव नहीं, समग्रता जैनधर्म शोध पर कभी कोई लम्बे कार्य नहीं किये गये और न ही उनके के विभिन्न उपेक्षित महत्त्वपूर्ण विषयों के अध्ययन में होगी। एक लिए अनुदान दिये गये। मुसलमानों के मदरसों के लिए भरपूर | पूर्णतः स्वायत्तशासी तथा सरकार द्वारा अनुदानित जैन विश्वविद्यालय सरकारी अनुदान मिलते हैं, बौद्धों के शोधसंस्थान और | देश के किसी बड़े शहर में स्थापित होना चाहिए। यह विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय भी सरकारी अनुदान से चल रहे हैं और वैदिक | कोई धर्म प्रचार का केन्द्र न बनकर मात्र शैक्षणिक रूपरेखा वाला 16 अगस्त 2002 जिनभाषित -
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