Book Title: Jainism vis a vis Brahmanism
Author(s): Bansidhar Bhatt
Publisher: Z_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2

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Page 19
________________ Jainism vis-à-vis Brahmanism 19 + ...यद् ब्रह्मविदो वदन्ति... (Md. Up. 1. 1.4) (22) जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ... __(Ac. I. 129) Cp. यथा..एकेन मृत्पिडेन सर्वं मृन्मयं विज्ञातं स्यात्... (Ch. Up.6.1.4) + ...आत्मा...द्रष्टव्यः...आत्मनः...दर्शनेन...इदं सर्वं विदितम्... (BdA. Up. 2. 4.5) + आत्मनि खलु विज्ञाते इदं सर्वं विदितम... (BdA. Up. 4.5.6) + कस्मिन्नु..विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवति ? (Md. Up. 1. 1. 3) + एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति... | (Rv. 1. 164.46) + एकं सन्तं बहुधा कल्पयन्ति (Rv. 10. 114.5) (23) जे आया से विण्णाया...जेण जाणइ से आया.. (Ac. I. 17) Cp. ....लोकनमुं च विज्ञानेनैव विजानाति.... (Ch. Up.7.7.1) (24) नावकंखंति जीवियं... (Ac. I.56, 129=Su. I: 3.4.15; 9.34 + कालस्स खंखाए परिव्वयंति... (Ac. I. 166) + कंखेज्ज कालं जाव सरीरभेदो ति.... (Ac. I. 198) + जीवियं नाभिकंखेज्जा मरणं णो वि पत्थए.... (Ac. I. 232) + जइ जीवियं नावकंखए... (Su. I.2. 1. 18) + जीवियं नावकंखिज्जा.... (Su. I.3.2. 13) + कंखेज्ज कालं... (Su. I. 5. 2. 25) + कालोवणीए सरीरस्स भेए... (Utt. 4.9) + कंखे गुणे जाव सरीरभेउ... (Utt. 4. 13, also see Utt. 2.37) Cp.किमिच्छन् कस्य कामाय शरीरमनुसच्चरेत्... (BdA. Up.4.4.12) + मृत्युं च नाभिनन्देत जीवितं वा कथंचन । नाभिनंदेत मरणं नाभिनंदेत जीवितम् ।। + कालमेव प्रतीक्षेत यापदायः समाप्यते। नाभिनंदेत मरणं नाभिनंदेत जीवितम।। (Ndpv. Up. 3.60-61) + जीवितं वा न कांक्षेत कालमेव प्रतीक्ष्यते... (Ndpv. Up. 5. 1) + (see also Suttanipāta 516) (25) सुसाणंसि वा सुण्णागारंसि वा रुक्खमूलंसि वा गिरिगुहंसि वा कुंभारायतणंसि वा... (Ac. I. 204) + सुसाणे सुण्णगारे वा रुक्खमूले वि.... (Ac. I. 279=Utt. 2. 20; 35. 6) Cp. ...शून्यागारवृक्षमूल...कुलालशाला...गृहकंदर...स्थंडिलेषु श्वेतकेतु..-वद्-शुक्लध्यानपरायणः... शरीरमुत्सृज्य संन्यासेनैव देहत्यागं कोरति, स कृतकृत्यो भवति... (Ndpv. Up. 3. 86) + ...शून्यागार..., वृक्षमूलनिकेतो वा...ब्राह्मणः... (Ndpv. Up. 5. 13) + ...शून्यागार...., वृक्षमूलकुलालशाला...गिरिकुहरकोटरकंदर..स्थंडिलेषु ...संन्यासेन देहत्यागं करोति... (Yv. Up. 1) + ...यथा निग्रंथो...ब्रह्ममार्गे सम्यक्संपन्नः...शून्यागार...वृक्षमूलकुलालशाला....गिरिकुहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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