Book Title: Jainism vis a vis Brahmanism
Author(s): Bansidhar Bhatt
Publisher: Z_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2

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Page 32
________________ 32 Bansidhar Bhatt Jambu-jyoti Section 3: Uttarādhyayana-sūtra (1) (2) नत्थि जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए... (Utt. 2.27) Cp. जीवापेतं वाव...म्रियते, न जीवो म्रियत इति.. (Ch. Up. 6. 11.3) + अविनाशी वा अरे अयमात्मा... (BdA. Up. 4.5. 14) + न जायते म्रियते वा विपश्चिद् अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणः.. (Kth. Up. 1. 2. 18 = Gt. 2. 20; Mh. Up. 5. 165) + अविनाशी तु तद् विद्धि...विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित् कर्तुमर्हति... (Gt. 2. 17) जहा य अग्गी अरणी असंतो खीरे द्ययं तेल्लमहा तिलेसु, एवमेव जाया सरीरंसि सत्ता... (Utt. 14. 18) Cp. तिलेषु तैलं दधनीव सर्पिः, अरणीषु चाग्निः एवमात्मा गृह्यते. (Sv. Up. 1. 15 = Bhm. Up 1) + क्षीरे सपिरिवार्पितम्... (5v. Up. 1. 16) + अरण्यो निहितो जातवेदाः... (Kth. Up. 2. 4.8) + घृतमिव पयसि निगूढम्... (Bhmbd. Up. 20) + तिलेषु तैलमिव... (Hms. Up. 4) + तिलानां तु यथा तैलम्... (Dhbd. Up.7) + तिलेषु च यथा तैलम्... (Bhmvd. Up. 35) समया सव्वभूएसु सत्तुमित्तेसु वा... (Utt. 19.25) Cp. समौ शत्रौ च मित्रे च.. (Gt. 12. 18) सव्वारंभपरिच्चाओ... (Utt. 19.29) + Cp. सर्वारंभपरित्यागी... (Gt. 12. 16) समलेढुकंचणे... (Utt. 35. 13) Cp. समलोष्टाश्मकांचनः.. (Gt. 14.24) समो य सव्वभूएसु... (Utt. 19.89) Cp. समोऽहं सर्वभूतेषु... (Gt. 9.29) लाभालाभे सुहे दुक्खे...समो निंदापसंसासु तहा माणावमाणओ... (Utt. 19.90) Cp. स्तूयमानो न तुष्येत निदितो न शपेत्परान्... (KthR. Up. 4) + सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ... (Gt. 2. 38) + समः...मानावमानयोः, तुल्यनिंदास्तुतिः... (Gt. 12. 18-19) + ...तुल्यनिंदात्मसंस्तुतिः.... (Gt. 14.24) जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा, एवं अलित्तं कामेहिं तं वयं बूम माहणा... (Utt. 25-27) + सव्वे विरत्तो...न लिप्पए भवमझे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणी-पलासं... (Utt. 32.34 etc. , passim.) + तम्हा खलु अपरिसाडिणो बुद्धा नोवलिप्पंति पुक्खरपत्तं व वारिणा... (Rs. 22. 1) (4) (6) (8) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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