Book Title: Jainism vis a vis Brahmanism Author(s): Bansidhar Bhatt Publisher: Z_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2Page 23
________________ Jainism vis-à-vis Brahmanism 23 Cp. असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः । ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ।। (īša Up. 3) + अन्धं तमः प्रविशन्ति...ततो भूय इव ते तमः...रताः... (BdA. Up. 4. 4. 10; = Isa. Up. 9, 12; Vjsam. 40. 9. 12; SpBr. 14.7.2. 13) + अनन्दा नाम ते लोका अंधेन तमसावृताः। ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्त्यविद्वांसोऽबधो जनाः ।। (BdA. Up. 4.4.11, = Vijsam. 40.3; see Kth. Up. 1.3, SpBr. 14.7.2. 14) + अन्धं तमः... (Av. 18.3.3) + न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम... (Gt. 13.28) (42) सत्ता कामेहि माणवा.. (Ac. I. 180 = Su. I. 1. 1.6) + आरंभसत्ता पकरेंति संग... (Ac. I. 62) + अतियच्च सव्वओ संगं... (Ac. I. 184) + मंदा पकरेह पावं... (Utt. 12. 39) Cp. तदेव सक्तः सह कर्मणैति... (BdĀ. Up. 4. 4.6; SpBr. 14.7.2.8) + संगस्तेषूपजायते... (Gt. 2. 62) + सक्ताः कर्मण्यविद्वांसः... (Gt. 3. 25) + संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये... (Gt. 5. 11) (43) णो पाणिणं पाणे समारंभेज्जासि... (Ac. I. 121) Cp....प्राणभृतः प्राणं न विच्छिन्द्यात्... (BdA. Up. 1. 5. 14) (44) ...चेच्चाण भेउर कायं संविहुणिय...भेरवमणुचिण्णे...कालपरियाए... (Ác. . 228) + संवुडे देहभेदाए... (Ac. I. 250) [For details, see above Section 1, (24): the Jaina passages.) , Cp. ...शरीरमृत्सृज्य संन्यासेनैव देहत्यागं करोति, स कृतकृत्यो भवति... (Ndpv. Up. 3. 86) + ...संन्यासेन देहत्यागं करोति... (Yv. Up. 1) + ...संन्यासेन देहत्यागं करोति स परमहंसः... (Jbl. Up. 6) + ...संन्यासेन देहत्याग कुर्वन्ति ते परमहंसाः... (Bhk. Up) + ...संन्यासेन देहत्यागं करोति स परमहंसपरिव्राजको भवति.. (Phpv. Up.) [For details, see Section 1, (24-25), (57) : the Brahmanical passages.] (45) अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि पासति पुढो वि सवंताई... (Ac. I. 92) + विगिच मंससोणितं... (Ac. I. 143) Cp. ...जायस्स म्रियस्वेत्येतत्...तस्माज्जुगुप्सेत... (Ch. Up. 5. 10. 8) + मांस...शोणित...दूषिते...दुर्गन्धे...शरीरे...and + ...अस्थिचर्म...दूषिते विण्मूत्र...संघाते दुर्गन्धे...शरीरे... (Mt. Up. 1. 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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