Book Title: Jainendra Kahani 03
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 208
________________ काल-धर्म महाराज विजयभद्र विजय पर विजय पाते चले गए । यहाँ तक कि समस्त आर्य-खण्ड एकच्छत्र उनके चक्रवर्तित्व के नीचे आ गया । प्रतिस्पर्धी-जगत् में उनके लिए कहीं कोई शेष नहीं रह गया । कुछ काल-पर्यन्त इस प्रकार चक्रवर्तित्व करने पर जीवन में उन्हें विरसता अनुभव हो आई और उन्होंने राज-पुत्र से कहा, "पुत्र, राज्य तुम सम्भालो, हम सत्य की शोध में जाएँगे।” पुत्र ने विकल भाव से पूछा, “कहाँ जाएँगे, महाराज ?" पिता ने कहा, "भूठ में से सत्य की ओर जाना होगा। उसी की शोध में निकलना होगा।" ___ युवराज ने पूछा, "सत्य की शोध में महाराज को कहाँ जाना होगा।" महाराज ने कहा, "गिरि, वन, विजन, कहाँ-कहाँजाना होगा, यह कौन कह सकता है।" राजकुमार ने तर्क-पूर्वक कहा, "सत्य तो सब कहीं है, उसके लिए फिर कहीं से और कहीं को जाना क्यों होगा, पिता जी ?" महाराज ने खिन्न स्मित से कहा, "इसी अपने दुर्भाग्य के कारण जाना होगा, वत्स, कि मैं चक्रवर्ती हूँ। नगर, ग्राम मेरे १६१

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