Book Title: Jainendra Kahani 03
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 207
________________ १९० जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग] न रुके । वह गौ की गर्दन से लिपट कर तरह-तरह के प्रेम-सम्बोधन करने लगा। उसके बाद हीरासिंह ने बहुत-से आश्वासन के वचनों के साथ गौ को विदा किया। अगले सबेरे उसने सेठजी से कहा कि आप मुझ से जितने महीने की चाहें कसकर चाकरी लीजिए; पर गौ आज ही यहाँ से हमारे गाँव चली जायगी। रुपये जब आपके चुकता हो जायँ, मुझ से कह दीजिएगा। तब मैं भी छुट्टी ले जाऊँगा। सेठजी की पहले तो राजी होने की तबियत न हुई, फिर उन्होंने कहा, "हाँ, ले जाओ, ले जाओ। पर पूरा ढाई सौ रुपये का तावान तुम्हें भरना पड़ेगा।" हीरासिंह तावान भरने को खुशी से राजी हुआ और गौ को उसी रोज ले गया।

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