Book Title: Jainendra Kahani 03
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 221
________________ २०४ जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग क्योंकि वह अनावश्यक था। मानव-धर्म शास्त्र के प्रणेता ब्रह्मर्षि चक्रधर नीति के स्रोत थे और राज-राजर्षि महा-महिम चक्रधर छत्र-दण्डधारी शासन के प्रतीक थे। ___ उनका राज्य अखण्ड भाव से चल रहा है। किन्तु कालधर्म गतिशील है और सब में विकास होता है। शासन प्रणाली को उस तक बदलते जाना है जब तक उसका केन्द्र सब में नहीं फैल जाता और प्रत्येक व्यक्ति आत्मशासित नहीं होता। किन्तु मानवधर्माचारी शासनासीन हैं, और काल-धर्म शायद धीमी गति से चलता है।

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