Book Title: Jainacharyo ka Shasan bhed
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ गुणव्रत और शिक्षाव्रत शिक्षावतं चतुर्मेदं सामायिकमुपोषितम् । भोगोपभोगसंख्यानं संविभागोऽशनेऽतिथेः ॥१९-८३ ॥ -धर्मपरीक्षायां, अमितगतिः । दिग्देशानर्थदंडेभ्यो यत्रिधा विनिवर्तनम् । पोतायते भवाम्भोधौ त्रिविधं तद्गणव्रतम् ॥ भोगोपभोगसंख्यानं....। तृतीयं तत्तदाख्यं स्यात्....॥ -धर्मशर्माभ्युदये, श्रीहरिचंद्रः। ऊपरके इन सब अवतरणोंसे साफ प्रकट है कि श्रीसोमदेवसरि, चामुंडराय, अमितगति आचार्य और श्रीहरिचंद्रजीने दिग्विरति, देशविरति, अनर्थदंडविरति इन तीनोंको गुणव्रत और सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोगपरिमाण, अतिथिसंविभाग, इन चारोंको शिक्षाव्रत वर्णन किया है । साथ ही, इन सभी विद्वानोंने भी सल्लेखनाको श्रावकके बारह व्रतोंसे अलग एक जुदा धर्म प्रतिपादन किया है। इस लिये इनका शासन भी, इस विषयमें श्रीकुंदकुंदाचार्यके शासनसे विभिन्न है। परंतु उसे उमास्वातिके शासनके अनुकूल समझना चाहिये । (३) स्वामी समंतभद्र अपना शासन, इस विषयमें, कुंदकुंद और उमास्वातिके शासनसे कुछ भिन्नाभिन्नरूपसे स्थापित करते हुए, अपने ' रत्नकरंडक' नामके उपासकाध्ययनमें, इन व्रतोंका प्रतिपादन इस प्रकारसे करते हैं: दिखतमनर्थदंडव्रतं च भोगोपभोगपरिमाणम् । अनुबृंहणाद्गणानामाख्यान्ति गुणव्रतान्यार्याः ।। देशावकाशिकं वा सामयिक प्रोषधोपवासो वा। वैय्यावृत्यं शिक्षाप्रतानि चत्वारि शिष्टानि ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87