Book Title: Jainacharyo ka Shasan bhed
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 74
________________ परिशिष्ट ६७ है । इसलिये छेदोपस्थापनाकी 'पंचमहाव्रत' संज्ञा भी है, और इसी लिये आचार्यमहोदय ने गाथा नं० ३३ में छेदोपस्थापनाका 'पंचमहाव्रत ' शब्दों से निर्देश किया है । अस्तु । इसी ग्रन्थमें, आगे 'प्रतिक्रमण' का वर्णन करते हुए, श्रीवट्टकेर स्वामीने यह भी लिखा है: सपडिक्कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स जिणस्स । अवराहपडिकमणं मज्झिमाणं जिणवराणं ॥ ७-१२५ ।। * 'तत्त्वार्थराजवार्तिक में भट्टाकलंकदेवने भी छेदोपस्थापनाका ऐसा ही स्वरूप प्रतिपादन किया है । यथा: -- " सावधं कर्म हिंसादिभेदेन विकल्पनिवृत्तिः छेदोपस्थापना । " इसी ग्रंथ में अकलंकदेवने यह भी लिखा है कि सामायिककी अपेक्षा व्रत एक है और छेदोपस्थापनाकी अपेक्षा उसके पाँच भेद हैं । यथा: 'सर्वसावद्यनिवृत्तिलक्षणसामायिकापेक्षया एकं व्रतं, भेदपरतंत्रच्छेदोपस्थापनापेक्षया पंचविधं व्रतम् । ” श्री पूज्यपादाचार्यने भी 'सर्वार्थसिद्धि' में ऐसा ही कहा है । इसके सिवाय, श्री वीरनन्दी आचार्यने, 'आचारसार' ग्रंथके पाँचवें अधिकार में, छेदोपस्थापनाका जो निम्न स्वरूप वर्णन किया है उससे इस विषयका और भी स्पष्टीकरण हो जाता है । यथा: 1 "C व्रतसमिति गुप्तिगैः पंच पंच त्रिभिर्मतैः । छेदैर्भेदैरुपेत्यार्थ स्थापनं स्वस्थितिक्रिया ॥ ६ ॥ छेदोपस्थापनं प्रोक्तं सर्वसावद्यवर्जने । व्रतं हिंसाऽनृतस्तेयाऽब्रह्मसंगेष्वसंगमः ॥ ७ ॥ अर्थात् - पाँच व्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति नामके छदों-भदोंके द्वारा अर्थको प्राप्त होकर जो अपने आत्मामें स्थिर होने रूप किया है उसको छेदोपस्थापना या छेदोपस्थापन कहते हैं । समस्त सावद्य के त्यागमें छेदोपस्थापनाको हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन ( अब्रह्म) और परिग्रहसे बिरति रूप व्रत कहा है ।

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