Book Title: Jainacharyo ka Shasan bhed
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 70
________________ गुणव्रत और शिक्षाबत संविभाग, इन चारको शिक्षाबत माना है। उनका 'श्रावकमज्ञप्ति' नामक ग्रंथ भी इन्हींका विधान करता है और, ' योगशास्त्र में, श्रीहेमचंद्राचार्य ने भी इन्हीं व्रतोंका, इसी क्रमसे, प्रतिपादन किया है। तत्वार्थसूत्रके टीकाकार श्रीसिद्धसेनगणि और यशोभद्रजी, अपनी अपनी टीकाओंमें, लिखते हैं: "गुणव्रतानि त्रीणि दिग्भोगपरिभोगपरिमाणानर्थदंडविरति संज्ञानि....शिक्षापदव्रतानि सामायिकदेशावकाशिकरोषधोपवासातिथिस विभागाख्यानि चत्वारि।" इससे भी उक्त व्रतोंका समर्थन होता है। बल्कि इन दोनों टीकाकारोंने जिस प्रकारसे उमास्वातिपर आर्षक्रमोलंघनका आरोप लगाकर उसका समाधान किया है, और जिसका ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, उससे ऐसा मालूम होता है कि श्वेताम्बरसम्प्रदायके आगमग्रंथोंमें भी, जिन्हें वे गणधर सुधर्मास्वामी आदिके बनाये हुए बतलाते हैं, इन्हीं सब व्रतोंका इसी क्रमसे विधान किया गया है। परंतु उनमें गुणवत और शिक्षाव्रतका विभाग भी किया गया है या कि नहीं, यह बात अभी संदिग्ध है । क्योंकि ' उपासकदशा' नामके आगम ग्रंथमें, जो द्वादशांगवाणीका सातवाँ अंग कहलाता है, ऐसा कोई विभाग नहीं है। उसमें इन व्रतोंको, उमास्वातिके तत्वार्थसूत्र, तत्वार्थाधिगमभाष्य और * ये सब व्रत प्रायः वही हैं जो ऊपर स्वामी समंतभद्राचार्यके शासनमें दिखलाये गये हैं और इस लिये श्वेताम्बर आचार्योंका शासन, इस विषयमें, प्रायः समंतभद्रके शासनसे मिलता जुलता है। सिर्फ दो एक व्रतोंमें, क्रममेद अवश्य है। समंतभद्रने अनर्थदंडविरतिको दूसरे नम्बर पर रक्खा है और यहाँ उसे तीसरा स्थान प्रदान किया गया है। इसी तरह शिक्षाव्रतोंमें देशावकाशिकको यहाँ पहले नम्बर पर न रख कर दूसरे नम्बर पर रक्खा गया है। इसके सिवाय, चौथे शिक्षाव्रतके नाममें भी कुछ परिवर्तन है। ..

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