Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05 Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai View full book textPage 4
________________ संस्कार वाटिका अंधकार से प्रकाश की ओर ........ एक कदम अज्ञान अंधकार है, ज्ञान प्रकाश है, अज्ञान रूपी अंधकार हमें वस्तु की सच्ची पहचान नहीं होने देता। अंधकार में हाथ में आये हुए हीरे को कोई कांच का टुकडा मानकर फेंक दे तो भी नुकसान है और अंधकार में हाथ में आये चमकते कांच के टुकड़े को कोई हीरा मानकर तिजोरी में सुरक्षित रखे तो भी नुकसान हैं। ज्ञान सच्चा वह है जो आत्मा में विवेक को जन्म देता है। क्या करना, क्या नहीं करना, क्या बोलना, क्या नहीं बोलना, क्या विचार करना, क्या विचार नहीं करना, क्या छोडना, क्या नहीं छोडना, यह विवेक को पैदा करने वाला सम्यग ज्ञान है। संक्षिप्त में कहें तो हेय, ज्ञेय, उपादेय का बोध कराने वाला ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। वही सम्यग ज्ञान है। संसार के कई जीव बालक की तरह अज्ञानी है, जिनके पास भक्ष्य-अभक्ष्य, पेय-अपेय, श्राव्य-अश्राव्य और करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं होने के कारण वे जीव करने योग्य कई कार्य नहीं करते और नहीं करने योग्य कई कार्य वे हंसते-हंसते करके पाप कर्म बांधते हैं। बालकों का जीवन ब्लोटिंग पेपर की तरह होता है। मां-बाप या शिक्षक जो संस्कार उसमें डालने के लिए मेहनत करते हैं वे ही संस्कार उसमें विकसित होते हैं। बालकों को उनकी ग्रहण शक्ति के अनुसार आज जो जैन दर्शन के सूत्रज्ञान--अर्थज्ञान और तत्त्वज्ञान की जानकारी दी जाय, तो आज का बालक भविष्य में हजारों के लिए सफल मार्गदर्शक बन सकता है। बालकों को मात्र सूत्र कंठस्थ कराने से उनका विकास नहीं होगा, उसके साथ सूत्रों के अर्थ, सूत्रों के रहस्य, सूत्र के भावार्थ, सूत्रों का प्रेक्टिकल उपयोग, आदि बातें उन्हें सिखाने पर ही बच्चों में धर्मक्रिया के प्रति रूचि पैदा हो सकती है। धर्मस्थान और धर्म क्रिया के प्रति बच्चों का आकर्षण उसी ज्ञान दान से संभव होगा। इसी उद्देश्य के साथ वि.सं. २०६२ (14 अप्रेल 2006) में 375 बच्चों के साथ चेन्नाई महानगर केPage Navigation
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