Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैन स्वाध्यायमाला
तप कठिन करी ने, पूरी मन जगीश । देवलोके पहुंच्या, मोक्ष जासे तजी रीश ७६। काकन्दी नो धन्नो, तजी बत्तीसे नार । महावीर समीपे, लीधो सयम भार 1८०॥ करी छठ छठ पारणा, प्रायम्बिल उच्छिष्ट आहार । श्री वीर वखाण्यो, धन धन्नो अणगार ८१ एक मास संथारे, सर्वार्थ सिद्ध पहुत । महा विदेह क्षेत्र मॉ, करसे भव नो अन्त १८२॥ धन्नानी रीते, हुआ नवे ही संत । श्री अनुत्तरोववाई मां, भाँखी गया भगवंत ।८३। सुबाहु प्रमुख, पाँच पाँचसौ नार । तजी वीर पै लीधा, पॉच महाव्रत सार 1८४। चारित्र लेई ने, पाल्यो निरतिचार । देवलोके पहुच्या, सुखविपाके अधिकार 1८५॥ श्रेणिक ना पौत्रा, पौमादिक हुमा दस । वीर पै व्रत लेईने, काढयो देह नो कस ।८६। सयम आराधी, देवलोक माँ जइ वस । महाविदेह क्षेत्र माँ, मोक्ष जासे लेई जस १८७। बलभद्र ना नन्दन, निषधादिक हुआ बार । तजी पचास अन्ते उरी, त्याग दियो ससार ।। सहु नेमि समीपे, चार महावत लीध । सर्वार्थसिद्ध पहुच्या, होशे विदेहे सिद्ध ।८६। धन्नो ने शालिभद्र, मुनीश्वरो नी जोड ।

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