Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 395
________________ ३७८ वृहदालोयणा पास करूँ, काहे को धिक्कार सिर पगडी उतारी है ।१०। दोहा त्याग-न कर संग्रह-कल, विपय वमन जिम आहार । तुलसी ए मुझ पतित को, वारवार धिक्कार।११। राग द्वेप दो वीज है, कर्म वध फल देत । . इनकी फासी मे वध्यो, छुटू नही अचेत ।१२। रतन वध्यो गठड़ी विपे भानु छियो घन मांहि । सिंह पिंजरा मे दियो, जोर चले कछु नाहि ।१३। वुरा बुरा सबको कहे, बुरा न दीसे कोय । जो घट शोधु पापनो, तो मोसम वुरो न कोय ।१४। कामी कपटी लालची, कठण लोह-को दाम । तुम पारस परसंग थी, सुवरण थाशु स्वाम ॥१५॥ .. श्लोक मै जपहीन हूँ तपहीन हूँ, प्रभु हीन सवर समगत । है दयाल कृपाल करुणानिधि, पायो तुम गरणागतं । प्रभु आयो तुम शरणागतं ।१६। - दोहा - नही विद्या नहीं वचन बल, नही धीरज गुन ज्ञान । तुलसीदास गरीव की, पत राखो भगवान ।१७। विपय कपाय अनादि को, भरियो रोग अगाध । -वैद्यराज गुरु शरण से, पाउ चित्त समाध ।१८। कहेवा मे पावे नही अवगुण भर्या अनंत । लिखवा में क्यू कर लिखू, जाणो श्री भगवंत ।१६।

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