Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 393
________________ ३७६ बृहदालोयणा __ बंधाई, अनुमोदी, मन वचन काया करके उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं । एक एक बोल से लगाकर कोडाकोडी यावत् सख्याता असख्याता अनंता बोलो मे से जानने योग्य बोलो को सम्यक् प्रकार जाना नही, सद्दरा और परूप्या नही, तथा विपरीतपन से श्रद्धा आदि की, कराई, अनुमोदी, मन वचन काया से, उनका मझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं । एक एक बोल से यावत् अनंता अनता वोलो मे छोडने योग्य बोल को छोडा नही, उनको मन वचन काया से सेवन किया, सेवन कराया और अनुमोदा, उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं। एक एक वोल से लगा कर जाव अनता अनंता बोलो मे आदरने योग्य बोलो को आदरा नही, आराधा नही, पाला नही, फरसा नही, विराधना खंडना आदि की, कराई, अनुमोदी, मन वचन काया से, उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं । श्री जिन भगवंतजी महाराज आपकी आज्ञा मे जो जो प्रमाद किया और सम्यक् प्रकार उद्यम नहीं किया, नही कराया, नही अनुमोदा, मन वचन काया करके, त । अनाज्ञा मे उद्यम किया, कराया, अनमोदा । एक अक्षर के अनन्तवे भाग मात्र दूसरा कोई स्वप्नमात्र मे भी भगवत महाराज आपकी आज्ञा से न्यूनाधिक विपरीत प्रवर्त्ता हूँ, तो उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारंवार मिच्छामि दुक्कड ।

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