Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 394
________________ जैन स्वाध्यायमाला ३७७ दोहा श्रद्धा अशुद्ध प्ररूपणा, करो फरसना सोय । अनजाने पक्षपात मे, मिथ्या दुप्कृत मोय ॥१॥ सूत्र अर्थ जानु नही, अल्प बुद्धि अनजान । जिनभाषित सब शास्त्र का, अर्थ पाठ परमान ।। देव गुरु धर्म सूत्र को, नव तत्वादिक जोय । अधिका अोछा जो कह्या, मिय्या दुष्कृत मोय ।। हं मगसेलियो हो रह्यो, नही ज्ञान रस भीज । गुरु सेवा न करी शकुं, किम मुझ कारज सीज ।४। जाने देखे जे सुने, देवे सेवे मोय । अपराधी उन सबन को, बदला देशु सोय ।। गबन करूँ बुगचा रतन, दरब भाव सब कोय । लोकन मे प्रगट करू, सूई पाई मोय ।६। जैनधर्म शुद्ध पाय के, वरतु विषय कपाय । यह अचंभा हो रह्या, जल मे लागी लाय ।७। जितनी वस्तु जगत मे, नीच नीच से नीच । सबसे मैं पापी बुरो, फँसु मोह के बीच ।। एक कनक अरु कामिनी, दो मोटी तलवार । उठ्यो थो जिन भजन को, बीच मे लिनो मार ।। सवैयो मैं महापापी छाड के संसार छार, छार ही का विहार करूँ, अगला कुछ धोय कोच, फेर कीच बीच रहूं. विषय सुख चारु मन्न प्रभुता वधारी है । करत फकीरी ऐसी अमीरी की

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