Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 405
________________ ३८८ गुणाप्टक जैसी कथनी वैसी करनी, मिली है शक्ति न्यारी। महा योगिश्वर गुणरत्नाकर, ब्रह्म तेज धामी को । मुखारविन्द से जिनवाणी का, जो देते सन्देश । आत्मोत्थान मे नही सशय है, जो आवे लवलेश ।। सत्पथ दर्शक धर्म के रक्षक, भव्य हित कामी को ।। ज्ञानचन्द्र मुनि सम्प्रदाय का, गौरव बढ़ता जावे। चिरायु हो समर्थ मुनिवर, धर्म की ज्योति जगावे ।। गावे 'रतन" कर जोडी वन्दन, समर्थ गुण कामी को ।७। ॥ जैन स्वाध्यायमाला सम्पूर्ण ॥ - --

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