Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 403
________________ ३८६ - गुणाप्टक ४ आए समर्थ मनि पाए, हो भव्यो के हृदय विकसाए । जो श्री समर्थ गुण गाए, हो समकित निर्मल हो जाए ।ध्रुव। आगम ज्ञाता बहुश्रुत पण्डित, सभी आपको कहते । सूत्र न्याय से सबके मन का, समाधान नित करते । हाँ कोई न खाली जाए । हो० ॥१॥ तर्क शक्ति अद्भुत है ऐसी, कोई न वादी टिकते।। उदाहरण चुन ऐसे दे कि, फिर प्रति प्रश्न न उठते । हाँ कटुता कभी न लाए। हो० १२। क्रिया आपकी इतनी ऊँची, क्रिया-पात्र कहलाये । दर्शन पा चौथे आरे की, स्मृति सभी को पाए । हाँ बाल वृद्ध हुलसाए । हो० ।३। नाम आपका सुन्दर वैसे, गण भी आप मे मिलते । सेवा विनय क्षमा आदि मे, स्थान अनुपम रखते । हाँ गर्व न किचित् लाए । हो ।४। ज्ञान क्रिया दोनो का आप मे, योग मिला है भारी । दौड़ दौड सेवा मे आते, श्रद्धालु नर नारी । हाँ शीष स्वत झुकजाए। हो० ।५। जिन शासन के सत्य रूप की, झाकी आप मे मिलती। आप सरिखो से ही ऐसी, रीति नीति सब नि भती। हाँ धर्म दीपने पाए । हो ।६। दीप्ति अखंडित ब्रह्मवर्य की, ढकी अग्नि ज्यो दमके ।

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